सेटल्ड लोन को लोन क्लोजर समझने की कर रहे हैं भूल तो जान लीजिए फर्क...वरना बाद में उठाना पड़ेगा बड़ा खामियाजा
तमाम लोग लोन सेटलमेंट को लोन क्लोजर समझने की भूल करते हैं, जबकि ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं. लोन सेटलमेंट के साइड इफेक्ट्स हैं और लोन क्लोजर के तमाम फायदे. जानिए लोन क्लोजर क्या होता है, सेटल्ट लोन के क्या नुकसान हैं और इसे क्लोज कैसे कराएं.
एक मिडिल क्लास परिवार के तमाम बड़े काम जैसे कार खरीदना, मकान खरीदना आदि अक्सर बैंक के लोन के जरिए पूरे होते हैं क्योंकि इतनी बड़ी रकम को एक साथ दे पाना आसान नहीं होता. हालांकि लोन के जरिए बैंक आपकी जरूरत को तो पूरा कर देते हैं, लेकिन इसके बदले अच्छा खासा ब्याज वसूलते हैं. इसके लिए हर महीने उधारकर्ता को बैंक ईएमआई देनी होती है. लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी आ जाती हैं कि उधारकर्ता लोन लेने के बाद ईएमआई चुकाने की स्थिति में नहीं रहता. ऐसे में वो डिफॉल्टर बन जाता है. इस स्थिति में लोन लेने वाले के पास लोन सेटलमेंट का विकल्प होता है.
हालांकि इसके लिए बैंक को लोन न चुका पाने की वाजिब वजह बतानी होती है, जिससे बैंक को आश्वस्त किया जा सके. अगर बैंक को वजह वाजिब लगती है और सेटलमेंट पर बात बन जाती है तो बैंक की सहमति से एक निश्चित राशि चुकाकर उधारकर्ता लोन को सेटल कर सकता है और ईएमआई, बैंक नोटिस आदि के चक्करों से मुक्ति पा सकता है. लेकिन अगर आप लोन सेटलमेंट को लोन क्लोजर समझ रहे हैं, तो ये आपकी बहुत बड़ी भूल है. लोन सेटलमेंट आपको राहत तो देता है, लेकिन इसके कई नुकसान भी होते हैं क्योंकि ये लोन क्लोजर नहीं होता. जानिए लोन क्लोजर क्या होता है, सेटल्ट लोन के क्या नुकसान हैं और इसे क्लोज कैसे कराएं.
लोन क्लोजर और सेटल्ड लोन के बीच क्या है फर्क
सेटल्ड लोन बीच का एक रास्ता होता है, जिस पर उधारकर्ता और बैंक दोनों की सहमति होती है. इसमें डिफॉल्टर को अपने बकाया प्रिंसिपल अमाउंट तो पूरा देना पड़ता है, लेकिन इंटरेस्ट अमाउंट के साथ-साथ पेनल्टी और अन्य चार्ज को आंशिक या पूर्ण रूप से माफ किया जा सकता है. सेटलमेंट करने पर बैंक के पास वो पूरी रकम नहीं पहुंचती जो उधारकर्ता को अपने लोन टेन्योर के बीच लौटानी होती है. इसलिए बैंक सेटलमेंट करते समय उधारकर्ता की क्रेडिट हिस्ट्री में सेटल्ड लिख देते हैं. इसका मतलब है कि लोन लेने वाले ने निर्धारित राशि को नहीं चुकाया है.
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वहीं जब लोन क्लोज किया जाता है तो उधारकर्ता के पास बैंक का कुछ भी बकाया नहीं होता है. ऐसे में लोन क्लोज होने के बाद बैंक की ओर से नो ड्यू पेमेंट का सर्टिफिकेट दिया जाता है, जो इस बात का प्रमाण है कि उधारकर्ता ने बैंक से जो भी राशि लोन के रूप में ली थी, उसे ब्याज समेत पूरा चुकाया है. इससे लोन लेने वाले की विश्वसनीयता बढ़ती है, उसका क्रेडिट स्कोर बेहतर होता है और भविष्य में लोन दोबारा लेने पर बेहतर ब्याज दरों के साथ उसे आसानी से कर्ज मिल जाता है.
लोन सेटलमेंट से खराब हो जाती है क्रेडिट हिस्ट्री
सेटलमेंट के बाद क्रेडिट हिस्ट्री में सेटल्ड लिख जाने का काफी बड़ा नुकसान होता है. इससे क्रेडिट स्कोर 50 से 100 पॉइंट या उससे भी ज्यादा कम हो सकता है. अगर लोन लेने वाला एक से ज्यादा क्रेडिट अकाउंट का सेटलमेंट करता है, तो क्रेडिट स्कोर इससे भी ज्यादा कम हो सकता है. क्रेडिट रिपोर्ट में अकाउंट स्टेटस सेक्शन में इस बात का जिक्र अगले सात सालों तक रह सकता है कि उधारकर्ता का लोन सेटल किया गया. ऐसे में अगले सात सालों तक दोबारा लोन लेना बहुत मुश्किल हो जाता है. आप बैंक द्वारा ब्लैक लिस्टेड भी किए जा सकते हैं.
कैसे सेटल्ड लोन को कराएं क्लोज?
सेटल्ड अकाउंट को भी आप क्लोज करवा सकते हैं. इसका तरीका है किजब आप आर्थिक रूप से सक्षम हो जाएं तो आप बैंक के पास जाकर कहें कि आप ड्यू यानी प्रिंसिपल, इंटरेस्ट, पेनाल्टी और अन्य चार्ज में जो भी आपको छूट मिली थी, आप उसे देना चाहते हैं. जब आप बैंक को लोन की पूरी राशि ब्याज और अन्य चार्जेज समेत लौटा देते हैं और आपके पास कुछ भी बकाया नहीं रहता तो बैंक आपको बदले में नो ड्यू पेमेंट का सर्टिफिकेट देता है. इसके बाद बैंक क्रेडिट ब्यूरो को ये सूचित करता है कि आपका अकाउंट क्लोज कर दिया गया है. इससे आपका बिगड़ा क्रेडिट स्कोर भी सुधर जाता है.
10:01 AM IST