Sugarcane Cultivation: गन्ने की खेती से पहले जान लें बुवाई के ये 3 तरीके, होगी ताबड़तोड़ कमाई
Sugarcane Cultivation: अगर किसान गन्ने की खेती से ज्यादा मुनाफा पाना चाहते हैं तो इसकी बुवाई के तरीके जान लें. सही तरीके से बुवाई करने से फसल का उत्पादन बढ़ता है, जिससे कमाई भी बढ़ती है.
Sugarcane Cultivation: गन्ना एक प्रमुख व्यवसायिक फसल है. विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती. इन्हीं विशेष कारणों से गन्ना की खेती (Sugarcane Farming) अपने आप में सुरक्षित व फायदेमंद खेती है. अगर किसान गन्ने की खेती से ज्यादा मुनाफा पाना चाहते हैं तो इसकी बुवाई के तरीके जान लें. सही तरीके से बुवाई करने से फसल का उत्पादन बढ़ता है, जिससे कमाई भी बढ़ती है.
क्यों करें गन्ना की खेती
- प्रचलित फसल चक्रों जैसे मक्का-गेंहू या धान-गेंहू, सोयाबीन-गेंहू की तुलना में अधिक मुनाफा मिलता है.
- यह कम से कम जोखिम भरी फसल है जिस पर रोग, कीट लगता है और विपरीत परिस्थितियों का अपेक्षाकृत कम असर होता है.
- गन्ना के साथ अन्तवर्तीय फसल लगाकर 3-4 माह में ही शुरुआती लागत पाया जा सकता है.
- गन्ना की किसी भी अन्य फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं है. वर्ष भर उपलब्ध साधनों और मजदूरों का इस्तेमाल होता है.
- गन्ना एक प्रमुख बहुवर्षीय फसल है,. अच्छे प्रबंधन से साल दर साल 1,50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.
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गन्ना बीज का चुनाव करते समय सावधानियां
- उन्नत जाति के स्वस्थ निरोग शुद्ध बीज का ही चुनें.
- गन्ना बीज की उम्र लगभग 8 माह या कम हो तो अंकुरण अच्छा होता है. बीज ऐसे खेत से लें जिसमें रोग व कीट का प्रकोप न हो और जिसमें खाद पानी समुचित मात्रा में दिया जाता रहा हो.
- जहां तक हो नर्म गर्म हवा उपचारित (54 से.ग्रे. एवं 85 प्रतिशत आर्द्रता पर 4 घंटे) या टिश्यू कल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें.
- हर 4-5 साल बाद बीज बदल दें क्योंकि समय के साथ रोग व कीट ग्रस्तता में बढ़ोतरी होती जाती है.
- बीज काटने के बाद कम से कम समय में बोनी कर दें.
गन्ने की उन्नत किस्में
गन्ने की फसल से भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्म के बीज का प्रयोग करना जरूरी है. उन्नत किस्मों से 15-20 फीसदी अधिक उत्पादन मिलता है. जल्द पकने वाली किस्में को.सी.-671, को.जे.एन. 86-141, को.86-572, को. 94008, को.जे.एन.9823 है. जबकि मध्यम व देर से पकने वाली किस्में- को.शा. -96275 को.शा.-97261 यू.पी-0097 ह्रदय), यू०पी०-39, को०शा०-96269 (शाहजहॉ), को.शा.- 99259 (अशोक), को.से.-1424, को.शा.-767, को.शा.-8432, को.शा.-92423, को.शा.-95422, को.शा.-97264, को.पन्त.-84212 आदि.
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बुवाई की विधि
1. समतल विधि
इस विधि में 90 सेमी के अन्तराल पर 7-10 सेमी गहरा कॅूड डेल्टा हल से बनाकर बोया जाता है. यह विधि साधारण मिट्टी परिस्थितियों में उन किसानों के लिए उपयुक्त है जिनके पास सिंचाई, खाद और श्रम के साधन सामान्य हो. बुवाई के उपरान्त एक भारी पाटा लगाना चाहिए.
2. नाली विधि
उस विधि में बुवाई के एक या डेढ़ माह पूर्व 90 सेमी के अंतराल पर लगभग 20-25 सेमी गहरी नालियां बना ली जाती हैं, इस प्रकार तैयार की गयी नाली में गोबर की खाद डालकर सिंचाई व गुड़ाई करके मिट्टी को अच्छी प्रकार तैयार कर लिया जाता है. जमाव के बाद फसल के क्रमिक बढ़वार के साथ मेड़ों की मिट्टी नाली में पौधे की जड़ पर गिराते जाते हैं, जिससे अंततः नाली के स्थान पर मेड़ और मेड़ के स्थान पर नाली बन जाती है, जो सिंचाई नाली के साथ-साथ वर्षाकाल में जल निकास का कार्य भी करती है. यह विधि दोमट भूमि तथा भरपूर निवेश उपलब्धता के लिए बेहतर है. इस विधि से अपेक्षाकृत अधिक उपज होती है, लेकिन श्रम अधिक लगता है.
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3. दोहरी पंक्ति विधि
इस विधि में 90-90 सेमी के अन्तराल पर अच्छी प्रकार तैयार खेत में लगभग 10 सेमी गहरे कूंड बना लिये जाते हैं. यह विधि भरपूर खाद पानी की उपलब्धता में अधिक उपजाऊ भूमि के लिए बेहतर है. इस विधि से गन्ने की अधिक उपज प्राप्त होती है.
04:56 PM IST