SBI की रिजर्व बैंक से बातचीत, कहा ग्रीन डिपॉजिट पर CRR घटाने की जरूरत
SBI ने RBI से ग्रीन डिपॉजिट को लेकर बातचीत की है. इस बातचीत का मकसद ग्रीन डिपॉजिट में लोअर कैश रिजर्व को कम रखना है. आरबीआई ने पिछले महीने ही ग्रीन डिपॉजिट एफडी स्कीम शुरू की थी.
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) से ग्रीन डिपॉजिट को लेकर बातचीत की है. इस बातचीत का मकसद ग्रीन डिपॉजिट में लोअर कैश रिजर्व को कम रखना है. इस मामले में जानकारी देते हुए SBI के चेयरमैन दिनेश खारा ने शुक्रवार को कहा कि देश का सबसे बड़ा लेंडर ग्रीन डिपॉजिट पर कैश रिजर्व रेश्यो की जरूरत को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के साथ बातचीत कर रहा है. एसबीआई ने रिटेल डिपॉजिट को आकर्षित करने के लिए पिछले महीने एक ग्रीन डिपॉजिट स्कीम की घोषणा की थी.
क्या है ग्रीन डिपॉजिट
ग्रीन डिपॉजिट (Green Deposit) एक तरह का फिक्स्ड टर्म डिपॉजिट है, जिसमें निवेशक अपने पैसे को पर्यावरण के हित के लिए प्रोजेक्ट्स में निवेश करते हैं. इन प्रोजेक्ट्स में रिन्युअल एनर्जी, एनर्जी एफिशिएंट, वाटर कंजर्वेशन और पॉल्यूशन कंट्रोल आदि शामिल हैं. बता दें कि एसबीआई ने पिछले महीने 1,111, 1,777 और 2,222 दिनों की टेन्योर वाली ग्रीन डिपॉजिट एफडी स्कीम शुरू की थी. इसमें बैंक में नियमित सावधि जमा की समान अवधि पर प्रचलित दरों से लगभग 10 आधार अंक कम ब्याज दरें थीं.
क्या होता है सीआरआर
सभी बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखना पड़ता है. इसे कैश रिजर्व रेश्यो यानी सीआरआर (Cash Reserve Ratio-CRR) कहते हैं. ये बाजार में नकदी के प्रवाह पर नियंत्रण रखने का एक टूल है और बैंक की स्थायित्व और जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है. आरबीआई के पास रखा गया नकद रिजर्व ये सुनिश्चित करता है कि बैंक अपने ग्राहकों की मांगों को पूरा करने के लिए नकदी की कमी से न जूझें.
मौजूदा समय में कितना है CRR
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मौजूदा समय में सीआरआर 4.5 प्रतिशत है, जिसका मतलब है कि बैंक द्वारा जमा किए गए प्रत्येक एक रुपए में से 4.5 पैसे रिज़र्व बैंक के पास सॉल्वेंसी उपाय के रूप में रखे जाने चाहिए. बैंक आरबीआई के पास आरक्षित राशि पर कोई ब्याज नहीं कमाते हैं. दिनेश खारा ने यहां भारतीय प्रबंधन संस्थान कोझिकोड द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, कि हम ग्रीन डिपॉजिट के लिए सीआरआर में कटौती को लेकर आरबीआई के साथ बातचीत कर रहे हैं.
अगर ये एक नीति के रूप में है, तो इसे नियामक नीति तंत्र में शामिल किया जा सकता है. नियामक की ओर से भी शुरुआती आगाज हो चुका है, लेकिन कीमत पर भी असर पड़ने में शायद दो से तीन साल लग जाएंगे. चेयरमैन ने बेहतर और अधिक व्यावहारिक रेटिंग का आह्वान किया क्योंकि हरित वित्त पोषण के नाम पर ‘ग्रीन-शोरिंग’ की उच्च संभावना है. उन्होंने कहा कि बैंक यह देखने के लिए रेटिंग संस्थाओं के साथ जुड़ रहा है कि क्या हरित वित्तपोषण के लिए एक लेखांकन मानक निर्धारित किया जा सकता है या नहीं.
इनपुट: भाषा से भी
03:23 PM IST