'देगी मिर्च से MDH मसाले सच-सच', छोटे से खोखे ने रखी थी मसालों के ब्रांड की नींव
Written By: ज़ीबिज़ वेब टीम
Thu, Dec 03, 2020 12:05 PM IST
दुनिया में पैसा कमाना कठिन काम है. दुनिया के सफल और नामचीन लोगों ने अपने इरादे और मेहनत से कई बड़े मुकाम हासिल किए हैं. ऐसे ही एक सफल इंसान की कहानी है जो सबको जीने और सफल बनने का नया अंदाज देती है. मसाला किंग के नाम से मशहूर महाशाय धर्मपाल गुलाटी कभी तांगा चलाते थे और अब उनकी गिनती देश के टॉप अरबपतियों में होती है. गुरुवार को महाशाय इस दुनिया को अलविदा कह गए. तांगे से 2 आने में सवारी बैठाने वाला यह व्यक्ति कारोबार जगत की नई ऊंचाइयों को छूता चला गया.
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किंग्स ऑफ स्पाइसेज
वह मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह हैं. हम बात कर रहे हैं एमडीएच मसाला कंपनी के मालिक महाशय धर्मपाल की. इनका जन्म 27 मार्च 1927 को सियालकोट में हुआ था. 1933 में इन्होंने पांचवी कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. 1937 में महाशय जी ने पिता की मदद से शीशे का छोटा सा बिजनेस शुरु किया. उसके बाद साबुन और दूसरे कई बिजनेस किए लेकिन उनका मन नहीं लगा. बाद में उन्होंने मसालों का कारोबार शुरू किया, जो उनका पुश्तैनी कारोबार था.
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गांधी जी को बिठाकर घुमाते थे महाशाय
27 सिंतबर 1947 में भारत बंटवारे के वक्त महाशय भारत आ गए. उनकी जेब में सिर्फ 1500 रुपए थे. उन्होंने 650 रुपए में एक तांगा खरीदा और चलाने लगे. वह दो आना प्रति सवारी लेते थे. धर्मपाल ने कई बार अपने तांगे पर गांधीजी को बिठाकर शहर घुमाया है. उसके बाद उन्होंने एक खोखा खरीदा और उसमें अपना मसालों का बिजनेस देगी मिर्च वालों के नाम से फिर से शुरु किया. 10 अक्टूबर 1948 में धर्मपाल ने अपना तांगा और घोड़ा बेच दिया. सियालकोट की एक बड़ी दुकान से उठकर धर्मपाल का पूरा परिवार एक छोटे से खोखे में आ पहुंचा. लेकिन आगे चल कर धर्मपाल ने मिर्च मसालों का जो साम्राज्य स्थापित किया उसकी नींव इसी छोटे से खोखे पर रखी गई थी. अखबारों में विज्ञापन के जरिए जैसे-जैसे लोगों को पता चला कि सियालकोट की देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में हैं धर्मपाल का कारोबार तेजी से फैलता चला गया.
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छोटी सी पूंजी से शुरू किया कारोबार
महाशय धर्मपाल के परिवार ने छोटी सी पूंजी से कारोबार शुरू किया था लेकिन, कारोबार में बरकत के चलते वह दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में दुकान दर दुकान खरीदते चले गए. परिवार ने पाई-पाई जोड़कर अपने धंधे को आगे बढ़ाया और मिर्च-मसालों की बिक्री जब ज्यादा होने लगी तो उनकी पिसाई का काम घर के बजाए अब पहाड़गंज की मसाला चक्की में होने लगा था.
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मुश्किल ही बनी कामयाबी
सियालकोट के दिनों से ही मसालों की शुद्धता गुलाटी परिवार के धंधे की बुनियाद थी. यही वजह थी कि धर्मपाल ने मसाले खुद ही पीसने का फैसला कर लिया. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. वो भी उन दिनों में जब बैंक से कर्ज लेने का रिवाज नहीं था. लेकिन महाशय धर्मपाल की ये मुश्किल ही उनकी कामयाबी की वजह बन गई. गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई थी. 93 साल के लंबे सफर के बाद सियालकोट की महाशियां दी हट्टी आज दुनिया भर में एमडीएच के रूप में मसालों का ब्रांड बन चुकी है.
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अरबों का है कारोबार
98 साल के धर्मपाल मसालों की दुनिया में बेमिसाल रहे. उनकी कंपनी सालाना अरबों रुपयों का कारोबार करती है. लेकिन एक तांगे वाले से अरबपति बनने की उनकी ये अदभुत कामयाबी 60 सालों की कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है. दौलत के ढेर पर बैठकर भी महाशय धर्मपाल ईमानदारी, मेहनत और अनुशासन का पुराना पाठ नहीं भूले. उनके मसाले दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में इस्तेमाल किए जाते हैं और इसके लिए उन्होंने देश और विदेश में मसाला फैक्ट्रियों का एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया है.
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कहां-कहां है कारोबार
दुबई में फैक्ट्री, लंदन, शारजाह, यूएस में ऑफिस है. MDH के पूरी दुनिया में डिस्ट्रिब्यूटर हैं. इसके अलावा गल्फ देशों में भी आपको एमडीएच के मसाले मिलेंगे. ऑस्ट्रेलिया चले जाएं, साउथ अफ्रीका चले जाएं, न्यूजीलैंड चले जाएं, हांगकांग, सिंगापुर यहां तक चीन और जापान में भी MDH है. 40 सुपर स्टॉक हैं पूरे इंडिया में और 1000 डिस्ट्रिब्यूटर हैं. हर महीने छह लाख आउटलेटस को केटर करते हैं.
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स्कूल और अस्पताल के भी मालिक
महाशय जी सिर्फ मसालों का बिजनेस ही नहीं चलाते हैं बल्कि उनके कई अस्पताल और स्कूल भी हैं. जिनमें गरीब और बेसहारा लोगों को सहारा मिलता है. 86 वर्षीय महाश्य धर्मापाल जी के एमडीएच और देगी मिर्च नाम से मसाले दुनिया भर में मशहूर हैं. देशभर में एमडीएच के 1000 से ज्यादा थोक और 4 लाख से ज्यादा रिटेल डीलर्स हैं. एमडीएच के 52 प्रोडक्ट 140 से ज्यादा अलग अलग पैकेट्स में उपलब्ध हैं.
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