Jyotiba Phule Jayanti: पीएम मोदी ने महात्मा फुले की जयंती पर दी श्रद्धांजलि, कहा- पिछड़ों के विकास में दिया बड़ा योगदान
Jyotiba Phule Jayanti: 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर पूरा देश उनको श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.
Jyotiba Phule Jayanti: "भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान और वैवाहिक संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे. सभी जीवों में मनुष्य श्रेष्ठ है और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ है." यह कथन महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) के हैं. आज (मंगलवार) 11 अप्रैल, 2023 को देश उनकी जयंती के अवसर पर उन्हें याद कर रहा है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ समेत कई हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
पीएम मोदी ने भी दी श्रद्धांजलि
पीएम मोदी (PM Modi) ने भी महान समाजसुधारक महात्मा फुले को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी. अपने ट्वीट में पीएम मोदी ने सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण में महात्मा फुले के विराट योगदान को याद किया. उन्होंने कहा कि उनके विचार करोड़ों लोगों को आशा और शक्ति प्रदान करते हैं.
(रिपोर्ट-पीबीएनएस)
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उपराष्ट्रपति ने दी श्रद्धांजलि
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है. एक ट्वीट में उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे प्रतिष्ठित समाज सुधारक थे और उन्होंने जाति संबंधी भेदभाव और सामाजिक असमानता को खत्म करने के लिए अथक प्रयत्न किए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने वाले महात्मा फुले अपने पीछे उल्लेखनीय विरासत छोड़ गए हैं जो सभी को प्रेरित करती रहेगी.
शिक्षा को बढ़ावा दिया
महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने सामाजिक न्याय के लिए, जातिगत भेदभाव और समाज में फैले अंधविश्वास को ख़त्म करने के लिए और महिला सशक्तिकरण के लिए निरंतर संघर्ष किया. इसके साथ ही उन्होंने समाज कि कुरीतियों से मुक्त कराने, बालिकाओं और दलितों को शिक्षा से जोड़ने का काम किया. महात्मा ज्योतिबा फुले का कहना था कि शिक्षित समाज ही उचित और अनुचित में भेद कर सकता है, समाज में उचित और अनुचित का भेद होना चाहिए.
महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला
फ्रांस में मानवाधिकारों के लिए क्रांति शुरू हुई, उसी दौर में महात्मा ज्योतिबा फुले ने क्रांतिकारी कदम उठाते हुए एक जनवरी 1848 को पुणे में महिलाओं के लिए का पहला स्कूल खोला और अंततः नारी शिक्षा के प्रणेता कहलाए. इस दौरान उन्हें बहुत विरोध, अपमान सहने पड़े लेकिन अपने मित्रों के सहयोग और पत्नी ज्योति सावित्री बाई फुले की मदद से उन्होंने अपना मानवतावादी संघर्ष जारी रखा.
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04:39 PM IST