Guru Gobind Singh Jayanti 2025: 9 वर्ष के गोबिंद राय कैसे बने गुरु गोबिंद सिंह, जानें सिखों के दसवें गुरु से जुड़ी खास बातें
बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरु गोबिंद सिंह का बचपन का नाम गोबिंद राय था और जिस समय उन्होंने सिखों के गुरु पद को संभाला, तब वे सिर्फ 9 वर्ष के थे. जानिए उनके जीवन से जुड़ी अनकही बातें.
आज 6 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जा रही है. माना जाता है कि पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन उनका जन्म हुआ था. गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें और आखिरी गुरु थे. बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरु गोबिंद सिंह का बचपन का नाम गोबिंद राय था और जिस समय उन्होंने सिखों के गुरु पद को संभाला, तब वे सिर्फ 9 वर्ष के थे. गुरु गोबिंद सिंह ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए बिताया. साथ ही अपने जीवन से दूसरों के जीवन को भी प्रकाशित किया. हर साल उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के तौर पर मनाया जाता है. आज इस मौके पर आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें.
पटना में हुआ था जन्म
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को पटना में नौवें सिख गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर हुआ था. उनके बचपन का नाम गोबिंद राय रखा गया था. जन्म के बाद उन्होंने शुरुआती 4 वर्ष पटना में ही बिताए. 1670 में उनका परिवार पंजाब आ गया. मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया. चक्क नानकी ही आजकल आनन्दपुर साहिब कहलता है. यहां पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई और उन्होंने फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली. साथ ही योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा.
पिता की शहादत के बाद गोबिंद राय बने गुरु गोबिंद सिंह
उस समय मुगलों का शासन था और दिल्ली के तख्त पर औरंगजेब का शासन था. वो ऐसा समय था जब तमाम लोगों का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. एक दिन गोबिंद राय के पिता और सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर को औरंगजेब का बुलावा आया. गुरु तेगबहादुर जब अपने तीन अनुयायियों के साथ औरंगजेब के दरबार में पहुंचे, तो धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा गया. जब वो लोग नहीं माने तो गुरु तेग बहादुर समेत उनके अनुयायियों को कठोर दंड सुनाकर उनकी जान ले ली गई.
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जब गोबिंद राय को पिता की शहादत की खबर मिली, तो उनका सिर गर्व से उठ गया. इसके बाद बैसाखी के दिन 29 मार्च 1676 को गोबिंद राय को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया. उस समय उनकी उम्र मात्र 9 वर्ष की थी. गुरु गोबिंद सिंह ने पंज प्यारों से अमृत पिया और गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह बन गए. 10वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही.
गुरु प्रथा को समाप्त किया
गुरु गोबिंद सिंह सिखों के 10वें और आखिरी गुरु थे. गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की और सिखों को अमृत धारी और धर्म के प्रति समर्पित योद्धा बनाया. गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु प्रथा को समाप्त किया और गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वोच्च बताकर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. इसके बाद से गुरु के तौर पर गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा की जाने लगी और गुरु प्रथा खत्म हो गई.
जीवन के पांच सिद्धांत दिए
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा वाणी- वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह दिया था. खालसा पंथ की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों और उनके सहयोगियों से कई बार लड़े. उन्होंने जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिए थे. जिन्हें पांच ककार के नाम से जाना जाता है. पांच ककार का मतलब ‘क’ शब्द से शुरू होने वाली उन 5 चीजों से है, जिन्हें हर खालसा सिख को धारण करना अनिवार्य है. ये पांच चीजें हैं केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा.
08:00 AM IST