World Malaria Day: धरती के सबसे 'जानलेवा जानवर' से निपट रहा ये Startup, करोड़ों के पैकेज वाली Job छोड़कर बनाया खास 'हथियार'!
अगर आपसे पूछा जाए कि धरती का कौन सा जानवर सबसे जानलेवा है तो यकीनन आपके मन में शेर-चीता या सांप की तस्वीर उभरती होगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह जानवर मच्छर है.
अगर आपसे पूछा जाए कि धरती का कौन सा जानवर सबसे जानलेवा है तो यकीनन आपके मन में शेर-चीता या सांप की तस्वीर उभरती होगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जो जानवर सबसे जानलेवा है, उससे आपका सामना लगभग हर रोज और दिन-रात होता है? हम बात कर रहे हैं मच्छर (Mosquitoes) की, जिनकी वजह से सबसे ज्यादा इंसान मारे जाते हैं. हर साल करीब 10 लाख लोग मलेरिया (Malaria), डेंगी (Dengue), चिकनगुनिया (Chikungunya) और जीका (Zika) जैसी बीमारियों से मारे जाते हैं. सालों से मच्छरों से निपटने के अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल होता आ रहा है, लेकिन वह कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं. इसी समस्या का समाधान करने आया है स्टार्टअप (Startup) ईको बायोट्रैप (Eco BioTrap), जिसने शार्क टैंक इंडिया के तीसरे सीजन (Shark Tank India-3) में अपना आइडिया पेश किया था. आइए आज विश्व मलेरिया दिवस पर जानते हैं कैसे ये स्टार्टअप मच्छरों से निपट रहा है.
ईको बायोट्रैप की शुरुआत मुंबई में रहने वाले प्रसाद हरीश वड़के ने बीनल शाह के साथ मिलकर की है. इस स्टार्टअप की शुरुआत हुई अमेरिका से, जहां जून 2017 में इसे रजिस्टर किया गया था. वहीं भारत में जुलाई 2019 में कंपनी ने अपनी पहली सब्सिडियरी खोली. अगर बात करें कंपनी के बिजनेस की तो पिछले साल कंपनी का टर्नओवर करीब सवा करोड़ रुपये था, जो इस साल 10 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है. यह कंपनी अहमदाबाद में रजिस्टर्ड है, जहां से कंपनी के एचआर और मार्केटिंग के ऑपरेशन होते हैं. वहीं कंपनी का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट पुणे में है और पूरे देश में कंपनी के प्रोडक्ट सप्लाई किए जाते हैं.
कहां से आया आइडिया?
एक बार प्रसाद अपने दोस्त के साथ किसी रेस्टोरेंट में डिनर करने गए थे. वहां पर बाहर की तरफ उन्हें बहुत सारे मच्छर दिखे, जिन्हें देखकर उन्होंने सोचा कि आखिर ऐसा क्यों है कि मच्छरों से निजात नहीं मिल पा रही है. वो सोचने पर मजबूर हो गए कि आज हम चांद तक पहुंच चुके हैं और सूरज पर पहुंचे की पूरी प्लानिंग है, आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस आ चुका है, लेकिन मच्छरों से छुटकारा नहीं मिल रहा. जब उन्होंने थोड़ी रिसर्च की तो समझ आया कि मच्छरों को हम या तो एक-एक कर के मार रहे हैं या उन्हें किसी रिपेलेंट की मदद से दूर भगाने का काम कर रहे हैं, जबकि मच्छरों की आबादी एक झटके में 500-1000 गुना तक बढ़ सकती है. ऐसे में मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर चुके करीब 44 साल के प्रसाद ने सोचा कि एक ऐसा स्टार्टअप शुरू किया जाए, जो मच्छरों की आबादी को तेजी से कम कर सके और शुरुआत हुई ईको बायोट्रैप की.
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पहले इस जानलेवा दुश्मन को समझते हैं
मच्छर से हमें खतरा है, ये सोचकर सीधे उसे मारने के तरीके खोजने के बजाय पहले ये समझना जरूरी है कि यह मच्छर है क्या और इतना खतरनाक कैसे है. इसके लिए विज्ञान को समझना होगा, जो बताता है कि सिर्फ मादा मच्छर ही काटती है, नर मच्छर नहीं काट सकता है. मादा मच्छर की उम्र 15-30 दिन होती है, जबकि नर की उम्र महज 7 दिन होती है. मादा मच्छर सिर्फ पानी में ही प्रजनन करती है और एक बार में 500-1000 अंडे दे सकती है.
मच्छर को अंडे से एडल्ट बनने में 4-7 दिन का वक्त लगता है. इस तरह एक मच्छर से 500-1000 मच्छर पैदा हो जाते हैं. तो अगर मच्छरों से निजात पानी है तो इस चेन को तोड़ना होगा. जिस तरह कोविड-19 के वक्त में वायरस फैलने से रोकने के लिए सभी अपने घरों में कैद हो गए और उसकी चेन तोड़ दी. मच्छरों की चेन हम नहीं तोड़ रहे हैं, बल्कि उन्हें भगा रहे हैं और वह तेजी से आबादी बढ़ाते जा रहे हैं.
क्या है ईको बायोट्रैप?
मच्छरों के इस विज्ञान को ध्यान में रखते हुए प्रसाद ने अपनी को-फाउंडर बीनल के साथ मिलकर बनाया ईको बायोट्रैप. यह एक गमले जैसा होता है, जो अंडों के ट्रे के मटीरियल से बना होता है. इस गमले में ऊपर की तरफ एक छेद बना होता है, जहां तक आपको इसमें पानी भरना होता है. गमले के साथ 2 सैशे भी मिलते हैं, जो इस पानी में घुल जाते हैं. एक सैशे मच्छरों को अट्रैक्ट करने वाला होता है, जबकि दूसरा मच्छरों के अंडों को खत्म करने का काम करता है. यह एक गमला करीब 400 स्क्वायर फुट का एरिया कवर करता है और 30 दिन तक चलता है. 30 दिन के बाद आपको गमला बदलना होता है. अभी इसकी कीमत 450-500 रुपये के बीच है.
क्यों इस गमले में ही आएगी मादा मच्छर?
हर किसी के मन में एक बड़ा सवाल ये उठ सकता है कि आखिर मच्छर इस गमले में ही आकर अंडे क्यों देगी, कहीं और क्यों नहीं? प्रसाद कहते हैं कि यह शस्त्र पूरी तरह से शास्त्र यानी विज्ञान पर आधारित है. विज्ञान कहता है कि मच्छर सिर्फ पानी में ही अंडे देगी. वहीं इसे बनाते वक्त एक मां की तरह भी सोचा गया है. मच्छर अपने अंडों यानी अपने बच्चों के लिए एक ऐसा पानी ढूंढती है, जहां उनकी जिंदगी को कम से कम खतरा हो और वह अधिक से अधिक पोषण पा सकें.
यही वजह है कि मच्छर कभी भी खुले आसमान के नीचे धूप में जमा पानी में अंडे नहीं देती, वरना बच्चे मर जाएंगे. इस गमले में जो सैशे मच्छर को अट्रैक्ट करने का काम करता है, वह असल में मच्छरों को पोषण देने वाला होता है, जिसके चलते मादा मच्छर इसी गमले में अंडे देती है. वहीं इसका अंदरूनी हिस्सा खुरदरा होता है, जिसके चलते उस पर मच्छर आसानी से बैठ कर अंडे दे पाती है. साथ ही गमले के रंग भी मच्छरों को आकर्षित करता है. बता दें कि मच्छर सिर्फ लाल, नारंगी, काला और स्यान रंगे से आकर्षित होते हैं.
मच्छर से जुड़ी ये बातें भी जानना है जरूरी
मच्छर पहले मेटिंग करते हैं और फिर उसके बाद फीमेल मच्छर को प्रजनन के लिए प्रोटीन चाहिए होता है. इस जरूरत को पूरा करने के लिए वह इंसानों या जानवरों के खून चूसती है. एक मच्छर अपने वजह से 2-3 गुना तक खून चूस सकती है और फिर नजदीक के पानी पर जाकर प्रजनन करती है. वहीं अगर बात डेंगी के मच्छर की करें तो वह बहुत बदमाश होती है और एक बार में 5-18 लोगों को काटती है और सबसे थोड़ा-थोड़ा खून चूसती है. वह अंडे भी एक ही जगह नहीं देती, बल्कि कई जगह थोड़े-थोड़े अंडे देती है.
यहां अच्छी बात ये है कि डेंगी मच्छर सिर्फ 100-200 मीटर तक ही उड़ पाती है, जबकि आम मच्छर 1 किलोमीटर तक उड़ सकती है. इस तरह अगर किसी इलाके में लगातार ईको बायोट्रैप का इस्तेमाल किए जाए तो करीब 200 मीटर तक के दायरे में 3-6 महीने में डेंगी के मच्छरों को खत्म किया जा सकता है. प्रसाद दावा करते हैं कि मुंबई के धारावी में वह ये मुमकिन भी कर चुके हैं. बीएमसी और इनक्युबेटर स्माइल के साथ मिलकर धारावी को मच्छर मुक्त करने की कोशिश कर रहे हैं. उनके बोर्ड में जो वैज्ञानिक हैं, उनमें सुशांता कुमार घोष भी हैं, जिन्होंने गप्पी और गंबूशिया मछलियों का आविष्कार किया था, जो मच्छरों के अंड़ों को खाती हैं.
गत्ते का गमला ही क्यों बनाया?
दरअसल, इस गमले से धीरे-धीरे बूंद-बूंद पानी गिरता रहता है और महीने भर में सारा पानी खत्म हो जाता. ध्यान रहे कि इस गमले को धूप में नहीं लगाना चाहिए, वरना वहां मच्छर अंडे नहीं देगी, क्योंकि उसे डर होगा कि बच्चे धूप से मर सकते हैं. एक सवाल ये उठता है कि गमला प्लास्टिक का क्यों नहीं बना दिया, ताकि सालों साल चले. प्रसाद का कहना है कि हर 30 दिन में सैशे बदलना जरूरी है और अगर गलती से भी आप गमले का पानी बदलना या उसका सैशे बदलना भूल गए तो जो गमला आपको मच्छरों से बचा रहा था, उसी की वजह से मच्छरों की आबादी तेजी से बढ़ना शुरू हो जाएगी. ऐसे में सरकार भी उस प्रोडक्ट को अप्रूवल नहीं देगी.
16 साल की उम्र में बिजनेस में बढ़ी दिलचस्पी
प्रसाद बताते हैं कि जब वह 16 साल की उम्र के थ, तो अपने चाचा के नेचुरल स्टोन के बिजनेस को देखने को उनके साथ स्कूटर पर बैठकर अक्सर जाया करते थे. 18 साल की उम्र में डिप्लोमा पूरा करने के बाद उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर सेल्स की कमीशन पर आधारित नौकरी शुरू की. वह घर-घर जाकर डिटर्जेंट, शर्ट आदि बेचते थे और कमीशन से पैसे कमाते थे. कुछ वक्त ये काम करने के बाद उनका कॉरपोरेट करियर शुरू किया.
उन्होंने करीब 15 साल तक एनवीडिया (Nvidia) में काम किया, जहां वह भारत में मार्केटिंग ऑर्गेनाइजेशन के नंबर-1 एंप्लॉई भी बन गए थे. प्रसाद बताते हैं कि Nvidia के मौजूदा सीईओ जेंसन वॉन्ग (jensen huang) उनके मेंटर भी हैं, जिन्होंने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है. उसके बाद एचपी में 1200 करोड़ रुपये का वर्कस्पेस स्टेशन चलाया और फिर ऑटोडेस्क में मार्केटिंग हेड बने. अपना करोड़ों का पैकेज छोड़कर अब प्रसाद ने ईको बायोट्रैप की शुरुआत की है. उनका पैकेज कितना बड़ा था, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कई सालों तक वह 1 करोड़ रुपये से अधिक तो सिर्फ इनकम टैक्स भरते थे.
जागरूकता फैलाना बड़ी चुनौती
इस बिजनेस में सबसे बड़ी चुनौती है लोगों में जागरूकता फैलाने की. लोगों को सबसे पहले मच्छर के बारे में समझना होगा और साथ ही ये बताना होगा कि उससे कैसे निपटा जाए. मच्छर का विज्ञान समझना जरूरी है. अभी कंपनी का सारा बिजनेस बी2बी है, लेकिन जल्द ही वह बी2सी पर भी फोकस करेंगे. कंपनी की कमाई प्रोडक्ट की सेल से होती है, अभी वह सब्सक्रिप्शन मॉडल पर नहीं जा रहे हैं, लेकिन आने वाले वक्त में इस पर विचार किया जाएगा.
फंडिंग और फ्यूचर
अभी तक इस स्टार्टअप ने 1.25 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाई है. यह फंडिंग जून 2022 में 15 करोड़ रुपये के वैल्युएशन पर हुई थी. सरकार से इस स्टार्टअप को कोई ग्रांट नहीं मिला है, लेकिन कुछ कंपनियों ने सीएसआर से मदद की है. साथ ही बीएमसी की तरफ से भी बड़ी मदद मिल रही है. आने वाले दिनों में कंपनी अपने प्रोडक्ट को मलेशिया, नेपाल, जॉम्बिया से लेकर 7 अन्य देशों तक फैलाना चाहती है. कंपनी इसकी कीमत को भी घटाना चाहती है. प्रसाद कहते हैं कि अगर हर महीने 1 करोड़ प्रोडक्ट बिकने लगे तो कीमत 100 रुपये से भी कम हो सकती है. प्रसाद कहते हैं कि अगर फ्यूचर में सरकार रॉयल्टी देकर खुद डिस्ट्रीब्यूशन करना चाहे वह उसके लिए भी तैयार हैं.
11:41 AM IST