क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: FASTag आया, फ्रॉड लाया
छोटे थे तो एग्जाम में एक निबंध लिखने को आता था- विज्ञान: वरदान या अभिशाप. जैसा कि टॉपिक से ही जाहिर है- इसमें विज्ञान के फायदे गिनाने के साथ ही सिक्के के दूसरे पहलू की भी बात होती थी.
छोटे थे तो एग्जाम में एक निबंध लिखने को आता था- विज्ञान: वरदान या अभिशाप. जैसा कि टॉपिक से ही जाहिर है- इसमें विज्ञान के फायदे गिनाने के साथ ही सिक्के के दूसरे पहलू की भी बात होती थी. यानी कि विज्ञान की वजह से हो रहे नुकसान या कहिए तकनीक के गलत इस्तेमाल की. उस दौर को कई दशक गुजर गए. टेक्नोलॉजी कहां से कहां पहुंच गई. लैंडलाइन फोन की जगह टचस्क्रीन स्मार्टफोन आ गए. बैंकों की लंबी लाइनों की जगह सेकेंड्स में ट्रांजैक्शन करने वाले यूपीआई ऐप आ गए. लेकिन वो बहस आज भी बरकरार है. जिंदगी में सहूलियत जोड़ने के लिए कोई नई तकनीक ईजाद होती है लेकिन चंद लोग उस तकनीक को बेजा हरकतें करने का जरिया बना लेते हैं. अब फास्टैग (FASTag) को ही ले लीजिए. लाया तो गया है टोल प्लाजा पर ट्रैफिक को रफ्तार देने और टोल कलेक्शन को कैशलेस बनाने के लिए. लेकिन खबरें कुछ और ही आ रही हैं. कहीं से किसी के 50 हजार ठगे जाने की खबर आ रही है तो कहीं से 90 हजार. केवाईसी वाले फ्रॉड, डेबिट-क्रेडिट कार्ड वाले फ्रॉड और क्यू आर कोड वाले फ्रॉड तो रुक नहीं पाए, अब इस लिस्ट में नया नाम जुड़ गया है फास्टैग (FASTag fraud) वाला फ्रॉड.
फास्टैग के चक्कर में बेंगलुरु के शख्स ने गंवाए 50,000 रु
ये किस्सा आपको जानना चाहिए क्योंकि #FASTag की जरूरत आज नहीं तो कल तकरीबन हर किसी को पड़ने वाली है. बेंगलुरू के उस कंज्यूमर ने एक्सिस बैंक से FASTag खरीदा था. दिक्कत ये आ रही थी कि उनका फास्टैग वॉलेट (FASTag Wallet) एक्टिवेट नहीं हो पा रहा था. उन्होंने अपना गुस्सा ट्विटर पर जाकर निकाला. शिकायत के साथ ही उन्होंने ट्विटर पर अपने कॉन्टैक्ट डीटेल्स भी शेयर कर दिए. इसी के बाद उनके पास एक कॉल आई. कॉल करने वाले ने खुद को एक्सिस बैंक का कस्टमर केयर एक्जिक्यूटिव बताया. इन्हें अंदाजा नहीं था कि कॉल फर्जी है और कॉल करने वाला धोखेबाज. उस धोखेबाज ने एसएमएस के जरिए एक लिंक भेजा जिसपर लिखा था Axis Bank-FASTag form. उसने बताया कि फास्टैग वॉलेट एक्टिवेट करने के लिए आपको ये फॉर्म भरना होगा और ये फॉर्म खुद में 'प्वॉइंट ऑफ रिचार्ज' है यानी ये सीधा बैंक में सब्मिट हो जाएगा और आपका वॉलेट एक्टिवेट हो जाएगा. उसकी बात पर यकीन करके इन्होंने फॉर्म भरना शुरू कर दिया. फॉर्म में पूरा नाम, रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर और यूपीआई पिन जैसी डीटेल मांगी गई थी. इन्होंने सब भर दिया. अब घोटालेबाजों ने यूपीआई पिन के जरिए इनके अकाउंट से 50 हजार का ट्रांजैक्शन किया होगा जिसके बाद इनके फोन पर ओटीपी आया. FASTag एक्टिवेट करने के चक्कर में उन्होंने ओटीपी तक शेयर कर दिया. और बस, हो गया कांड. खाते से 50 हजार साफ हो गए.