Bakrid 2023: जानिए क्यों बकरीद को कहा जाता है कुर्बानी का दिन, क्या हैं कुर्बानी के नियम?
Bakra Eid 2023: बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. लेकिन कुर्बानी का ये चलन शुरू कैसे हुआ? यहां जानिए इसके पीछे की मान्यता और कुर्बानी के नियमों के बारे में.
Image- Freepik
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Bakrid 2023 Celebration in India: आज देश भर में बकरीद (Bakra Eid 2023) का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन को ईद उल-अज़हा (Eid al-Adha) भी कहा जाता है. ये त्योहार ईद उल-फितर के तकरीबन 70 दिन बाद मनाया जाता है. बकरीद के दिन को कुर्बानी का दिन कहा जाता है. इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. आइए आपको बताते हैं कि बकरीद के मौके पर कैसे शुरू हुआ कुर्बानी का चलन, इस्लाम में कुर्बानी को लेकर क्या हैं नियम.
ये कहानी प्रचलित है
बकरीद के दिन कुर्बानी को लेकर एक कहानी प्रचलित है. इस कहानी के मुताबिक हजरत इब्राहिम के कोई संतान नहीं थी. काफी मन्नतों के बाद उन्हें एक बेटा हुआ, जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा. इस्माइल उन्हें दुनिया में सर्वाधिक प्रिय थे. एक दिन इब्राहिम को अल्लाह ने स्वप्न में कहा कि उन्हें उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी चाहिए.
इब्राहिम समझ गए कि अल्लाह उनसे उनके बेटे की कुर्बानी चाहते हैं. अल्लाह के हुक्म को मानते हुए वो इसके लिए तैयार हो गए. कुर्बानी देते समय इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उनके मन में बेटे को लेकर किसी तरह का प्रेम न जागे. जब इब्राहिम कुर्बानी दे रहे थे, तभी छुरी के नीचे एक मेमना आ गया और कुर्बान हो गया. कुर्बानी के बाद उन्होंने आंखों से पट्टी हटाई तो देखा इस्माइल सामने खेल रहा है और नीचे मेमने का सिर कटा हुआ है. तब से इस पर्व पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया.
कुर्बानी के हैं कुछ नियम
- अल्लाह सिर्फ इंसान की मंशा को देखते हैं. वास्तव में बकरीद पर बकरे की कुर्बानी केवल प्रतीकात्मक है. कुर्बानी का असल मतलब ऐसे बलिदान से है, जो चीज आपको अति प्रिय हो और आप उसे भी अल्लाह को समर्पित कर सकें.
- नियम के अनुसार जो व्यक्ति पहले से कर्ज में डूबा हो, वो कुर्बानी नहीं दे सकता. कुर्बानी देने वाले के पास किसी भी तरह कोई कर्ज नहीं होना चाहिए.
- कुर्बानी के लिए बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है. लेकिन भारत में इनका चलन काफी कम है.
- उस पशु को कुर्बान नहीं किया जा सकता जिसको कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो, सींग या कान का भाग टूटा हो. शारीरिक रूप से दुबले-पतले जानवर की कुर्बानी भी कबूल नहीं की जाती.
- बहुत छोटे बच्चे की बलि नहीं दी जानी चाहिए. कम-से-कम उसे एक साल या डेढ़ साल का होना चाहिए.
- कुर्बानी हमेशा ईद की नमाज के बाद की जाती है. कुर्बानी के बाद मांस के तीन हिस्से होते हैं. एक खुद के इस्तेमाल के लिए, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा संबंधियों के लिए. वैसे, कुछ लोग सभी हिस्से गरीबों में बांट देते हैं.
- बकरीद के दिन कुर्बानी देने के बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान पुण्य भी करना चाहिए.
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