क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: Credit Card से ऑनलाइन शॉपिंग और EMI वाला 'धोखा'!
Qissa-e-consumer: क्रेडिट कार्ड से ऑनलाइन शॉपिंग की है और उसकी ईएमआई बनवाई है तो ऑर्डर कैंसिल करने की सूरत में आपको ये पूरी जानकारी बैंक को देनी पड़ेगा.
Qissa-e-consumer: ये किस्सा जानना आपके लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि ऐसा आपके साथ भी हो सकता है. तो वाकया पेश आया हमारे दफ्तर के एक सीनियर कलीग के साथ. उन्होंने, नहीं-नहीं, उनकी शरीक-ए-हयात ने मशहूर ई-कॉमर्स वेबसाइड से एक ड्रेस ऑर्डर की. शादियों का सीजन चल रहा था, लिहाज़ा ड्रेस भी थोड़ी शाही टाइप थी. कीमत थी करीब 17,000 रुपए लेकिन डिस्काउंट के बाद मिल रही थी 4664 रुपए में. अच्छी डील थी, सो उन्होंने ऑर्डर कर दिया. पेमेंट किया पतिदेव के क्रेडिट कार्ड (Credit Card) से जो कि एक बड़े प्राइवेट बैंक का था. खर्चा महसूस न हो इसलिए उन्होंने करीब 388 रुपए की 12 EMI बनवा ली. अब ऐसे में क्या होता है, आप जानते ही हैं. बैंक से ड्रेस की पूरी कीमत यानी 4664 रुपए ई-कॉमर्स वेबसाइट के अकाउंट में चले गए होंगे और क्रेडिट कार्ड धारक के लिए 12 आसान किस्तें बना दी गई होंगी. ऐसा ही हुआ. लेकिन ड्रेस जब घर पर डिलिवर हुई तो उसे देखकर मित्र को कुछ मजा नहीं आया. उन्होंने देखा- मैटेरियल में दम नहीं था, सिलाई की क्वॉलिटी भी खराब थी. पत्नी जी ने भी पाया कि जैसा लुक स्क्रीन पर आ रहा था, वैसा असल में है नहीं. नतीजा ये हुआ कि ऑर्डर कैंसिल कर दिया गया. और जैसा कि होता है, 24 घंटे के अंदर ही ई-कॉमर्स वेबसाइट की तरफ से Refund Initiated का मैसेज भी आ गया. इस तरह बात आई-गई हो गई.
क्रेडिट कार्ड का बिल देखा तो भौंचक्के रह गए
इस बात को करीब 3 महीने गुजर गए. पति-पत्नी भूल भी गए कि उन्होंने ऐसी कोई ड्रेस मंगाई थी और फिर ऑर्डर कैंसिल किया था. क्रेडिट कार्ड का बिल आता रहा, भरा जाता रहा. यूं तो ज्यादातर लोग बिल की डीटेल में नहीं घुसते, लेकिन अपने मित्र थोड़े जागरूक टाइप नागरिक हैं. एक रोज़ उन्होंने अपने क्रेडिट कार्ड के बिल पर गौर किया तो एक चीज़ देखकर हैरान रह गए. बिल डीटेल में करीब 388 रुपए की एक EMI का जिक्र था. बिल के मुताबिक ये ईएमआई एक ऑनलाइन शॉपिंग के नाम से वसूली जा रही थी. जी हां, आपने सही पकड़ा. ये उसी ड्रेस की EMI थी जिसका ऑर्डर 3 महीने पहले ही कैंसिल किया जा चुका था और वेबसाइट की तरफ से बैंक को पूरा रिफंड भी मिल चुका था. तो फिर ये EMI किस बात की? मित्र ने पिछले बिल चेक किए तो पता चला पिछले 2 महीनों के बिल में भी ये रकम शामिल थी. यानी बैंक को पूरे पैसे मिल गए लेकिन वो बाकायदा EMI वसूलता रहा? जाहिर है इस मामले में वेबसाइट की कोई गलती नहीं थी, सवाल तो बैंक से पूछा जाना था.
करतूत बैंक की और झमेला झेले कंज्यूमर?
कभी किसी बैंक के कस्टमर केयर नंबर पर कॉल की है आपने? भाई साहब, धैर्य की पूरी परीक्षा हो जाती है. पहले तो कई बार घंटी बजने पर कॉल उठेगी, उसके बाद उनका रिकॉर्डेड मेन्यू सुनते जाइये, नंबर दबाते जाइये. जरा सी चूक हो गई तो 'माफ कीजिए हमें आपसे कोई रिस्पॉन्स प्राप्त नहीं हुआ' करके कॉल कट. अब फिर से वही जद्दोजहद. किसी तरह आप उन्हें ये बताने में कामयाब हो गए कि आपको कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव से बात करनी है तो फिर उनकी बोरिंग सिंफनी और विज्ञापन सुनते हुए उबासियां लेने को तैयार रहिए. खैर, आपकी तपस्या से प्रसन्न होकर एग्जिक्यूटिव महोदय प्रकट होते हैं तो नया सिलसिला शुरू होता है. 'ज्यादा जानकारी लेने के लिए क्या मैं आपकी कॉल 1 मिनट के लिए होल्ड पर डाल सकता/सकती हूं?' बोलकर 3 मिनट के लिए गायब. और लौटकर जले पर नमक छिड़कने के लिए 'कॉल पर बने रहने के लिए धन्यवाद.' ऊपर से परेशान करने वाली बात ये है कि ये कॉल पूरी तरह चार्जेबल होती है. जी हां, यहां ये भी बताते चलें- ये जितने भी 1800 से शुरू होने वाले स्पेशल नंबर होते हैं ना, जिन्हें Toll Free नंबर बताया जाता है, ये सिर्फ लैंडलाइन से कॉल करने पर ही फ्री होते हैं. आम तौर पर लोग मोबाइल फोन से कॉल करते हैं जिसका उन्हें अच्छा-खास बिल भी चुकाना पड़ता है. और अगर आपने सोचा कि ये तो फुर्सत वाला काम है इसलिए ऑफिस निपटाने के बाद रात में आराम से कॉल करूंगा, तो हो सकता है कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव आपको टका सा जवाब दे दे कि इस वक्त हम आपकी ये वाली सर्विस रिक्वेस्ट नहीं ले सकते, इसके लिए आपको सुबह 9 से शाम 6 बजे वाली विंडो में कॉल करना होगा. यानी पूरी कहानी समझाने के बाद सब मिटाओ फिर से होगी.
बैंक की दलील सुनिए, भेजा फ्राई हो जाएगा
बहरहाल, ये तमाम अग्निपरीक्षाएं झेलते हुए हमारे मित्र कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव महोदय से संपर्क साधने में सफल हुए. उनके सामने अपनी समस्या रखी. पूछा कि भैया रकम तो आपको लौटा दी गई, फिर किस्त काहे बात की काट रहे हो? कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव महोदय ने 'असुविधा के लिए माफी' तो मांगी लेकिन लॉजिक ऐसा दिया जिसे सुनकर कोई भी अपना माथा पीट लेगा. उन्होंने फरमाया कि अगर आपने क्रेडिट कार्ड से ऑनलाइन शॉपिंग की है और उसकी ईएमआई बनवाई है तो ऑर्डर कैंसिल करने की सूरत में आपको ये पूरी जानकारी बैंक को देनी पड़ेगा. यानी कि बैंक के पास भले ही पूरा रिफंड आ गया हो लेकिन अगर आप बैंक को फोन करके अपनी EMI खत्म करने की गुजारिश नहीं करेंगे तो बैंक का क्रेडिट कार्ड विभाग आपको किस्तों में सामान का बिल भेजता रहेगा. मतलब, अगर आपसे EMI वसूली जा रही है तो सारा दोष आपका है, आपने बताया क्यों नहीं? जी हां, कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव महोदय के मुताबिक
यही बैंक की पॉलिसी है. है तो है. क्या कर लेंगे आप? वो सुदर्शन फ़ाक़िर का शेर है ना-
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा...
जो गड़बड़ी कर रहा है, नियम-कानून भी उसी के बनाए हुए हैं. बहरहाल, बैंक का वाहियात जवाब सुनकर मित्र आगबबूला हुए. फौरन पैसे लौटाने की चेतावनी दी. मीडिया से जुड़े हैं लिहाजा गुस्से में कुछ पीआर वालों को फोन भी घुमाया. आखिरकार कई राउंड के फॉलो-अप कॉल के बाद करीब दो हफ्ते में मामला सेटल हुआ. मित्र के पैसे वापस आ गए.
तो इस कहानी से क्या सबक मिला?
पहला और सबसे बड़ा सबक तो यही है कि अपने क्रेडिट कार्ड का बिल चुकाने से पहले उसपर जरा बारीकी ने नजर मार लेनी चाहिए. क्या पता, आपकी बेखबरी में बैंक कौन-सा बिल आपके नाम फाड़ रहा हो. होता क्या है कि आमतौर पर क्रेडिट कार्ड के बिल का जो फॉर्मैट होता है ना, उसमें अगर आपकी कोई EMI चल रही है तो सबसे नीचे लिखी होती है. वहां, जहां जीएसटी या सर्विस चार्ड की डीटेल होती है. इसलिए अक्सर लोग नीचे की एंट्रीज पर ध्यान नहीं देते. तो, सबक ये है कि ध्यान देना चाहिए. आखिर आपकी मेहनत की कमाई है. इसे यूं ही क्यों गंवाना? और दूसरी जो अहम बात इस वाकये से सीखने वाली है- कि अगर आपने क्रेडिट कार्ड से ऑनलाइन शॉपिंग की है और पेमेंट के लिए EMI ऑप्शन चुना है तो ऑर्डर कैंसिल करके बेफिक्र मत हो जाइये. बैंक को संपर्क करके इसकी जानकारी भी दीजिए. इतना ही नहीं, अगले बिल में चेक कीजिए की कहीं उस शॉपिंग की ईएमआई तो नहीं बन रही?
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