आखिर क्या होता है ई-फ्यूल(e-fuel), जानकार क्यों मान रहे इसे भविष्य का पेट्रोल-डीजल, जानिए हर सवाल का जवाब
e fuels: रिन्युएबल या डीकार्बनाइज्ड इलेक्ट्रिसिटी से पैदा होने वाले लिक्विड या गैस फॉर्म के सभी तरह के फ्यूल को ई-फ्यूल कहते हैं. जैसे ई- मिथेन, ई-किरोसिन, ई-मेथेनॉल को ई-फ्यूल कहते हैं.
महंगे पेट्रोल-डीजल (Petrol Price) से सफर काफी महंगा होता जा रहा है. दूसरी ओर इनसे वायु प्रदूषण भी हो रहा है. किसी भी देश या सरकार (Modi Government) के लिए दोनों ही मुद्दे काफी अहम हैं. क्योंकि इसका सीधा असर आम लोगों की जेब के साथ-साथ हेल्थ पर भी पड़ रहा है. ऐसे में इसके विकल्प के तौर पर ई-फ्यूल (e-fuels) पहली पसंद बन रहा है. दुनियाभर में ई-फ्यूल को काम तेजी हो रहा है. इसमें काफी हद तक सफलता भी मिल रही है. भारत की बात करें तो सरकार इथेनॉल फ्यूल (ई-फ्यूल) को काफी प्रोमोट कर रही है. मौजूदा समय में देश में इथेनॉल (ethanol fuel price) के इस्तेमाल का 10% से ज्यादा हो रहा है. सरकार ने 2025 तक 20% का लक्ष्य रखा है. ऐसे में हमें यह समझना जरूरी है कि ई-फ्यूल क्या होता है?
क्या होता है ई-फ्यूल?
रिन्युएबल या डीकार्बनाइज्ड इलेक्ट्रिसिटी से पैदा होने वाले लिक्विड या गैस फॉर्म के सभी तरह के फ्यूल को ई-फ्यूल कहते हैं. जैसे ई- मिथेन, ई-किरोसिन, ई-मेथेनॉल को ई-फ्यूल कहते हैं. यहां रिन्युएबल का मतलब सोलर या विंड पावर से है. आसान भाषा में समझें तो ई-फ्यूल एक जटिल हाइड्रोकार्बन है, जिसे इसे विंड पावर का इस्तेमाल करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग करने के बाद हाइड्रोजन को कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिलाया जाता है जो हवा से छनकर मेथनॉल बनाता है. फिर मेथनॉल से एक्सॉनमोबिल लाइसेंस प्राप्त तकनीक का उपयोग करके गैसोलीन में बदला हो जाता है.
ई-फ्यूल के फॉर्म
- गैस ई-फ्यूल: रिन्युएबल हाइड्रोजन से पैदा होने वाला लिक्विड H2 और ई-मेथेन से पैदा होने वाले पैदा होने वाले e-GNL शामिल हैं.
- लिक्विड ई-फ्यूल: इसमें ई-मेथेनॉल और ई-क्रूड जैसे ई-फ्यूल शामिल हैं, जिन्हें सिंथेटिक क्रूड ऑयल भी कहा जाता है. यह ई-किरोसिन और ई-डीजल से पैदा होते हैं.
- गैस या लिक्विड फॉर्म: सिंथेटिक अमोनिया
जलवायु को लेकर काफी अहम है ई-फ्यूल
सिंथेटिक ई-फ्यूल के प्रोडक्शन (e-fuel production) में कई साल लगे हैं. दुनियाभर में इसके इस्तेमाल को काफी प्रोत्साहित किया जा रहा है. क्योंकि इनका असर जलवायु पर नहीं होता है. भारत में भी इसको लेकर काफी काम किया जा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने जून में हुए 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-26) में कहा था कि भारत 2070 तक जीरो कार्बन एमिसन (Zero Carbon Emission) हो जाएगा. इसके लिए 10000 अरब डॉलर के निवेश की भी बात कही गई है.
वैश्विक स्तर पर ई-फ्यूल को लेकर तैयारियां
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दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में ई-फ्यूल को काफी काम किया जा रहा है. इस दिशा में दुनिया का पहला कमर्शियल ई-फ्यूल प्लांट दक्षिणी चिली में बनाया जा रहा है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आने वाले दिनों में दुनियाभर में लगभग हर जगह बिजली, पानी और हवा को मिलाकर फ्यूल बनाया जाने लगेगा. क्योंकि क्रूड (Crude Price) और नेचुरल गैस (Natural Gas) की कीमतों पर जियोपॉलिटिकल टेंशन (geopolitics tension) का काफी असर पड़ता है, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है. साथ ही इकोनॉमिक ग्रोथ पर भी पड़ता है.
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भारत में ई-फ्यूल का इस्तेमाल
भारत में वाहनों के साथ-साथ विमानों में भी एथेनॉल (ethanol use in India)का इस्तेमाल बढ़ा है. गन्ने और गेहूं, टूटे चावल जैसे खराब हो चुके खाद्यान्न, कृषि अवशेषों से एथेनॉल निकालकर फ्यूल तैयार किया जा रहा है. इससे गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषण में कमी आएगी. दरअसल, भारत इस दिशा में ब्राजील और अमेरिका के पैटर्न के अपना रहा है. चुंकि ई-फ्यूल इंजन के लिए पेट्रोल-डीजल के मुकाबले ज्यादा अच्छा होता है. क्योंकि इससे इंजन की लाइफ बढ़ती है. इससे आम लोगों में इसकी मांग बढ़ सकती है. हालांकि, ई-फ्यूल की कीमत अन्य के मुकाबले काफी ज्यादा है.
04:03 PM IST