PM Modi Mother Death: हीराबेन मोदी का निधन, जानें उनकी मां के संघर्षों की कहानी और उनकी अनोखी सीख
Written By: ज़ीबिज़ वेब टीम
Fri, Dec 30, 2022 11:14 AM IST
PM Modi Mother Death: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन का शुक्रवार को एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 99 वर्ष की थीं. हीराबेन को स्वास्थ्य संबंधी कुछ परेशानियों के चलते बुधवार को सुबह अहमदाबाद के ‘यू एन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर' में भर्ती कराया गया था.
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काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मां को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘‘शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम... मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है. मैं जब उनसे 100वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से.
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मां ने जीवन में काफी संघर्ष किया
मोदी ने एक ब्लॉग में बताया था कि कि वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था. उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था. कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे.
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लकड़ी के घर में रहती थी मां
मोदी ने एक ब्लॉग में बताया था कि हमारे छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी. वही मचान हमारे घर की रसोई थी. मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे. सामान्य रूप से जहां अभाव रहता है, वहां तनाव भी रहता है. मेरे माता-पिता की विशेषता रही कि अभाव के बीच भी उन्होंने घर में कभी तनाव को हावी नहीं होने दिया. दोनों ने ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियां साझा की हुईं थीं.
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मां को सुबह 4 बजे उठने की आदत थी
उनकी मां समय की उतनी ही पाबंद थीं. उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी. सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं. गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं. काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं. नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” वो उन्हें बहुत पसंद है. एक लोरी भी है, “शिवाजी नु हालरडु”, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं.
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दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती मां
घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं. समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे. कपास के छिलके से रुई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं. उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटे हमें चुभ ना जाए.
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मां को दूसरे पर निर्भर रहना पसंद नहीं था
अपने काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहना, अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया. मुझे याद है, वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कत होती थीं. लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो. इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं. वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी.
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बारिश में घर में टपकता था पानी
बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टपकता था, कभी वहां से. पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं. छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था. उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं. जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है.
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मां को घर सजाने का था काफी शौक
पीएम मोदी की मां को घर सजाने का, घर को सुंदर बनाने का भी बहुत शौक था. घर सुंदर दिखे, साफ दिखे, इसके लिए वो दिन भर लगी रहती थीं. वो घर के भीतर की जमीन को गोबर से लीपती थीं. आप लोगों को पता होगा कि जब उपले या गोबर के कंडे में आग लगाओ तो कई बार शुरू में बहुत धुआं होता है. मां तो बिना खिड़की वाले उस घर में उपले पर ही खाना बनाती थीं. धुआं निकल नहीं पाता था इसलिए घर के भीतर की दीवारें बहुत जल्दी काली हो जाया करती थीं. हर कुछ हफ्तों में मां उन दीवारों की भी पुताई कर दिया करती थीं. इससे घर में एक नयापन सा आ जाता था. मां मिट्टी की बहुत सुंदर कटोरियां बनाकर भी उन्हें सजाया करती थीं. पुरानी चीजों को रीसायकल करने की हम भारतीयों में जो आदत है, मां उसकी भी चैंपियन रही हैं.
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बच्चों की तरह खुद से खिलाती थी मां
पीएम मोदी की मां साफ-सफाई को लेकर वो कितनी सतर्क रहती थी. जब भी मोदी दिल्ली से गांधीनगर जाते थे, तो मां उनको अपने हाथ से मिठाई जरूर खिलाती था. और जैसे एक मां, किसी छोटे बच्चे को कुछ खिलाकर उसका मुंह पोंछती है, वैसे ही मेरी मां आज भी मुझे कुछ खिलाने के बाद किसी रुमाल से मेरा मुंह जरूर पोंछती हैं. वो अपनी साड़ी में हमेशा एक रुमाल या छोटा तौलिया खोंसकर रखती हैं. पिताजी अपनी चाय की दुकान से जो मलाई लाते थे, मां उससे बड़ा अच्छा घी बनाती थीं. और घी पर सिर्फ हम लोगों का ही अधिकार हो, ऐसा नहीं था. घी पर हमारे मोहल्ले की गायों का भी अधिकार था. मां हर रोज, नियम से गौ माता को रोटी खिलाती थी. लेकिन सूखी रोटी नहीं, हमेशा उस पर घी लगा के ही देती थीं.
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मां के 100वें जन्मदिन पर पीएम ने लिखा ब्लॉग
मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है. जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है. दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है. मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है. और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है.
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