Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी केस में बड़ा फैसला, शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच के लिए कोर्ट ने किया इनकार
Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी केस में वाराणसी जिला अदालत (Varanasi District Court) ने फैसला सुनाते हुए हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया. वाराणसी की सेशन कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराया गया था.
Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी केस में बड़ा फैसला, शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच के लिए कोर्ट ने किया इनकार
Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी केस में बड़ा फैसला, शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच के लिए कोर्ट ने किया इनकार
Gyanvapi Carbon Dating: ज्ञानवापी केस में वाराणसी जिला अदालत (Varanasi District Court) ने फैसला सुनाते हुए हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Shivling Carbon Dating) नहीं होगी. वाराणसी जिला जज डॉ. एके विश्वेश ने मस्जिद परिसर में कार्बन डेटिंग और 'शिवलिंग' की वैज्ञानिक जांच की मांग वाली हिंदू पक्ष की मांग को खारिज कर दिया. वाराणसी जिला जज ने पिछले सप्ताह सुनवाई के बाद ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग के कार्बन डेटिंग जांच और पूरे परिसर की ASI से सर्वेक्षण की मांग पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.
चार महिलाओं ने की थी कार्बन डेटिंग की मांग
हिंदू पक्ष जिसे शिवलिंग कह रहा है उसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है. हिंदू पक्ष की मांग थी कि कथित शिवलिंग की जांच के लिए कार्बन डेटिंग कराई जाए. कार्बन डेटिंग की मांग चार महिलाओं ने की थी. जिसके बाद शुक्रवार को वाराणसी के जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत इस मामले में फैसला सुनाया है.
11 अक्टूबर को फैसला रखा था सुरक्षित
कार्बन डेटिंग पर 11 अक्टूबर को जिला अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के मौखिक जवाब दाखिल करने के आग्रह को स्वीकार करते हुए 7 अक्टूबर को फैसले की तारीख टाल दी थी.
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) से किसी भी चीज की उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है. इसलिए शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग की गयी थी. इससे यह आसानी से पता लग जाता कि शिवलिंग का निर्माण कब करवाया गया होगा? कार्बन डेटिंग से इमारतों के बनने की तारीख का पता लगाया जाता है.
किसने किया था आविष्कार
रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के बिलियर्ड लिबी और उनके दोस्तों ने किया था. इस काम के उन्हें 1960 में केमिकल का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था.
किसी भी वस्तु की पता की जा सकती है उम्र
इस तकनीक के जरिए वैज्ञानिक लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु और पराग, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग और रक्त अवशेष, पत्थर और मिट्टी से भी उसकी बेहद करीबी वास्तविक आयु का पता लगा सकते हैं. किसी भी चट्टान पर मिले रेडियोएक्टिव आइसोटोप के आधार पर उनकी आयु का पता लगाया जा सकता है.
कार्बन डेटिंग का तरीका ?
वायुमंडल में कार्बन के तीन तरह के आइसोटोप पाए जाते हैं. ये कार्बन- 12, कार्बन- 13 और कार्बन- 14 के रूप में जाने जाते हैं. कार्बन डेटिंग के माध्यम से इनका कार्बन-12 से कार्बन-14 के बीच का अनुपात निकाला जाता है. जब किसी जीव की मृत्यु होती है तब ये वातावरण से कार्बन लेना और देना देता है. इस अंतर के आधार पर किसी भी अवशेष की उम्र पता लगाई जाती है. आम तौर पर कार्बन डेटिंग की मदद से केवल 50 हजार साल पुराने अवशेष का ही पता लगाया जा सकता है.
कार्बन डेटिंग से जुड़ी जानकारी
- जिस चीज पर कार्बन की मात्रा मौजूद होने की कार्बन डेटिंग हो सकती है.
- कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन-14 का होना जरूरी है.
- कार्बन-12 स्थिर होता है, इसकी मात्रा घटती नहीं है.
- कार्बन-14 रेडियोएक्टिव होता है और इसकी मात्रा घटने लगती है.
- कार्बन-14 लगभग 5,730 सालों में अपनी मात्रा का आधा रह जाता है. इसे हाफ-लाइफ कहते हैं.
03:42 PM IST