Savitribai Phule Jayanti: नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता, देश की पहली महिला शिक्षिका की जयंती है आज, जानें उनके संघर्ष की कहानी
Savitribai Phule Birth Anniversary- महाराष्ट्र के सतारा जिले के छोटे से गांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और खुद शिक्षित होकर लड़कियों के लिए देश का पहला महिला विद्यालय खोला. आज उनके जन्मदिन पर जानिए सावित्रीबाई फुले के संघर्ष की कहानी.
Who is Savitri Bai Phule: Savitribai Phule Jayanti 2024: सावित्रीबाई फुले को समाज सेविका, कवयित्री और दार्शनिक के तौर पर पहचाना जाता है. लेकिन वो देश की पहली महिला शिक्षिका (First Female Teacher Savitribai Phule) भी थीं. महाराष्ट्र के सतारा जिले के छोटे से गांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और खुद शिक्षित होकर लड़कियों के लिए देश का पहला महिला विद्यालय खोला. जिस समय पर शिक्षा के लिए आवाज उठाई, उस दौर में लड़कियों की शिक्षा पर कई तरह की पाबंदियां लगी हुई थीं. ऐसे में उन्हें लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. आज सावित्रीबाई फुले की जयंती है. आज इस मौके पर आपको बताते हैं नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले के बारे में-
बचपन से ही पढ़ाई की ओर रुझान
सावित्रीबाई फुले लक्ष्मी और खांडोजी नेवासे पाटिल की सबसे छोटी बेटी थीं. उनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था. उस समय दलित, पिछड़े वर्ग और महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था. सावित्रीबाई फुले बचपन से ही पढ़ाई करना चाहती थीं. बताया जाता है कि एक दिन वे अंग्रेजी की किताब लेकर पढ़ने की कोशिश कर रही थीं. इस दौरान उनके पिता ने देखा और किताब फेंककर उन्हें डांटा. लेकिन सावित्रीबाई को उनकी डांट से जरा भी फर्क नहीं पड़ा. उन्होंने तभी प्रण ले लिया कि वे शिक्षा लेकर ही रहेंगी.
विवाह के बाद की पढ़ाई
9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले की शादी ज्योतिराव फुले से हो गई. जब उनका विवाह हुआ तब वे अशिक्षित थीं और उनके पति ज्योतिराव फुले तीसरी कक्षा में पढ़ते थे. सावित्रीबाई ने जब उनसे शिक्षा की इच्छा जाहिर की तो ज्योतिराव ने उन्हें इसकी इजाजत दे दी. इसके बाद उन्होंने पढ़ना शुरू किया. लेकिन जब वो पढ़ने गईं तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे, कूड़ा और कीचड़ फेंकते थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. हर चुनौती का डटकर सामना किया.
देश का पहला बालिका स्कूल खोला
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सावित्रीबाई फुले ने न केवल खुद पढ़ाई की, बल्कि अपने जैसी तमाम लड़कियों को शिक्षा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया. शिक्षा के लिए बालिकाओं को संघर्ष न करना पड़े, ये सोचकर सावित्रीबाई फुले ने साल 1848 में अपने पति के सहयोग से महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल स्थापित किया और उस स्कूल की प्रधानाचार्या बनीं. यही कारण है कि उन्हें देश की पहली महिला शिक्षिका का दर्जा दिया जाता है. उनके इस कार्य के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें सम्मानित किया था.
पति के साथ मिलकर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ीं
अपने पति के साथ महाराष्ट्र में उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया, जिसमें से एक सतीप्रथा भी थी. उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ नारी को उनके कई अधिकार दिलाए. नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले ने समाज में फैली छुआछुत को मिटाने के लिए भी कड़ा संघर्ष किया और जो समाज में शोषित हो रही महिलाओं को शिक्षित करके अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया. 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले का प्लेग की बीमारी से निधन हो गया.
09:07 AM IST