RBI Monetary Policy: रेपो रेट बढ़ने के बाद भी आप नहीं बढ़ने देना चाहते EMI का बोझ, तो ये तरीके आएंगे काम
आरबीआई के रेपो रेट में इजाफा करने के बाद आपके लोन की ब्याज दरों का बढ़ना तय है, यानी आम आदमी पर अब ईएमआई का बोझ बढ़ेगा. जानिए इसे कैसे नियंत्रित कर सकते हैं.
RBI Monetary Policy: रेपो रेट बढ़ने के बाद भी आप नहीं बढ़ने देना चाहते EMI का बोझ, तो ये तरीके आएंगे काम
RBI Monetary Policy: रेपो रेट बढ़ने के बाद भी आप नहीं बढ़ने देना चाहते EMI का बोझ, तो ये तरीके आएंगे काम
RBI Monetary Policy Updates: महंगाई को काबू करने के इरादे से आरबीआई ने एक बार फिर से रेपो रेट में इजाफा कर दिया है. रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में 0.25 bps की बढ़ोतरी का ऐलान किया है. इसी के साथ रेपो रेट 6.25% से बढ़कर 6.50% हो गया है. रेपो रेट वो ब्याज दर है, जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों (Commercial Banks) और दूसरे बैंकों को लोन देता है.
जब बैंक महंगी ब्याज दरों पर कर्ज लेते हैं तो ग्राहकों को भी महंगी ब्याज दरों पर ही कर्ज देते हैं यानी रेपो रेट बढ़ने से अब आपके लोन की किस्त भी महंगी होना तय हैं. लेकिन अगर आप रेपो रेट बढ़ने के बाद भी अपने ऊपर ईएमआई का बोझ नहीं बढ़ने देना चाहते, तो जानिए वो तरीके जिनसे आप अपने ईएमआई बोझ को नियंत्रित रख सकते हैं और अपने घर के बजट को बिगड़ने से बचा सकते हैं.
लोन की अवधि बढ़वाएं
अगर आपकी बढ़ी हुई ईएमआई से घर के बजट पर बहुत ज्यादा असर पड़ रहा है, तो आप अपने लोन की अवधि को बढ़वा सकते हैं. इससे आपकी ईएमआई छोटी हो जाएगी. हालांकि लोन पीरियड को बढ़वाने का एक बड़ा नुकसान ये है कि आपको ब्याज ज्यादा देना होता है.
प्रीपेमेंट करें
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अगर आपके पास एकमुश्त थोड़ा पैसा है, तो आप प्रीपेमेंट करके अपने लोन के बोझ को कुछ हद तक कम कर सकते हैं. आप साल में कम से कम एक बार प्री-पेमेंट कर सकते हैं. इससे आपका प्रिंसिपल अमाउंट यानी मूलधन कम होता है, साथ ही कुल ब्याज भी कम होता है. इससे आपकी ईएमआई भी छोटी हो जाती है. अगर आप बीच-बीच में प्रीपेमेंट करते रहते हैं तो आपका लोन भी समय से पहले ही खत्म हो सकता है.
रीफाइनेंस करें
अगर आपको लगता है कि आपका बैंक ज्यादा ब्याज ले रहा है, जबकि अन्य बैंक में होम लोन उसकी तुलना में कम ब्याज पर है, तो आप रीफाइनेंस यानी बैलेंस ट्रांसफर का ऑप्शन चुन सकते हैं. लेकिन बैलेंस ट्रांसफर कराते समय आपको प्रोसेसिंग फीस और MOD चार्जेस जैसे तमाम खर्च भी देने होते हैं, इसलिए बैलेंस ट्रांसफर के ऑप्शन को तभी चुनें जब लोन लिए हुए आपका कुछ ही समय हुआ हो और आपका आधे से ज्यादा समय का लोन बाकी हो.
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11:14 AM IST