लिएंडर पेस, सानिया मिर्जा और महेश भूपति जैसे भारतीय टेनिस खिलाड़‍ियों ने अपनी काबलियत के बूते पर दुनियाभर में नाम कमाया है और एक सुपरस्‍टार का दर्जा प्राप्‍त किया है. लेकिन इनके अलावा भी तमाम ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्‍होंने देश का गौरव बढ़ाया है. उन्‍हीं में से एक नाम है रामानाथन कृष्णन. जी हां, रामानाथन कृष्णन (Ramanathan Krishnan) भी एक भारतीय टेनिस खिलाड़ी (Indian Tennis Player) थे और 1950 से 60 के दशक में टेनिस के सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़‍ियों में से एक थे, लेकिन आज लोगों को उनका नाम भी शायद ही याद हो. देश का गौरव बढ़ाने वाले इस खिलाड़ी का आज 11 अप्रैल को जन्‍मदिवस (Ramanathan Krishnan Birthday) है. आइए आज इस मौके पर आपको बताते हैं उनके बारे में.

भारतीय टेनिस का कारवां शुरू करने का श्रेय 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

तमिलनाडु में जन्मे भारतीय टेनिस खिलाड़ी रामानाथन कृष्णन को भारतीय टेनिस का कारवां शुरू करने का श्रेय दिया जाता है. रामानाथन का नाम उन तीन स्तंभों में से है जिन्होंने भारत में इस खेल की लोकप्रियता को बढ़ाया. रामनाथन, जयदीप मुखर्जी और प्रेमजीत लाल को भारतीय टेनिस के तीन स्तंभ कहा जाता है. रामानाथन विंबलडन बॉयज़ एकल खिताब  (Wimbledon Boys' Singles Title) जीतने वाले पहले एशियाई खिलाड़ी थे. फाइनल में उन्होंने चार बार के ग्रैंड स्लैम चैंपियन एशले कूपर को शिकस्त दी थी. उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध जीत में 1959 के डेविस कप में महान रॉड लेवर और 1961 के विंबलडन क्वार्टर फाइनल में 12 बार के ग्रैंड स्लैम एकल चैंपियन रॉय एमर्सन को शिकस्त देना शामिल है.

विंबलडन ओपन के सेमीफाइनल में दो बार बनाई जगह

रामानाथन कृष्णन ने विंबलडन के सेमीफाइनल में एक नहीं, बल्कि दो बार जगह बनाई, एक बार 1960 और दूसरी बार 1961 के विंबलडन ओपन के सेमीफाइनल में. इसके अलावा 1962 के फ्रेंच ओपन के क्वार्टर फाइनल में भी वे जगह बनाने में सफल रहे थे. वे चार बार विंबलडन ओपन के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे. इतना ही नहीं, 1966 डेविस कप के फाइनल कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रामानाथन ने अपने पार्टनर जयदीप मुखर्जी के साथ मिलकर विंबलडन के डबल्स चैंपियन जॉन न्यूकॉम्ब और टोनी रोशे को हराया था. रामानाथन कई सालों तक डेविस कप में भारत के महत्वपूर्ण सदस्य रहे थे. साल 1966 में उन्होंने टीम को उपविजेता बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.

पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्‍मानित

रामानाथन ने अपने दौर में इतनी लोकप्रियता कमाई थी कि देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें नाश्‍ते पर बुलाया था. उन दिनों भारत में खिलाड़‍ियों को बहुत ज्‍यादा पैसा नहीं मिलता था, लेकिन रामानाथन कृष्‍णन ने कभी पैसों को तरजीह नहीं दी और देश का मान बढ़ाते रहे. साल 1961 में वे अर्जुन पुरस्‍कार से सम्‍मानित किए गए. साल 1962 में भारत सरकार ने उन्‍हें पद्मश्री और 1967 में पद्मभूषण से सम्‍मानित किया. साल 1975 में रामानाथन कृष्‍णन ने टेनिस से रिटायरमेंट से लिया.

 

Zee Business Hindi Live TV यहां देखें