Ramadan dua for sehri iftar: रमजान में नमाज अदा करते समय इन बातों का रखें खास ख्याल, ऐसे करें इबादत
Ramadan dua for sehri iftar: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान को सबसे पवित्र महीना माना गया है. यह महीना बरकत का महीना होता है. इन दिनों में जो भी दुआएं की जाती हैं वे पूरी हो जाती है.
Ramadan dua for sehri iftar: रमजान में नमाज अदा करते समय इन बातों का रखें खास ख्याल, ऐसे करें इबादत
Ramadan dua for sehri iftar: रमजान में नमाज अदा करते समय इन बातों का रखें खास ख्याल, ऐसे करें इबादत
Ramadan Dua For Sehri Iftar: रमजान का महीना 24 मार्च 2023 से शुरू हो चुका है. रमजान के महीने में अल्लाह की खूब इबादत की जाती है. पूरे महीने लोग रोजा रखकर पांच वक्त की नमाज और जकात अदा करते हैं. वैसे तो मुसलमान हर दिन पांच वक्त की नमाज अदा करते हैं. लेकिन रमजान के महीने में तरावीह या तराबी की दुआ अदा करना जरूरी होता है. तरावीह केवल रमजान में ही पढ़ी जाती है.रमजान के पाक महीने में तरावीह की नमाज अदा की जाती है.
रमजान की ये हैं 3 अशरे
रमजान के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं. इसमें खुदा की इबादत, नमाज और दान करते हैं. यह पहला अशरा होता है. रमजान का दूसरा अशरा भी 10 दिन का होता है. इसमें जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए माफी मांगी जाती है. नेक बंदों को खुदा रहमत और बरकत देते हैं. रमजान के आखिरी 10 दिन तीसरा अशरा होता है, इसमें लोग खुदा से दुआ करते हैं कि उनको उनके किए पापों से मुक्ति मिले और मृत्यु के बाद उन्हें अल्लाह की पनाह मिले.
तरावीह क्या है? (Meaning of Taraweeh)
तरावीह अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब ठहराव या आराम से होता है. तरावीह की दुआ में हर चार रकात के बाद जलसा की सूरत में बैठकर पढ़ा जाता है. ईशा की नमाज के बाद तरावीह पढ़ी जाती है और बीच में रुक कर दुआ पढ़ा जाता है. इसमें 20 रकात होती है और तरावीह की नमाज को 2-2 रकात करके पढ़ी जाती है और जब चार रकात पूरे हो जाते हैं तो सलाम फेरकर उसी सूरत में बैठकर दुआ पढ़ी जाती है. तरावीह की नमाज स्त्री और पुरुष दोनों ही पढ़ सकते हैं. तरावीह की दुआ के बिना रमजान अधूरा माना जाता है.
तरावीह क्या घर पर पढ़ सकते हैं?
तरावीह की नमाज को घर पर भी पढ़ा जा सकता है. लेकिन मस्जिद और घर पर पढ़े जाने वाले तरावीह की नमाज में थोड़ा अंतर होता है. महिलाएं मस्जिद नहीं जाती ऐसे में वो घर पर ही तरावीह की नमाज पढ़ती हैं. वहीं कुछ लोग मस्जिद जाने में समर्थ नहीं होते या मस्जिद घर से दूर हो तो ऐसे में भी घर पर तरावीह की नमाज पढ़ी जा सकती है. तरावीह की नमाज रात के समय पढ़ी जाती है और इसमें डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है.
रोजा रखने वाली दुआ
रोजा रखने की अपनी एक प्रक्रिया होती है. रोज़ा रखने के लिए फज्र की नमाज़ (Ramadan 2023 से पहले सेहरी खाई जाती है. सेहरी खाने के बाद कुछ भी खाने की इजाजत नहीं होती है. इसके अलावा, आप पूरे दिन भी कुछ नहीं खा सकते हैं. कुछ भी खाने या पीने से आपका रोजा टूट जाता है. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुसार, किसी भी रोजेदार को सहरी खाने के बाद यानि फज्र की अज़ान से पहले एक दुआ जरुर पढ़नी चाहिए. ‘व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान’ इस दुआ (Ramadan Roza Ki Duayen) का मतलब है कि मैं रमजान के इस रोज़े की नियत करता/ करती हूं.
रोजा खोलने की दुआ क्या होती है?
Image result for रोजा रखने की दुआ
रोजा खोलने की दुआ – अरबी, हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी पढ़ सकते हैं (roza kholne ki dua) “Allahumma inni laka sumtu wa bika amantu wa 'alayka tawakkaltu wa 'ala rizqika aftarthu”। ऐ अल्लाह। मैंने तेरी रजा के लिए रोजा रखा और तेरी ही रज्जाक पर इफ्तार खोल रहा हूं.
Ramadan dua for sehri iftar: रमजान का महीना 24 मार्च 2023 से शुरू हो चुका है. रमजान के महीने में अल्लाह की खूब इबादत की जाती है. पूरे महीने लोग रोजा रखकर पांच वक्त की नमाज और जकात अदा करते हैं. वैसे तो मुसलमान हर दिन पांच वक्त की नमाज अदा करते हैं. लेकिन रमजान के महीने में तरावीह या तराबी की दुआ अदा करना जरूरी होता है. तरावीह केवल रमजान में ही पढ़ी जाती है.रमजान के पाक महीने में तरावीह की नमाज अदा की जाती है.
रमजान की ये हैं 3 अशरे
रमजान के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं. इसमें खुदा की इबादत, नमाज और दान करते हैं. यह पहला अशरा होता है. रमजान का दूसरा अशरा भी 10 दिन का होता है. इसमें जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए माफी मांगी जाती है. नेक बंदों को खुदा रहमत और बरकत देते हैं. रमजान के आखिरी 10 दिन तीसरा अशरा होता है, इसमें लोग खुदा से दुआ करते हैं कि उनको उनके किए पापों से मुक्ति मिले और मृत्यु के बाद उन्हें अल्लाह की पनाह मिले.
तरावीह क्या है? (Meaning of Taraweeh)
तरावीह अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब ठहराव या आराम से होता है. तरावीह की दुआ में हर चार रकात के बाद जलसा की सूरत में बैठकर पढ़ा जाता है. ईशा की नमाज के बाद तरावीह पढ़ी जाती है और बीच में रुक कर दुआ पढ़ा जाता है. इसमें 20 रकात होती है और तरावीह की नमाज को 2-2 रकात करके पढ़ी जाती है और जब चार रकात पूरे हो जाते हैं तो सलाम फेरकर उसी सूरत में बैठकर दुआ पढ़ी जाती है. तरावीह की नमाज स्त्री और पुरुष दोनों ही पढ़ सकते हैं. तरावीह की दुआ के बिना रमजान अधूरा माना जाता है.
तरावीह क्या घर पर पढ़ सकते हैं?
तरावीह की नमाज को घर पर भी पढ़ा जा सकता है. लेकिन मस्जिद और घर पर पढ़े जाने वाले तरावीह की नमाज में थोड़ा अंतर होता है. महिलाएं मस्जिद नहीं जाती ऐसे में वो घर पर ही तरावीह की नमाज पढ़ती हैं. वहीं कुछ लोग मस्जिद जाने में समर्थ नहीं होते या मस्जिद घर से दूर हो तो ऐसे में भी घर पर तरावीह की नमाज पढ़ी जा सकती है. तरावीह की नमाज रात के समय पढ़ी जाती है और इसमें डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है.
रोजा रखने वाली दुआ
रोजा रखने की अपनी एक प्रक्रिया होती है. रोज़ा रखने के लिए फज्र की नमाज़ (Ramadan 2023 से पहले सेहरी खाई जाती है. सेहरी खाने के बाद कुछ भी खाने की इजाजत नहीं होती है. इसके अलावा, आप पूरे दिन भी कुछ नहीं खा सकते हैं. कुछ भी खाने या पीने से आपका रोजा टूट जाता है. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुसार, किसी भी रोजेदार को सहरी खाने के बाद यानि फज्र की अज़ान से पहले एक दुआ जरुर पढ़नी चाहिए. ‘व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान’ इस दुआ (Ramadan Roza Ki Duayen) का मतलब है कि मैं रमजान के इस रोज़े की नियत करता/ करती हूं.
रोजा खोलने की दुआ क्या होती है?
Image result for रोजा रखने की दुआ
रोजा खोलने की दुआ – अरबी, हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी पढ़ सकते हैं (roza kholne ki dua) “Allahumma inni laka sumtu wa bika amantu wa 'alayka tawakkaltu wa 'ala rizqika aftarthu”। ऐ अल्लाह। मैंने तेरी रजा के लिए रोजा रखा और तेरी ही रज्जाक पर इफ्तार खोल रहा हूं.
घर पर तरावीह की नमाज पढ़ने का तरीका
मस्जिद में पूरी कुरान सुना देता है लेकिन घर मे कोई पूरी कुरान तरावीह में नहीं पढ़ सकता. ऐसे में घर पर कुछ चुनिंदा सूरतें ही पढ़ी जाती है, क्यूंकि आमतौर पर सभी को पूरी कुरान याद नहीं होती. जिस तरह से हम घर और मस्जिद दोनों में ही नमाज अदा कर सकते हैं. ठीक इसी तरह तरावीह की नमाज भी घर पर पढ़ी जा सकती है. अगर घर में कोई हाफिज-ए-कुरान हो तो उसके पीछे तरावीह की नमाज अदा कर सकते हैं. लेकिन घर पर कोई हाफिज न हो तो तरावीह को दूसरी तरह से पढ़ना चाहिए.
तरावीह की नमाज पढ़ने में लगभग डेढ़ से 2 घंटे का समय लगता है और इसे हर दिन पूरे रमजान में पढ़ी जाती है. इसे बिना किसी गैप के लगातार पढ़ना चाहिए. यानी तरावीह की नमाज में बीच-बीच में उठना नहीं चाहिए. तभी इसका सवाब मिलता है. तरावीह की नमाज के लिए पहले किबला रूह खड़े हो जाए और इसके बाद नियत करें. इसमें पहले आप सना यानि सुब्हानका अल्लहुमा वबी हमदिका पढ़ें. फिर दूसरा ताउज यानि के आउज़ बिल्लाहे मिन्नस सैतानिर्रजिम और बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम पढ़ें. फिर अल्हम्दो लिल्लाहे और इसके बाद कोई भी कुरान की सूरह पढ़ें.
पहला कलमा से लेकर छह कलमा में जो भी आपको याद हो उसे पढ़ सकते हैं.
कोई दरूद शरीफ पढ़ लें जो आपको याद हो.
सुभानअल्लाह या अल्हम्दोलिल्लाह या अल्लाहु अकबर भी पढ़ सकते हैं.
अस्तगफार जैसे अस्तग़्फ़िरुल्लाह भी पढ़ा जा सकता है.
अगर आपको कुरान की कोई भी आयत याद हो तो उसे भी पढ़ सकते हैं.
मस्जिद में पूरी कुरान सुना देता है लेकिन घर मे कोई पूरी कुरान तरावीह में नहीं पढ़ सकता. ऐसे में घर पर कुछ चुनिंदा सूरतें ही पढ़ी जाती है, क्यूंकि आमतौर पर सभी को पूरी कुरान याद नहीं होती. जिस तरह से हम घर और मस्जिद दोनों में ही नमाज अदा कर सकते हैं. ठीक इसी तरह तरावीह की नमाज भी घर पर पढ़ी जा सकती है. अगर घर में कोई हाफिज-ए-कुरान हो तो उसके पीछे तरावीह की नमाज अदा कर सकते हैं. लेकिन घर पर कोई हाफिज न हो तो तरावीह को दूसरी तरह से पढ़ना चाहिए.
02:56 PM IST