कहां से आया 'बजट' शब्द? भारतीय संविधान में तो कहीं नहीं हैं इसका जिक्र
बजट में सरकार के सालाना खर्च का ब्योरा होता है. इसके जरिए सरकार की प्राप्तियों और खर्च का लेखाजोखा पेश किया जाता है.
5 जुलाई को देश का आम बजट आने वाला है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी. (फोटो: जी बिजनेस)
5 जुलाई को देश का आम बजट आने वाला है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी. (फोटो: जी बिजनेस)
5 जुलाई को देश का आम बजट आने वाला है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी. इस बार का बजट काफी अहम है. क्योंकि, यहीं से मोदी सरकार के न्यू इंडिया के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी. बजट में सरकार के सालाना खर्च का ब्योरा होता है. इसके जरिए सरकार की प्राप्तियों और खर्च का लेखाजोखा पेश किया जाता है.
बजट वाले दिन वित्त मंत्री के बजट भाषण के दो प्रमुख हिस्से होते हैं. पहले हिस्से में देश की आर्थिक तस्वीर की जानकारी होती है, वहीं, दूसरे हिस्से में टैक्स का ब्योरा होता है. दरअसल, दूसरे भाग से ही आम आदमी को पता चलता है कि उसे कितना टैक्स देना होगा और आने वाले समय में क्या महंगा और क्या सस्ता होगा? लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि बजट शब्द आया कहां से? क्यों इसे बजट ही कहते हैं? क्योंकि, भारतीय संविधान में तो बजट शब्द का जिक्र ही नहीं है.
कहां से आया बजट शब्द
बजट शब्द फ्रेंच शब्द 'बूजे' से लिया गया है. इसका अर्थ होता है छोटा थैला. इंग्लैंड के पूर्व वित्त मंत्री सर रॉबर्ट वालपोल साल 1733 में अपने बजट प्रस्ताव के कागजात एक थैले में रख कर सदन में लाए थे. वहां, उनसे किसी ने पूछा कि थैले में क्या है, तो उन्होंने कहा इसमें आप लोगों के लिए बजट है. इसके बाद से ही बजट शब्द प्रचलन में आया.
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भारतीय संविधान में नहीं है बजट शब्द का जिक्र
भारतीय संविधान में कहीं भी बजट शब्द का जिक्र नहीं है. बल्कि संविधान के अनुच्छेद 112 में इसे वार्षिक वित्तीय विवरण नाम दिया गया है. इस विवरण में सरकार पूरे साल के अपने अनुमानित खर्चों और होने वाली आय का ब्यौरा देती है.
देखिए जी बिजनेस की खास पेशकश 'बजट बहादुर'
अनुदान और लेखानुदान
बजट में शामिल सरकार के खर्चों के अनुमान को लोक सभा अनुदान की मांग के रूप में पारित करती है. हर मंत्रालय की अनुदान की मांगों को सिलसिलेवार तरीके से लोकसभा से पारित कराया जाता है. संविधान के मुताबिक सरकार संसद की अनुमति के बिना कोई खर्च नहीं कर सकती है. बजट पर चर्चा और इसको सदन से पारित कराने में लंबा समय लगता है और ऐसे में सरकार अगले वित्त वर्ष की शुरुआत यानि 1 अप्रैल से पहले पूरा बजट संसद से पारित नहीं करा पाती. इस स्थिति में अगले वित्त वर्ष के शुरुआती दिनों के खर्च के लिए सरकार लेखानुदान के तहत संसद की मंजूरी लेती है. ज्यादातर लेखानुदान की मंजूरी दो महीनों के लिए ली जाती है. हालांकि चुनावी साल में यह सीमा दो महीने से ज्यादा भी हो सकती है.
रेल बजट
ऐतिहासिक कारणों से रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जाता है. रेलवे बजट पेश करने की शुरुआत 1924 में हुई थी, तब देश के कुल बजट में रेलवे की हिस्सेदारी करीब 70 प्रतिशत थी, ऐसे में रेलवे के लिए अलग बजट पेश करना पड़ा. हालांकि, अब रेलवे की कुल बजट में हिस्सेदारी करीब 15 प्रतिशत के करीब है. यही वजह है कि इसे दोबारा आम बजट में ही शामिल कर लिया गया. रेलवे का पूरा खर्च और आय का अनुमान अब आम बजट में ही शामिल किया जाता है.
06:54 PM IST