TDS और TCS में क्या अंतर होता है? ये समझना आपके लिए बहुत जरूरी है
सरकार ने चालू वित्त वर्ष की बची हुई अवधि के लिए देश के अंदर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक भुगतान पर टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) की दर में 25 फीसदी की कटौती की है.
टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) टैक्स वसूल करने के दो तरीके हैं.
टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) टैक्स वसूल करने के दो तरीके हैं.
केंद्र सरकार ने इकोनॉमी को बूस्ट करने के लिए आर्थिक पैकेज दिया है. कई मामलों में राहत दी गई है. इनकम टैक्स रिटर्न भरने की तारीख को बढ़ा दिया है. वहीं, TDS और TCS में भी छूट दी है. सरकार ने चालू वित्त वर्ष की बची हुई अवधि के लिए देश के अंदर किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक भुगतान पर टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) की दर में 25 फीसदी की कटौती की है. यह कटौती 14 मई से सभी पेमेंट पर लागू होगी चाहे वह कमीशन हो, ब्रोकरेज हो या कोई दूसरा पेमेंट.
क्या हैं TDS और TCS?
टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) टैक्स वसूल करने के दो तरीके हैं. TDS का मतलब स्रोत पर कटौती है. TCS का मतलब स्रोत पर टैक्स कलेक्शन से है. दोनों ही मामलों में रिटर्न फाइल करने की जरूरत होती है. कई लोग इन दोनों के बीच फर्क नहीं समझते हैं.
क्या है टीडीएस?
यह आपकी इनकम के स्रोत यानी आपकी सैलरी से कटता है. टीडीएस इनकम टैक्स का ही एक हिस्सा होता है, जिसका भुगतान टैक्सपेयर पहले ही कर चुका होता है. इसका सेटलमेंट इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) भरने के दौरान कर दिया जाता है. अगर आपकी सैलरी से कटा टीडीएस आपकी कुल टैक्स देनदारी से ज्यादा होता है तो वह आपको आईटीआर फाइलिंग के जरिए वापस कर दिया जाता है. कुल मिलाकर यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसके जरिए सरकार टैक्स को तुरंत इकट्ठा करती है. टीडीएस कटौती आपकी सैलरी, निवेश पर मिले ब्याज, प्रोफेशनल फीस, कमीशन और ब्रोकरेज में शामिल है. कोई भी संस्थान (जो TDS के दायरे में आता है) जो TDS भुगतान कर रहा है, वह एक निश्चित रकम TDS के रूप में काटता है.
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कौन देता है TDS?
पेमेंट करने वाले व्यक्ति या संस्था (कंपनी) पर टीडीएस भरने की जिम्मेदारी होती है. इन्हें डिडक्टर कहा जाता है. वहीं, टैक्स काटकर भुगतान हासिल करने वाले को डिडक्टी कहते हैं. टीडीएस के रूप में काटी गई रकम को सरकार के खाते में जमा करना जरूरी है. हर डिडक्टर को टीडीएस सर्टिफिकेट जारी करके बताना होता है कि उसने कितना टीडीएस काटा और सरकार को जमा किया .
क्या है TCS?
TCS- टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स होता है. इसका मतलब स्रोत पर एकत्रित टैक्स (इनकम से इकट्ठा किया गया टैक्स) होता है. TCS का भुगतान सेलर, डीलर, वेंडर, दुकानदार की तरफ से किया जाता है. हालांकि, वह कोई भी सामान बेचते हुए खरीदार या ग्राहक से वो वसूलता है. वसूलने के बाद इसे जमा करने का काम सेलर या दुकानदार का ही होता है. इनकम टैक्स एक्ट की धारा 206C में इसे कंट्रोल किया जाता है. कुछ खास तरह की वस्तुओं के विक्रेता ही इसे कलेक्ट करते हैं. इन वस्तुओं में टिंबर वुड, स्क्रैप, मिनरल, तेंदु पत्ते शामिल हैं. इस तरह का टैक्स तभी काटा जाता है जब पेमेंट एक सीमा से ज्यादा होता है.
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क्या है TDS और TCS में अंतर?
TDS – पेमेंट देने वाला टैक्स काटकर पैसा देता है
TCS- पेमेंट लेने वाला टैक्स जोड़कर पैसा मांगता है
उदाहरण के लिए-
रमेश ने किसी फर्म को 1 लाख रुपए का स्क्रैप बेचा. स्क्रैप पर 1% का टीसीएस लेने का नियम है.
1 लाख का 1 प्रतिशत होगा 1000 रुपए. तो फिर फर्म से कुल 1 लाख 1 हजार रुपए लिए जाएंगे.
1000 रुपए के टीसीएस को इनकम टैक्स विभाग के पास जमा करना होगा, खरीदार फर्म के नाम.
बिजनेस उद्देश्य से कुछ निश्चित प्रकार की चीजों की बिक्री पर ही TCS काटने का नियम है.
खरीद पर TCS लगने वाली कुछ चीजों की लिस्ट और उन पर TCS की दर
शराब- 1%
तेंदू पत्ता- 5%
इमारती लकडी- 2.5%
कोयला/लोहा/लिग्नाइट- 1%
10 लाख से ज्यादा के वाहन पर- 1%
10:02 AM IST