First Billionaire of Independent India: आजाद भारत का सबसे अमीर शख्स, जिसके ठाट-बाट के नहीं, कंजूसी के किस्से थे मशहूर
क्या आपने कभी सोचा है कि जब भारत आजाद हुआ, तब देश का सबसे अमीर आदमी कौन रहा होगा? अगर हां, तो यहां जान लीजिए जवाब और उस शख्स से जुड़े ऐसे किस्से जिन्हें सुनने के बाद आपको भी हैरानी होगी.
Mir Osman Ali Khan- Source Wikipedia
Mir Osman Ali Khan- Source Wikipedia
आज के समय में जब देश के अमीर लोगों की बात होती है तो टाटा, अडानी जैसे लोगों के नाम लिए जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि जब देश आजाद हुआ होगा, उस समय भारत का सबसे अमीर व्यक्ति कौन रहा होगा? उस समय देश का सबसे अमीर शख्स था मीर उस्मान अली खान, जो 1911 में हैदराबाद के निज़ाम बने थे और 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब भी हैदराबाद के निज़ाम वही थे.मीर उस्मान अली खान के पास हीरे-सोने और नीलम-पुखराज जैसे बहुमूल्य रत्नों की खान थी. सोने की ईंटों से भरे ट्रक उसके बगीचे में खड़े रहते थे.
उनके पास 185 कैरट का जैकब हीरा था, जिसका इस्तेमाल वो पेपरवेट के तौर पर करते थे. उस हीरे की कीमत 1340 करोड़ रुपए थी. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद निज़ाम के राजसी ठाट-बाट के नहीं, बल्कि कंजूसी के किस्से दुनियाभर में मशहूर थे. पाई-पाई बचाने के लिए के लिए वे नए-नए तरीके तलाशा करते थे. लोगों के बीच हुज़ूर-ए-निज़ाम के नाम से मशहूर मीर उस्मान अली खान से जुड़े दिलचस्प किस्से.
बिना इस्तरी किया कुर्ता-पजामा और मामूली चप्पल पहनते थे
हैदराबाद के निज़ाम को लेकर कहा जाता है कि वे ज्यादातर राजसी वस्त्रों की बजाय बिना इस्तरी किया गया कुर्ता-पजामा पहनते थे और पैरों में उनके मामूली चप्पल होती थी. उनके पास एक तुर्की टोपी थी, जिसे उन्होंने 35 सालों तक पहना. जिस कमरे में निज़ाम सोते थे, वहां पुराना पलंग, टूटी टेबल और कुर्सियां, राख से लदी एक ऐश-ट्रे, कचरे से सनी रद्दी की टोकरियां, कोने-कोने में मकड़ी के जाले लगे रहते थे.
मेहमानों की पी सिगरेट भी नहीं छोड़ते थे
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निज़ाम के कंजूसी के किस्सों का जिक्र लेखक डोमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब में भी किया है. उन्होंने लिखा है कि निज़ाम ऐसे संस्थानों के मालिक थे, जहां सोने के बर्तनों में खाना परोसा जाता था, लेकिन वे खुद साधारण दरी पर बैठकर मामूली प्लेटों में भोजन करते थे. अगर उनके घर में आया मेहमान सिगरेट पीकर छोड़ जाए, तो वो उसका बचा हिस्सा भी पी जाते थे.
महंगी गाड़ियों के शौकीन
निजाम को महंगी गाड़ियों का बहुत शौक था. कहा जाता है कि जब रोल्स-रॉयस मोटर कार्स लिमिटेड ने मीर उस्मान को अपनी कार बेचने से इनकार कर दिया, तो हैदराबाद के शासक ने कुछ पुरानी रोल्स-रॉयस कारों को खरीद लिया और वे उसे कचरा फेंकने के लिए इस्तेमाल करने लगे थे.
भारत सरकार को भेजा था सोना
कहा जाता है कि जब साल 1965 में भारत और चीन का युद्ध हुआ तो निजाम ने भारत को मदद के रूप में 5000 किलो सोना भेजा था. ये सोना लोहे के बक्सों में भेजा गया था, लेकिन निजाम इतने कंजूस थे कि उन्होंने सोना दिल्ली भेजते वक्त कहा था कि हम सिर्फ सोना दान दे रहे हैं इसलिए इन लोहे के बक्सों को वापस हैदराबाद भिजवा दिया जाए.
हैदराबाद की जनता के बीच कुशल प्रशासक
हैदराबाद की जनता के बीच निज़ाम को एक बहुत ही कुशल प्रशासक जाना जाता था. कहा जाता है कि साम्राज्य के विकास के लिए काफी समर्पित थे. उन्होंने हैदराबाद में सड़कों का निर्माण करवाया. तमाम सार्वजनिक भवनों का निर्माण कराया. इतना ही नहीं, उन्होंने देश के तमाम विश्वविद्यालयों के निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया. निज़ाम ने अपना खुद का बैंक, 'हैदराबाद स्टेट बैंक' बनवाया था. इस बैंक में उनके द्वारा जारी उस्मानिया सिक्के चला करते थे. बाद में इस बैंक का नाम बदलकर 'स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद' कर दिया गया और साल 2017 में भारतीय स्टेट बैंक में विलय कर दिया.
ऐसे हुआ निज़ाम के शासन का अंत
माना जाता है कि देश की आजादी के बाद हैदराबाद के निज़ाम ने भारत में मिलने से इनकार कर दिया था. वे पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे या फिर हैदराबाद में स्वतंत्र राज्य करना चाहते थे. सितंबर 1948 में भारतीय सेना ने हैदराबाद में घुसकर ऑपरेशन पोलो चलाया और इसके बाद निजाम के हैदराबाद राज्य का भारत में एकीकरण हो गया. इस तरह उस्मान अली खान के शासन का अंत हो गया. लेकिन उन्हें हैदराबाद राज्य का पहला राजप्रमुख बनाया गया. 24 फरवरी 1967 को किंग कोठी पैलेस में अपनी आखिरी सांस ली.
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01:25 PM IST