जब एटम बम के जनक ओपेनहाइमर को जवाहरलाल नेहरू ने ऑफर की थी नागरिकता, जानिए क्या है उनका भारत से कनेक्शन
J Robert Oppenheimer Jawaharlal Nehru Connection: एटम बम के जनक कहे जाने वाले अमेरिकी भौतिक विज्ञानी जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1952 में भारतीय नागरिकता ऑफर की थी.
J Robert Oppenheimer Jawaharlal Nehru Connection: "एटम बम के जनक" कहे जाने वाले अमेरिकी भौतिक विज्ञानी जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अमेरिका को थोरियम की आपूर्ति करने से रोकने की कोशिश की थी, हालांकि वह विफल रहे थे. ओपेनहाइमर की अपील अमेरिका में तत्कालीन भारतीय राजदूत, विजया लक्ष्मी पंडित को एक फोन कॉल में बताई गई थी, जिन्होंने 10 फरवरी, 1951 को लिखे एक पत्र में अपने भाई, प्रधान मंत्री नेहरू को इसकी सूचना दी थी, जिसे उनकी बेटी नयनतारा सहगल की 2014 की किताब में दोहराया गया है.
नेहरू ने ऑफर की थी भारत की नागरिकता
कई लेखों के अनुसार, देश के प्रति अपनी वफादारी के लिए दोषमुक्त किए गए, लेकिन अपनी सुरक्षा मंजूरी से वंचित ओपेनहाइमर को 1952 में नेहरू द्वारा नागरिकता की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने शायद स्वतंत्र भावना का प्रदर्शन करते हुए इससे इनकार कर दिया.
ओपेनहाइमर ने बनाया एटम बम
नेहरू के साथ ओपेनहाइमर आग्रह विशेष रूप से थोरियम के बारे में थी. सहगल की किताब के अनुसार, नेहरू को लिखे पत्र में पंडित ने लिखा था, "ओपेनहाइमर चाहते हैं कि आप (नेहरू) जानें कि परमाणु बम पर सबसे 'भयानक और घातक प्रकृति' का काम किया जा रहा है और अमेरिका घातक युद्ध की ओर बढ़ रहा है."
TRENDING NOW
Retirement Planning: रट लीजिए ये जादुई फॉर्मूला, जवानी से भी मस्त कटेगा बुढ़ापा, हर महीने खाते में आएंगे ₹2.5 लाख
SIP Vs PPF Vs ELSS: ₹1.5 लाख निवेश पर कौन बनाएगा पहले करोड़पति? जानें 15-30 साल की पूरी कैलकुलेशन, मिलेंगे ₹8.11 Cr
मजबूती तो छोड़ो ये कार किसी लिहाज से भी नहीं है Safe! बड़ों से लेकर बच्चे तक नहीं है सुरक्षित, मिली 0 रेटिंग
"ट्रूमैन और एटली द्वारा किए गए हालिया वादों के परिणामस्वरूप घातक हथियार के लिए अनुसंधान हुआ. इस उद्देश्य के लिए अधिक से अधिक थोरियम की आवश्यकता थी और अमेरिका चाहता था कि वह उपलब्ध थोरियम का अधिक से अधिक भंडारण करे.
ओपेनहाइमर ने नेहरू से किया था ये अनुरोध
"ओपेनहाइमर को विश्वास था कि वह बहुत जल्द सीधे और ब्रिटेन के माध्यम से भारत को थोरियम निर्यात रोकने से मना लेंगे. उनका मानना था कि गेहूं के लिए भारतीय अनुरोध को अमेरिका ने इसीलिए इतनी आसानी से मान लिया, क्योंकि उसे भारत से थोरियम की आवश्यकता है. थोरियम प्राप्त करने का तर्क यह था कि इसकी आवश्यकता मानवीय उद्देश्यों के लिए है. ओपेनहाइमर के अनुसार वर्तमान में ऐसा कोई उद्देश्य नहीं है. पत्र में कहा गया है, ''ओपेनहाइमर ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह स्वेच्छा से या दबाव मे अमेरिका को थोरियम न बेचे.''
एटम बम बनाने की सामग्री की मांग
अमेरिकी विदेश विभाग के उस समय के कागजात दिखाते हैं कि नेहरू और उनकी सरकार ने "रणनीतिक सामग्री" कहे जाने वाले इन खनिजों को वार्ता से दूर रखने की बहुत कोशिश की, खासकर उन खनिजों को, जिनका उपयोग परमाणु बम बनाने के लिए किया जा सकता है. लेकिन घर में बिगड़ते खाद्य संकट और अमेरिकी सरकार के अड़ियल रवैए के कारण वे असफल हो गए.
भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत लॉय वेस्ले हेंडरसन ने विदेश विभाग को गुप्त रूप से लिखे एक टेलीग्राम में लिखा, "आज सुबह बाजपेयी (विदेश मंत्रालय में शीर्ष सिविल सेवक गिरिजा शंकर बाजपेयी) से बातचीत हुई. मैंने उनसे कहा कि मैं इस बात से चिंतित हूं कि कहीं नेहरू संसद में खनिजों को न देने के लिए भारत सरकार की अनिच्छा का जिक्र न कर दें. मैंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री को इस संदर्भ को छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा."
नेहरू ने दी थी ये मंजूरी
हेंडरसन मेमो के अनुसार, बाजपेयी ने अमेरिकी राजदूत से कहा, "प्रधानमंत्री ने कैबिनेट के सदस्यों के परामर्श से यह निर्णय लिया." फिर भी नेहरू सरकार ने इन "रणनीतिक सामग्रियों" के निर्यात की अनुमति दी, जिसमें पहली बार थोरियम युक्त खनिज मोनाजाइट भी शामिल था. क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म "ओपेनहाइमर" में भगवदगीता की एक पंक्ति "अब मैं मृत्यु बन गया हूं, दुनिया का विनाशक", उस व्यक्ति के बारे में बारे में है, जिसके नेतृत्व में दुनिया ने अपना पहला परमाणु बम बनाया, जिसके प्रयोग से 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया, और फिर उन्होंने अपना बाकी समय विनाश के उस हथियार के खिलाफ अभियान चलाने में बिताया, जिसे बनाने में उन्होंने मदद की थी.
यह फिल्म काई बर्ड और दिवंगत मार्टिन जे. शेरविन की पुलित्जर पुरस्कार विजेता पुस्तक "अमेरिकन प्रोमेथियस: द ट्रायम्फ एंड ट्रेजेडी ऑफ जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर" पर आधारित है. पुस्तक के अनुसार, यह फिल्म दो महाद्वीपों के दो तीन देशों में फैले अकादमिक जगत से लेकर मैनहट्टन प्रोजेक्ट के प्रमुख के रूप में उनकी नियुक्ति तक ओपेनहाइमर की यात्रा को दर्शाती है, जो 1945 में लॉस एलामोस, न्यू मेक्सिको में अमेरिकी सरकार द्वारा बनाई गई एक गुप्त केंद्र में तीन वर्षों तक चली थी. ओपेनहाइमर अपनी रचना के बारे में निराश हो गए और परमाणु बम के खिलाफ एक प्रचारक बन गए, जिससे उन्हें अमेरिकी सरकार के साथ अपनी इक्विटी खोनी पड़ी और उनकी सुरक्षा मंजूरी छीन ली गई.
Zee Business Hindi Live TV यहां देखें
01:32 PM IST