Uttarkashi Tunnel Rescue: 9 साल पहले जिस तकनीक को NGT ने किया गया था बैन, उसी ने बचाई 41 मजदूरों की जिंदगियां
उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है. उन्हें बाहर निकालने के लिए रैट होल तकनीक का सहारा लिया गया है. ये वही तकनीक है जिसे 2014 में NGT ने बैन कर दिया था. आज वही तकनीक सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए संजीवनी बनी है. जानिए इससे जुड़ी खास बातें.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के लिए आज की सुबह एक बहुत खास है. इन मजदूरों ने 17 दिनों तक सुरंग के अंधेरे में वक्त गुजारने के बाद आज बुधवार की सुबह नई रौशनी देखी है. इन मजदूरों को सुरंग से निकालने के लिए रैट माइनिंग तकनीक के जरिए मैन्युअल ड्रिलिंग की गई. इस तकनीक को रैट होल तकनीक के नाम से भी जाना जाता है. 12 एक्सपर्ट्स की टीम इस काम में जुटी हुई थी. आखिरकार कड़ी मेहनत और हौसला रंग लाया और सभी मजदूरों को टनल से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.
लेकिन क्या आपको पता है कि इन मजदूरों को जिस रैट होल तकनीक के जरिए बाहर निकालने का काम किया गया, साल 2014 में इस तकनीक को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal- NGT) ने बैन कर दिया था. आज वही तकनीक सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए संजीवनी बनी है. आइए आपको बताते है कि इस तकनीक से जुड़ी खास बातें.
क्या है रैट होल तकनीक
'रैट-होल' शब्द जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों को दर्शाता है. इस तकनीक में संकरे क्षेत्रों से कोयला निकालने का काम किया जाता है. इस बीच कुशल कारीगर मैनुअल तरीके से बेहद संकीर्ण सुरंग तैयार करते हैं. इसके बाद खदानों में काम करने वाले लोग सुरंगों में नीचे उतरते हैं. बेहद संकीर्ण सुरंग में घुसकर वो कोयला निकालते हैं. ये सुरंग इतनी संकीर्ण होती है कि बमुश्किल एक समय में एक आदमी ही सुरंग में घुस पाता है.
एक बार गड्ढे खुदने के बाद कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए मजदूर रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करते हैं. फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करके मैन्युअली निकाला जाता है. इसी तकनीक की मदद से टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकाला गया है.
भारत में इसे बैन क्यों किया गया?
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रैट होल तकनीक मजदूरों के लिए बेहद खतरनाक साबित हुई है. दरअसल इस तकनीक का इस्तेमाल करते समय मजदूर बिना किसी सुरक्षा उपाय के गड्ढे में उतर जाते थे और कई बार ऊपर से धंसाव होने के कारण उसी में फंस जाते थे. इस तकनीक में कई मजदूरों के जान गंवाने की खबरें भी सामने आई हैं. मजदूरों की सुरक्षा के लिहाज से साल 2014 में एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस पर रोक लगा दी थी.
मेघालय में सबसे ज्यादा होता है इस तकनीक का इस्तेमाल
कहा जाता है कि एनजीटी के इस तकनीक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देने के बावजूद इसके मेघालय जैसे राज्य में इसका इस्तेमाल जारी रहा. मेघालय के खासी और जयंतिया पहाड़ी इलाकों में जहां दुर्गम कोयले के खादान हैं. इस तकनीक के सहारे ही वहां तमाम लोगों की रोजी रोटी चलती थी. मेघालय में चुनाव के दौरान भी ये मांग की गई कि रैट होल तकनीक को लचीला बनाया जाए, ताकि इससे जिन लोगों की रोजी रोटी चलती है, वे कम से कम प्रभावित हों. इसके बाद साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के प्रतिबंध को रद्द कर दिया था और वैज्ञानिक तरीके से राज्य में कोयला खनन को अनुमति दे दी थी.
क्या था टनल में मजदूरों के फंसने का पूरा मामला
12 नवंबर 2023 को सुबह 05:30 बजे सिल्क्यारा से बड़कोट के बीच बन रही सुरंग धंस गई थी. ये हादसा 60 मीटर की दूरी पर मलबा गिरने के कारण हुआ था. इस घटना के समय सुरंग के अंदर काम कर रहे 41 मजदूर सुरंग में ही फंस गए थे. सूचना मिलते ही राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियां एक्टिव हुईं और बचाव अभियान शुरू किया गया. पाइपों के जरिए मजदूरों तक ऑक्सीजन, पानी और खाना पहुंचाया गया. बचाव के लिए खुदाई शुरू की गई. इस बचाव काम में 17 दिनों का समय लगा और आखिरकार सफलता मिली और सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. बता दें कि इससे पहले साल 2018 में जब मेघालय में खदान में 15 मजदूर फंस गए थे, तब भी इसी रैट माइनिंग का सहारा लिया गया था.
09:04 AM IST