कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की धान की नई वेरायटी, पराली जलाने की समस्या को करेगा कम, मिलेगी बंपर पैदावार
New Variety of Paddy: कृषि वैज्ञानिकों ने धान की नई वेरायटी BRR2183 विकसित की है. यह पुआल जलाने की समस्या को कम करेगा, खेतों में आसानी से गल जाएंगे, उपज भी अधिक मिलेगा.
(Image- Freepik)
(Image- Freepik)
New Variety of Paddy: पराली जलाने की समस्या से जल्द छुटकारा मिल सकता है. कृषि वैज्ञानिकों ने पुआल जनाने की समस्या को कम करने वाली धान की नई किस्म बीआरआर 2183 (BRR2183) विकसित की है. यह पराली जलाने की समस्या को कम करने में मदद करेगा. इस धान (Paddy) की खासियत है कि यह खेत में आसानी से गल जाता है. इसलिए किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
अन्य वेरायटी से 15-20 दिन पहले तैयार हो जाएगी फसल
धान की नई किस्मत के उत्पादन में खाद और पानी की 30 से 35 फीसदी की बचत होगी. पौधे की लंबाई 110 सेमी होगी और औसत उत्पादन 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलेगा. यह अधिक उपज वाले अन्य वेरायटी से 15-20 दिन पहले तैयार हो जाएगी. इससे खेत अक्टूबर के अंत या देरी से बुवाई में नवंबर के पहले हफ्ते में खाली हो जाएगी और इसका पुआल भी आसानी से खेत में गल जाता है.
ये भी पढ़ें- पान की खेती से करें कमाई, सरकार भी देगी 35250 रुपये
TRENDING NOW
भारी गिरावट में बेच दें ये 2 शेयर और 4 शेयर कर लें पोर्टफोलियो में शामिल! एक्सपर्ट ने बताई कमाई की स्ट्रैटेजी
Adani Group को एक ही दिन में दूसरा झटका! NSE ने ग्रुप कंपनियों से मांगी सफाई, ₹2.45 लाख करोड़ का मार्केट कैप स्वाहा
EMI का बोझ से मिलेगा मिडिल क्लास को छुटकारा? वित्त मंत्री के बयान से मिला Repo Rate घटने का इशारा, रियल एस्टेट सेक्टर भी खुश
मजबूती तो छोड़ो ये कार किसी लिहाज से भी नहीं है Safe! बड़ों से लेकर बच्चे तक नहीं है सुरक्षित, मिली 0 रेटिंग
Adani Group की रेटिंग पर Moody's का बड़ा बयान; US कोर्ट के फैसले के बाद पड़ेगा निगेटिव असर, क्या करें निवेशक?
बिहार सरकार कृषि विभाग के मुताबिक, बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की नई वेरायटी विकसित की है. इस धान की किस्म को बिहार, यूपी, झारखंड, ओडिशा, हरियाणा, गुजरात सहित 6 राज्यों के किसानों को फायदा होगा. बारिश पर निर्भर और सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी है. यह जलवायु अनुकूल वेरायटी है.
बीमारी और कीट कम लगेंगे
यह प्रभेद कंडुआ-लेड़ा, जीवाणु झुलसा, अच्छद अंगमारी-गलका और झोंका रोग के प्रति प्रतिरोधी है. तना छेदक, भूरा कीट-वीएचपी और पत्तीलपेटक के प्रति सहनशील है. इस किस्म में प्रति पौध 18-20 कल्ले जिसमें बालियां होती है. प्रत्येक बालियां 28-30 सेंटीमीटर लंबी, जिसमें दोनों की संख्या 300-450 तक होती है. 1000 दानों का वजर 20 से 21 ग्राम होता है. इसके दाने का रंग सुनहरा, मंसूरी या स्वर्ण जैसा होता है. धान से 65 फीसदी से अधिक चावल निकलता है. चावल भी मुलायम और भुरभुरा होता है.
ये भी पढ़ें- कम लागत में चाहिए गेहूं का बंपर उत्पादन तो इस तकनीक से करें बुवाई, मिलेगा ज्यादा मुनाफा
राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण अंतिम चरण में
परीक्षम पिछले 3 वर्षों से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु में किया जा रहा है.
02:16 PM IST