रिपोर्ट रौशन यादव: अगर आपको जल्द से जल्द मिलिनीयर बनना है, तो बिना देर किए बिलियन डॉलर खर्च कर नई एयरलाइन शुरू कर दीजिए।" ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन की सालों पहले कही यह बात शुरू में ज्यादातर लोगों को मजाक लग सकती है. लेकिन जब हम एयरलाइन सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का इतिहास देखते हैं, तब हमें रिचर्ड की कही बात की गंभीरता समझ आती है.

एविएशन सेक्टर का इतिहास

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रिचर्ड की बातों को रिसर्च के जरिए साबित करने के लिए एविएशन सेक्टर से जुड़ी दुनियाभर की कंपनियों का हिसाब-किताब निकालने की जरूरत भी नहीं है. हम बस अपने देश के ही एविएशन सेक्टर का वर्तमान और इतिहास खंगालकर समझ सकते हैं कि क्यों एविएशन सेक्टर को सफेद हाथी कहा जाता है. वर्तमान में तो स्पाइसजेट की कहानी सब कुछ कह जाती है और रही-सही बात किंगफिशर और एयर डेक्कन की बर्बादी का इतिहास समझा जाते हैं.

सेक्टर ने नए खिलाड़ियों की एंट्री

लेकिन इन सबके बावजूद रिस्क है तो इश्क़ है वाली बात को चरितार्थ करते हुए कुछ समय पहले ही घाटे का सौदा समझे जाने वाले एविएशन सेक्टर में 2-2 महारथियों ने अपने कदम रखे हैं. पहले तो टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया का हाथ थाम एक बार फिर एविएशन सेक्टर में अपने पैर जमाने की जुर्रत की. इसके बाद भारत के वॉरेन बफेट कहे जाने वाले दिवंगत अरबपति निवेशक राकेश झुनझुनवाला भी अपनी अकासा एयरलाइन के साथ हवाई मुकाबले में शामिल हो गए.

एविएशन सेक्टर का सुनहरा भविष्य

इस बात पर तो हर कोई सहमत है कि आने वाला समय भारत का है. तो जाहिर-सी बात है कि जब देश तरक्की की राह पर बढ़ेगा तो हर बढ़ती तारीख के साथ आम भारतीयों की आमदनी भी बढ़ेगी और साथ ही खर्च करने की कूवत भी. और लोगों के खर्च करने की यही कूवत एविएशन सेक्टर की किस्मत बदलने का काम करेगी. AAI यानी एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुमान के मुताबिक FY2019-20 में 34 करोड़ रहा सालाना एयर पैसेंजर ट्रैफिक FY2032-33 तक बढ़कर 83 करोड़ से ज्यादा हो जाएगा. महज 10-12 सालों में एयर पैसेंजर ट्रैफिक में होने वाले इस करीब 145% बढ़ोतरी की वजह ही नए प्लेयर्स को घाटे का घूंट पीने के लिए बदनाम एविएशन सेक्टर में खींच लाई है.

इंडिगों का बढ़ता दबदबा

लेकिन ठहरिए, आंकड़ों के चलते आंखों के सामने अचानक से बागों में जो बहार नजर आने लगा है, वो फिलहाल सिर्फ बाहर-बाहर की ही बात है. क्योंकि हर कारोबार की तरह यहां भी सारे क्रियाकलापों के मूल में तो अंततः मुनाफा ही मायने रखता है. एविएशन सेक्टर में जमे रहने की सारी रस्साकशी यहीं आकर शुरू होती है. बाजार में नए नवेले प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों का सीधा मुकाबला भारतीय एविएशन सेक्टर में आधे से ज्यादा दखल रखने वाले कंपनी इंडिगो से है. फिलहाल इंडिगो ही एकमात्र ऐसी एयरलाइन कंपनी है, जिसके पास एविएशन सेक्टर में भी मुनाफा कमा लेने का मंत्र मौजूद है. इसका साफ मतलब है कि अगर अकासा एयरलाइन, एयर इंडिया, जेट एयरवेज 2.0 को भविष्य के भूगोल में अपनी हिस्सेदारी के भूभाग को बड़ा करना है, तो येन केन प्रकारेण इंडिगो की बादशाहत को खत्म करना ही होगा.

लो प्राइस को लेकर टक्कर

इसके लिए जरूरी है कि नई कंपनियां 2 सबसे अहम मुद्दों पर काम करें. पहला तो किराया किफायती हो और दूसरा परिचालन सही समय पर हो. क्योंकि हवाई यात्रा के लिए टिकट बुक करते वक्त एक सामान्य यात्री सबसे पहले यही देखता है कि किस कंपनी का प्लेन उसके गंतव्य स्थान तक उसे सबसे कम पैसों में पहुंचाने का काम कर रहा है. और फिर इसके बाद उसकी नजर होती है कि अपनी मंजिल तक पहुंचाने में कौन-सा एयरलाइन सबसे कम समय खर्च कर रहा है. मतलब साफ है कि एविएशन सेक्टर में बने रहना है, तो फिर सबसे कम में सबसे बेहतर करना होगा.

नई एयरलाइंस दे रही कड़ी टक्कर

भारतीय एविएशन सेक्टर में 50% से भी ज्यादा का मार्किट शेयर रखने वाले इंडिगो को दोनों नई कंपनियां अपने-अपने स्तर पर कड़ी टक्कर देने में लगी हुई हैं. एक तरफ अकासा एयरलाइन हवाई यात्रियों को लुभाने के लिए इंडिगो और गो एयर की तुलना में करीब 10% कम कीमत पर टिकट मुहैया करा रही है. वहीं टाटा ग्रुप भी एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस, विस्तारा, एयर एशिया इंडिया को एकजुट कर अपनी परिचालन क्षमता को मजबूत करने में लगा हुआ है.

इंडिगो की तगड़ी वापसी

टाटा ग्रुप अगर अपनी इन सभी एयरलाइंस को सुव्यवस्थित तरीके से चलाने में मनमाफिक सफलता हासिल कर लेता है, तो जाहिर है कि इंडिगो का सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी बन जाएगा. टाटा ग्रुप धीरे-धीरे अपनी योजना में कामयाबी हासिल करता भी नजर आ रहा है. आपको बता दें कि अक्टूबर महीने में एयर इंडिया OTP यानी 'ऑन टाइम परफॉर्मेंस' मामले में टॉप पर पहुंच गया था. हालांकि, नवंबर महीने में इंडिगो ने 92.5% के साथ दोबारा अपना तमगा वापस हासिल कर लिया. इससे साफ है कि मुकाबला एकदम जोरदार रहने वाला है. और इसमें वही अंत तक टिक पाएगा तो खुद को लगातार अपने प्रतिद्वंदियों से बेहतर बनाए रखेगा.

एविशन सेक्टर में टाटा ग्रुप की धमक

मैदान अभी भी सबके लिए खुला हुआ है. क्योंकि हाल के दिनों में रुपए के बढ़ते अवमूल्यन और एयरलाइन फ्यूल के बढ़ते भाव के चलते इंडिगो को भी बाकियों की ही तरह घाटे का भार वहन करना पड़ रहा है. और अब इंडिगो के लिए भी मुनाफे का दौर तब ही शुरू होगा जब उपर्युक्त दोनों समस्याओं में से कम से कम किसी एक का समाधान हो जाए. वैसे, बात अगर समस्याओं की है तो टाटा ग्रुप के हिस्से भी फिलहाल कई ऐसी मुश्किलें हैं, जिनका हल जितना जल्द हो सके उतना बेहतर. क्योंकि एक लंबे समय तक सरकारी छायाछत्र में रहने के चलते एयर इंडिया की अपनी कई परेशानियां हैं. जिनसे पार पाकर ही टाटा ग्रुप एविएशन सेक्टर में अपनी धमक जमा पाएगा.

अकासा एयर की मजबूत होती स्थिति

आखिर में बात करें अकासा एयरलाइन की तो इस क्षेत्र के सबसे नए खिलाड़ी की स्थिति बाकियों की तुलना में फिलहाल थोड़ा बेहतर नजर आ रही है. अपनी ज्यादा पूंजी खर्च न करते हुए भी अकासा कम कीमत पर हवाई यात्रा उपलब्ध कराकर तेज गति से अपना विस्तार कर रही है. हालांकि, एक पेंच यहां भी फंसता नजर आता है. क्योंकि फ्यूल एफिशिएंसी के मामले में सबसे अव्वल बोइंग 737 मैक्स ऐरोप्लेन का इस्तेमाल कर कम कीमत पर हवाई टिकट तो उपलब्ध करा दे रही है. लेकिन इस चक्कर मे बोइंग 737 मैक्स की असुक्षित होने की बदनामी के निगेटिव पॉइंट्स भी इसके हिस्से आ जा रहे हैं. दरअसल, बोइंग 737 मैक्स को अब भले फ्लाइंग क्लियरेंस मिल गया हो, लेकिन अतीत में इसका दुर्घटनाओं से जुड़ा इतिहास रहा है. और इसी इतिहास के चलते कई यात्री वतर्मान में इससे ट्रेवल करने से बचते नजर आते हैं.

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कैसा है एयरलाइंस का भविष्य

कुल मिलाकर सभी कंपनियों के फिलहाल कुछ प्लस तो कुछ माइनस पॉइंट्स है. और एविएशन सेक्टर की लंबी रेस में अंततः बाजी उसी एयरलाइन कंपनी के हाथ लगनी है, जो समय के साथ अपनी कमियों को कम से कम करते हुए अपने मजबूत पक्ष को बेहतर करते चले जाएगी. इस समय भले इंडिगो अन्य सभी एयरलाइन कंपनियों से कहीं आगे खड़ी नजर आ रही हो, लेकिन अन्य कंपनियों के पास भी निरंतरता के साथ खुद को निखारते हुए इस रेस में खुद को सबसे आगे लाकर खड़ी कर देने की आपार संभावनाएं हैं.