गुजरात में तेजी से बढ़ रहे हैं 'चांदीपुरा' के मामले, बेहद खतरनाक है मच्छरों से फैलने वाली ये बीमारी...जानिए लक्षण
चांदीपुरा एक वेक्टर डिजीज है जो मच्छर और कीटों से फैलती है. छोटे बच्चों के लिए ये बेहद खतरनाक है. इसमें वायरस के कारण सिर में सूजन होती है और ये न्यूरोलॉजिकल कंडीशन में बदल जाती है. समय रहते पता नहीं लगाया तो मरीज की जान भी जा सकती है.
इन दिनों गुजरात में चांदीपुरा वायरस फैलने से 32 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है, वहीं संक्रमण की संख्या 84 पहुंच गई है. हर दिन केस तेजी से बढ़ रहे हैं. गुजरात के अलावा पड़ोस के राज्यों राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी चांदीपुरा वायरस के मामले देखने को मिले हैं. गुजरात में हालातों को देखते हुए सरकार भी अलर्ट मोड पर आ चुकी है और संदिग्ध क्षेत्रों में स्क्रीनिंग कराई जा रही है.
बता दें कि चांदीपुरा एक वेक्टर डिजीज है जो मच्छर और कीटों से फैलती है. छोटे बच्चों के लिए ये बेहद खतरनाक है. इसमें वायरस के कारण सिर में सूजन होती है और ये न्यूरोलॉजिकल कंडीशन में बदल जाती है. अगर समय रहते इसका इलाज नहीं किया गया तो स्थिति गंभीर हो सकती है और व्यक्ति की मौत भी हो सकती है. जानिए इस बीमारी के बारे में-
क्यों पड़ा नाम चांदीपुरा
इसका पहला मामला महाराष्ट्र के चांदीपुरा गांव में सामने आया था, इसलिए इस बीमारी का नाम चांदीपुरा पड़ गया. आज बेशक आपको बीमारी का नाम सुनकर नया सा लगता हो, लेकिन ये मामला पहली बार 1965 में सामने आया था यानी करीब 59 साल पहले सामने आया था. गुजरात में हर साल इस बीमारी के मामले देखने को मिलते हैं. लेकिन इस साल चांदीपुरा के केस तेजी से बढ़ रहे हैं, इसलिए ये चर्चा का विषय बन गया है.
कैसे फैलती है बीमारी
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चांदीपुरा वायरस का संबन्ध बैकुलोवायरस से है, जो मच्छर, कीट या सैंडफ्लाई जैसे वेक्टर के काटने से फैलता है. चांदीपुरा वायरस संक्रमित कीट-पतंग, मच्छर आदि की लार ग्रंथि में मौजूद होता है. संक्रमित कीट या मच्छर के काटने पर लार में मौजूद वायरस इंसान के शरीर में पहुंच जाता है और उसे संक्रमित कर देता है. वायरस सीधे व्यक्ति के नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है जिससे संक्रमित के दिमाग के टिशू में सूजन की समस्या हो सकती है.
क्या हैं वायरस के लक्षण
तेज बुखार
मानसिक स्थिति में बदलाव
बुखार के साथ उल्टी
दौरे पड़ना
कमजोरी
सिर दर्द
गर्दन में अकड़न आदि
किन लोगों को ज्यादा खतरा
वैसे तो ये वायरस किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन खासतौर पर ये बच्चों पर तेजी से पकड़ बनाता है. 9 महीने से लेकर 14 साल तक के बच्चों को इसका खतरा ज्यादा होता है. ग्रामीण इलाकों में इसका प्रकोप ज्यादा दिखाई देता है. समय पर इस समस्या को पकड़ना बहुत जरूरी है, वरना इसके कारण जान भी जा सकती है.
कैसे होता है इलाज
इस बीमारी का कोई सटीक टीका या इलाज अभी तक उपलब्ध नहीं है, इसलिए बचाव ही इससे बचने का एकमात्र तरीका है. बचाव के लिए कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं जैसे-
जलभराव न होने दें.
फुल बाजू के कपड़े पहनें.
सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें.
कीट-पतंगों को घर के अंदर आने से रोकने के लिए खिड़कियों पर जाली लगवाएं.
घर के दरवाजे बंद रखें.
02:47 PM IST