Home Loan लेने की कर रहे हैं प्लानिंग, जान लीजिए कैसे तय होती है EMI, Interest Rate, Tenure समेत सभी जरूरी बातें
Home Loan Tips: यदि आप होम लोन अप्लाई करने की सोच रहे हैं, उसके पहले जान लें ये कुछ जरूरी बातें.
Home Loan लेने के पहले रखें इन बातों का ख्याल. (Source: Pixabay)
Home Loan लेने के पहले रखें इन बातों का ख्याल. (Source: Pixabay)
Home Loan Tips: क्या आप एक घर या फ्लैट खरीदने की योजना बना रहे हैं या अपने मौजूदा घर को ही रिनोवेट करने की सोच रहे हैं. इन सभी के लिए आप आसानी से होम लोन ले सकते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की जानकारी के अनुसार आप एक या फ्लैट खरीदने के लिए या फिर मौजूदा घर को रिनोवेट करने के लिए पहली बार में होम लोन ले सकते हैं. हालांकि यह बात ध्यान देने वाली है कि जो लोग दूसरा घर खरीदने जा रहे हैं, उनके लिए ज्यादातर बैंकों की पॉलिसी अलग है. इसलिए यदि आप होम लोन अप्लाई करने की सोच रहे हैं, उसके पहले जान लें ये कुछ जरूरी बातें.
बैंक कैसे तय तय करते हैं होम लोन एलिजिबिलिटी
होम लोन की एलिजिबिलिटी तय करते समय आपका बैंक आपके लोन वापस कर पाने की क्षमता देखता है. लोन वापस कर पाने की क्षमता आपकी मासिक डिस्पोजेबल/सरप्लस इनकम पर आधारित होता है. इसके अलावा पति/ पत्नी की इनकम, ,संपत्तियां, देनदारियां और इनकम की स्थिरता भी निर्भर करती है.
होम लोन देते वक्त बैंक की मुख्य चिंता बस इस बात की होती है कि आप आराम से सही समय पर लोन चुका दें और जिस कारण से लोन लिया है, उसका सही इस्तेमाल करें. आपकी मासिक तौर पर खर्च करने योग्य इनकम जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक राशि का लोन पाने के आप एलिजिबिल होंगे.
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आमतौर पर बैंक यह मानते हैं कि आप अपनी मासिक डिस्पोजेबल इनकम का लगभग 55-60 फीसदी तक लोन चुकाने के लिए उपलब्ध हो सकता है. हालांकि कुछ बैंक किसी व्यक्ति की Gross Income के आधार पर उसके उपलब्ध इनकम का कैलकुलेशन करते हैं, न कि उसकी डिस्पोजेबल आय के आधार पर.
लोन का अमाउंट, लोन चुका पाने की अवधि (Loan Tenure) और इंटरेस्ट रेट पर निर्भर करता है. क्योंकि ये आपके मासिक डिस्पोजेबल इनकम में बदलाव करते हैं. बैंक आमतौर पर होम लोन एप्लीकेंट्स की ऊपरी आयु सीमा (Upper Age Limit) तय करते हैं.
लोन अप्रूवल के लिए कौन से डॉक्यूमेंट्स मांगे जाते हैं
बैंक आपसे आपके खरीदे जाने वाले घर के सभी लीगल पेपर्स मांगता है. इसके अलावा आपको पहचान और निवास का प्रमाण भी देना होता है. लेटेस्ट सैलरी स्लिप (इम्प्लॉयर द्वारा सत्यापित और सेल्फ अटैच्ड ), फॉर्म 16 (व्यापारियों और सेल्फ इम्प्लॉयड लोगों के लिए), और पिछले 6 महीने के बैंक स्टेटमेंट या बैलेंस शीट की जरूरत होती है.
आपको अपनी फोटो के साथ भरा हुआ एक एप्लीकेशन फॉर्म सब्मिट करना होता है. लोन एप्लीकेशन फॉर्म के साथ जरूरी डॉक्यूमेंट्स की चेकलिस्ट भी लगी होती है.
इसके साथ ही आपको यह भी सलाह दी जाती है कि होम लोन लेने में जल्दीबादी न करें और इस संबंध में कॉर्मिशियल बैंक द्वारा दी जा रहे नियम और शर्तों में किसी भी छूट पर चर्चा करें और अधिक जानकारीं प्राप्त करें.
बैंकों द्वारा दी जाने वाली विभिन्न इंटरेस्ट ऑप्शन क्या हैं
बैंक आमतौर पर निम्न में से कोई एक ऋण विकल्प (Loan option) प्रदान करते हैं:
फ्लोटिंग रेट होम लोन (Floating Rate Home Loan) और फिक्स्ड रेट होम लोन (Fixed Rate Home Loan). Fixed Rate लोन के लिए, इंटरेस्ट रेट या तो लोन की पूरी अवधि के लिए या लोन की अवधि के एक निश्चित हिस्से के लिए तय की जाती है. शुद्ध फिक्स्ड लोन के मामले में, बैंक की EMI स्थिर रहती है.
Fixed Rate loan की EMI पहले से पता चल जाती है. यह कैश ऑउटफ्लो है, जो लोन के शुरूआत में ही तय किया जा सकता है. यदि इकोनॉमी में में इंफ्लेशन या इंटरेस्ट रेट में कोई वृद्धि होती है, तो एक Fixed Rate Loan की EMI स्थिर ही रहती है. हालांकि अगर आपने EMI फिक्स कर दी है, तो ब्याज दरों में किसी भी गिरावट का आपको कोई फायदा नहीं होगा.
Floating rate Loan में मार्केट के हिसाब से इंटरेस्ट रेट में बदलाव आता रहता है. यदि मार्केट में रेट बढ़ेगा तो आपके EMI भी बढ़ जाएंगे और यदि मार्केट रेट गिरता है तो आपके EMI में भी कटौती होगी.
Floating Rate दो भागों से बनती है: इंडेक्स और स्प्रेड (Index and Spred). इंडेक्स से इंटरेस्ट रेट मापा जाता है और स्प्रेड से बैंक अपने आपको क्रेडिट जोखिम से बचाता है. स्प्रेड की राशि विभिन्न बैंकों की अलग-अलग हो सकती है. लेकिन आमतौर पर यह लोन की अवधि पर निर्भर करती होती है. अगर इंडेक्स रेट बढ़ता है, तो ज्यादातर परिस्थितियों में आपकी ब्याज दर भी बढ़ जाती है और आपको अधिक ईएमआई का भुगतान करना होगा. इसके विपरीत, यदि ब्याज दर नीचे जाती है, तो आपकी EMI कम होनी चाहिए.
इसके अलावा बैंक कुछ एडजस्टमेंट भी करते हैं, ताकि आपकी EMI स्थिर बनी रहे. ऐसे मामलों में आपकी EMI स्थिर रहती है, लेकिन लोन की अवधि बढ़ जाती है. कुछ बैंक अपने Floating Rates को अपने बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट्स (BPLR) पर फिक्स करते हैं. ऐसे में यह भी पूछा जाना चाहिए कि Floating Rates फिक्स करने के लिए किन इंडेक्स का इस्तेमाल किया गया है और अतीत में यह कैसा व्यवहार करता आया है. हालांकि पिछला उतार-चढ़व उसके भविष्य की गारंटी नहीं होती है.
लोन की अवधि आपके लोन को कैसे प्रभावित करती है
लोन की अवधि (Tenure) जितनी लंबी होगी, आपकी मासिक EMI उतनी ही कम होगी. छोटी अवधि का मतलब है EMI का अधिक बोझ, लेकिन इसका फायदा यह है कि आपका लोन तेजी से खत्म हो जाता है. अगर आपके पास कैश फ्लो में कमी है तो बैंक आपके लोन की अवधि को बढ़ा सकता है. इससे आप पर EMI का बोझ कम हो जाएगा. लेकिन लंबी अवधि का मतलब है कि आपकों अपने लोन पर अधिक ब्याज देना पड़ेगा.
07:05 PM IST