आजकल आए दिन किसी न किसी कंपनी के नतीजे आ रहे हैं. इन नतीजे के बीच कंपनियां अपने शेयरधारकों को डिविडेंड (Dividend) भी दे रही हैं. ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह डिविडेंड होता क्या है? सवाल यह भी है कि आखिर कंपनी डिविडेंड क्यों देती है? क्या कंपनी को डिविडेंड देना जरूरी होता है? कुछ कंपनियां डिविडेंड देती हैं और कुछ नहीं, ऐसा क्यों? आइए जानते हैं डिविडेंड के बारे में सब कुछ.

पहले समझिए डिविडेंड क्या होता है

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तमाम कंपनियां अपने प्रॉफिट का एक हिस्सा अपने शेरहोल्डर्स में बांट सकती हैं और कंपनी के प्रॉफिट में से बांटे हुए इसी हिस्से को डिविडेंड कहा जाता है. उदाहरण के अगर आपके पास एक कंपनी के 1000 शेयर्स हैं और वह कंपनी ₹10 प्रति शेयर का डिविडेंड देने की घोषणा करती है तो हमें आपको 1000 शेयर्स पर टोटल ₹10,000 का डिविडेंड मिलेगा. डिविडेंड सीधे आपके उस बैंक अकाउंट में आता है, जिसे आपने डिमैट अकाउंट खुलवाते समय दिया था. 

फेस वैल्यू पर निर्भर होता है डिविडेंड

किसी भी शेयर की दो तरह की वैल्यू होती हैं, पहली है फेस वैल्यू और दूसरी है मार्केट वैल्यू. मार्केट वैल्यू तो सभी समझते हैं. ये वह वैल्यू होता है, जिस पर बाजार में किसी कंपनी के शेयर ट्रेड कर रहे होते हैं. वहीं फेस वैल्यू कंपनी की तरफ से शेयरों की संख्या निर्धारित करते हुए तय की गई वैल्यू होती है, जो 1-10 रुपये के बीच कुछ भी हो सकती है. डिविडेंड को कंपनियों की फेस वैल्यू के परसेंट के फॉर्म में बताया जाता है. जैसे अगर एक कंपनी की फेस वैल्यू ₹5 है और कंपनी ₹5 प्रति शेयर का डिविडेंड देने की घोषणा करती है, तो यह कहा जाएगा कि कंपनी ने 100% का डिविडेंड डिक्लेयर किया है. वहीं अगर यही कंपनी ₹10 प्रति शेयर का डिविडेंड डिक्लेयर करती है तो यह कहा जाएगा की कंपनी ने 200% का डिविडेंड दिया है.

जब भी डिविडेंड की बात आती है तो आपको इससे जुड़ी 4 तराखों के बारे में पता होना चाहिए. पहली है अनाउंसमेंट डेट, दूसरी है एक्स डिविडेंड डेट, तीसरी है रिकॉर्ड डेट और चौथी है पेमेंट डेट. जब कोई कंपनी डिविडेंड की घोषणा करती है तो उसे अनाउंसमेंट डेट कहा जाता है. इसमें कंपनी यह भी बताती है कि वह कितने रुपए का डिविडेंड देने वाली है और इसी डेट के बाद पब्लिक को पता चलता है कि कंपनी डिविडेंड देने वाली है. डिविडेंड का अनाउंसमेंट करने के बाद कंपनी के लिए डिविडेंड में सबसे अहम यह तय करना होता है कि डिविडेंड किन शेरहोल्डर्स को दिया जाएगा, क्योंकि हर रोज लाखों लोग कंपनी के शेयर्स को खरीदते-बेचते हैं. ऐसे में  हैं और रिकॉर्ड डेट पर कंपनी के शेयर्स जिनके भी डिमैट अकाउंट में होती आ जाएगा क्योंकि हर रोज लाखों लोग कंपनी के शेयर्स की बाइंग और सेलिंग कर रहे हैं. 

इसके लिए कंपनी रिकॉर्ड डेट का इस्तेमाल करती है. रिकॉर्ड डेट पर कंपनी के शेयर्स जिनके भी डीमैट अकाउंट में होते हैं, कंपनी उन्हें डिविडेंड देती है. तो अगर आपको कंपनी का डिविडेंड लेना है तो कंपनी के शेयर्स रिकॉर्ड डेट पर आपके डीमैट अकाउंट में होने चाहिए. इसके लिए आपको रिकॉर्ड डेट से एक दिन पहले कंपनी के शेयर खरीदने होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि शेयर खरीदने के एक दिन बाद (T+1) कंपनी के शेयर आपके डीमैट अकाउंट में आते हैं. ऐसे में लोगों को कोई कनफ्यूजन ना हो, इसलिए कंपनी शेयर खरीदने वाली इस डेट को एक्स डिविडेंड डेट कहती है. वहीं जिस दिन डिविडेंड शेयर धारक के खाते में क्रेडिट होता है, उसे पेमेंट डेट कहा जाता है.

एक उदाहरण से समझते हैं

मान लीजिए एक कंपनी ने 1 जनवरी को डिविडेंड देने का अनाउंसमेंट किया, तो यह डिविडेंड की अनाउंसमेंट डेट हो गई. वहीं कंपनी इसके लिए रिकॉर्ड डेट 25 जनवरी तय करती है, तो यहां एक्स डिविडेंड डेट 24 जनवरी हो जाती है. मान लीजिए कि आपके खाते में डिविडेंड के पैसे 15 फरवरी को आते हैं तो 15 फरवरी पेमेंट डेट हो गई.

हर कंपनी क्यों नहीं देती डिविडेंड?

डिविडेंड देना या ना देना यह कंपनी पर निर्भर करता है. कंपनी चाहे तो डिविडेंड दे सकती है, चाहे तो डिविडेंड में दिया जाने वाला पैसा बचाकर बिजनेस को बढ़ाने में लगा सकती है. ऐसी बहुत सी कंपनियां हैं जो नियमित रूप से अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती हैं, यानी अपने मुनाफे का एक हिस्सा उन्हें बांटती हैं. वहीं ऐसी बहुत सारी कंपनियां हैं, जो अपने मुनाफे को शेयरधारकों में न बांटकर कंपनी की ही ग्रोथ में लगती हैं. ऐसी कंपनियों का मानना होता है कि अगर मुनाफे को कंपनी की ही ग्रोथ में लगाया जाएगा, तो इससे आने वाले वक्त में कंपनी की शेयर वैल्यू बढ़ेगी, जिससे सीधे-सीधे शेयरधारकों को ही फायदा होगा.

क्यों दिया जाता है डिविडेंड?

एक बहुत बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर डिविडेंड दिया ही क्यों जाता है? अगर कंपनी के पास विकल्प है कि वह डिविडेंड ना दें तो उसे कंपनी की ही ग्रोथ में क्यों नहीं लगाया जाता? दरअसल, जो कंपनियां डिविडेंड देती हैं वह मानती हैं कि इससे और लोग भी निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे. साथ ही जिन्होंने निवेश किया हुआ है, वह कंपनी में अपना निवेश बनाए रखेंगे, क्योंकि उन्हें नियमित रूप से एक रिटर्न मिलता रहेगा. कुछ कंपनियां यह भी कहती हैं कि शेयर होल्डर कंपनी के मालिक ही होते हैं, ऐसे में मुनाफे का एक हिस्सा उन्हें मिलना उनका अधिकार होता है.

कब दिया जाता है डिविडेंड?

यहां एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर डिविडेंड दिया कब जाता है? आपको बता दें कि डिविडेंड देने के लिए कोई तय नियम नहीं है. आमतौर पर कंपनियां हर तिमाही नतीजे के बाद डिविडेंड देना पसंद करती हैं, लेकिन कई बार कुछ कंपनियां नतीजों से पहले भी या बीच में ही डिविडेंड दे देती हैं. यानी कंपनियां जब चाहे तब डिविडेंड दे सकती हैं.

क्या होता है डिविडेंड यील्ड?

इसकी मदद से हमें ये पता चलता है कि कंपनी अपनी मार्केट वैल्यू की तुलना में कितना डिविडेंड देती है. डिविडेंड यील्ड निकालने के लिए प्रति शेयर मिले डिविडेंड को शेयर के मार्केट प्राइस से भाग देकर 100 से गुणा कर दिया जाता है. इससे पता चलता है कि उस शेयर का डिविडेंड यील्ड कितना है.