औषधीय गुणों से भरपूर जिमीकंद की करें खेती, होगी तगड़ी कमाई, जानिए सभी जरूरी बातें
जिमीकंद का रकबा काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसमें अन्य सब्जियों की तुलना में गर्म तापमान में भी अच्छा उत्पादन क्षमता है. इसके कंदों से चिप्स बनते हैं साथ ही तनाों और पत्तियों का उपयोग सब्जी के लिए किया जाता है. इसलिए किसानों के लिए जिमीकंद की खेती मुनाफे वाला सौदा साबित हो सकता है.
जिमीकंद सबसे लोकप्रिया कंद फसलों में से एक है. (Image- ICAR)
जिमीकंद सबसे लोकप्रिया कंद फसलों में से एक है. (Image- ICAR)
जिमीकंद सबसे लोकप्रिय कंद फसलों में से एक है, जिसका सब्जी के रूप में किया जाता है. जिमीकंद को सूरन नाम से जाना जाता है. इसमें पोषण और औषधीय दोनों गुण होते हैं और आमतौर पर इसे पकी हुई सब्जी के रूप में खाया जाता है. इसकी खेती का रकबा काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसमें अन्य सब्जियों की तुलना में गर्म तापमान में भी अच्छा उत्पादन क्षमता है. इसके कंदों से चिप्स बनते हैं साथ ही तनाों और पत्तियों का उपयोग सब्जी के लिए किया जाता है. इसलिए किसानों के लिए जिमीकंद की खेती मुनाफे वाला सौदा साबित हो सकता है.
औषधीय गुण
अन्य कंदों की तुलना में जिमीकंद के ई औषधीय उपयोग हैं जिन्हें व्यापक रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा निर्धारित किया गया है. इसे पोटेशियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम, जस्ता, फॉस्फोरस और कैल्शियम जैसे तत्वों का समृद्ध स्रोत माना जाता है. यह एक अच्छा एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट होने के साथ-साथ डिटॉक्सिफायर भी है. इसका उपयोग कार्मिनेटिव के रूप में किया जाता है और यह एक अच्छा कृमिनाशक भी होता है.
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जिमीकंद की किस्मों का चयन
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जिमीकंद की कई किस्में हैं. गजेंद्र, श्री पद्मा और कुसुम. गजेंद्र आंध्र प्रदेश के कोव्वूर क्षेत्र का है, जोकि 50-60 टन प्रति हेक्टेयर उपज देने में सक्षम है. जिमीकंद की श्री पद्मा किस्म सेंट्रल ट्यूबर क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट, तिरुअनंतपुर में विकसित की गई है. इसकी उपज क्षमता 40 टन प्रति हेक्टेयर है. वहीं कुसुम किस्म बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय (पश्चिम बंगाल) द्वारा विकसित की गई है और इसकी उपज क्षमता और अन्य विशेषताएं 'गजेंद्र' के समान ही हैं.
कैसे करें जिमीकंद की खेती
आईसीएआर के मुताबिक, जिमीकंद की खेती अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में की जा सकती है. इसकी सफल खेती के लिए 6-8 महीने की अवधि तक 30-35 डिग्री सेल्सियस का तापमान की जरूरत होती है. आमतौर पर इसे वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है.
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रोपण से पहले खेत को जुताई करके पूरी तरह से समतल किया जाता है. गड्ढे बनाकर उसे सूखे गोबर की खाद और लकड़ी की राख से आधार भरा जाता है. गड्ढों को हरी पत्तियों या धान के भूसे जैसी जैविक पलवार से ढक दिया जाता है. नवंबर महीने में इसे काटा जाता है. काटे गए कंदों को हवादार कमरों में अच्छी तरह रखा जाता है.
8-9 महीने तैयार हो जाती है फसल
जिमीकंद में तो ऐसे कीटों और रोगों से मुक्त होता है. इस फसल में लगने वाले प्रमुख रोग कॉलर रॉट और जिमीकंद मोजौक रोग हैं. कॉलर रॉट स्क्लेरोटियम रॉल्पिस के कारण होता और आमतौर पर यह 2 से 3 महीने पुराने पौधों में पाया जाता है. जिमीकंद मोजैक रोग एफिड्स जैसे कीट वैक्टर के माध्यम से फैलता है और इसे रोगमुक्त रोपण सामाग्री और कीटनाशकों के उपयोग से नियंत्रित किया जाता है.
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पौधे के ऊपरी भाग के पूरी से सूख जाने पर भूमिगत कंद को खुदाई करके लिया जाता है. फसल रोपने के बाद 8 से 9 महीने में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. हालांकि बेहतर कीमत पाने के लिए 6 महीने बाद भी कंदों की खुदाई की जा सकती है. जिमीकंद की औसत उपज लगभग 30 से 40 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है.
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02:22 PM IST