Zero Tillage Technology: देश के कई इलाकों में धान देरी से कटता है और खेत तैयार करते-करते गेहूं की बुवाई (Wheat Sowing) दिसंबर के अंत या जनवरी के पहले हफ्ते तक की जाती है. देरी से बुवाई की वजह से अच्छी लागत के बावजूद उत्पादन में कमी आती है. देरी से बुवाई के कारण फसल कटनी के साथ तापमान ज्यादा होता है जिससे उत्पादकता में कमी आती है. खेती की तैयारी और बुवाई की परंपरागत विधि के विपरीत जीरो टिलेज तकनीक (Zero Tillage Technique) अपनाने से न केवल बुवाई के समय में 15-20 दिनों की बचत होती है, बल्कि उत्पादकता को ज्यादा बरकरार रखते हुए खेती की तैयारी पर आने वाली लागत को पूरी बचायी जा सकती है.

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

गेहूं की देर से बुवाई करने पर उत्पादन और उत्पादकता में गिरावट आ जाती है. अब किसानों के सामने बड़ी चुनौती यही है कि खेत के बिना तैयार किए, जुताई और पाटा लगाए बिना बुवाई कैसे करें.  जीरो टिलेज (Zero Tillage) से बुवाई से खेत की जुताई करने के लिए समय बर्बाद नहीं करना होता. जीरो टिलेज मशीन से गेहूं के बीजों की बुवाई करना फायदेमंद रहता है. इस तरह अलग से सिंचाई करने की भी जरूरत नहीं पड़ती.

ये भी पढ़ें- Subsidy News: सिंचाई की इस तकनीक से बेचेंगे पैसे, बढ़ेगी उपज, सरकार दे रही 80% सब्सिडी, यहां करें आवेदन

क्या है जीरो टिलेज तकनीक?

धान की कटाई के बाद खेत की जुताई किए बिना मशीन की मदद से सीधी कतार में बुवाई की अनोखी तकनीक है जीरो टिलेज. खरीफ सीजन के तुरंत बाद इस तकनीक से गेहूं की बुवाई करने से कम लागत में अच्छी पैदावार ली जा सकती है.

जीरो टिलेज मशीन

जीरो टिल- सीड-ड्रिल आमतौर पर इस्तेमाल में लाई जाने वाली सीड ड्रिल जैसी है. अंतर सिर्फ इतना है कि सामान्य ड्रिल में लगने वाले चौड़े फलों की जगह इसमें पतले फाल (टाइन) लगे होते हैं जो बिना जुते हुए खेत में कूंड बनाते हैं जिसमें गेहूं के बीज और फर्टिलाइजर साथ-साथ गिरते रहते हैं.

ये भी पढ़ें- Business Idea: तिल की खेती से होगा तगड़ा मुनाफा, जानिए बुवाई से लेकर कटाई का सही तरीका

इस मशीन द्वारा कटाई के बाद बाकी बचे धान के डंठलों वाले खेत में भी इससे कूंड निकालकर बुवाई की जा सकती है. जीरो-टिल-सीड-ड्रिल को 35-45 हॉर्सपावर वाले ट्रैकटर से आसानी से चलाया जा सकता है. 9 कतार वाली जीरो-टिल-सीड-ड्रिल मशीन से एक घंटे में एक एकड़ खेत की बुवाई की जा सकती है. जीरो टिलेज तकनीर से बोये गए गेहूं की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 15-20 दिनों में करनी चाहिए. 

जीरो टिलेज के फायदे

  • पारंपरिक विधि से धान के कटने के बाद गेहूं की बुवाई के लिए खेती की तैयारी के लिए 5-6 बार जुताई पर होने वाले खर्च (लगभग 1500-2000 रुपये प्रति हेक्टेयर) की बचत जीरो टिलेज तकनीक को अपनाने से की जा सकती है.
  • इस तकनीक के इस्तेमाल से धान की कटाई के तुरंत बाद मिट्टी में समुचित नमी रहने पर गेहूं की बुवाई कर देने से फसल की अवधि में 20-25 दिनों का अतिरिक्त समय मिल जाता है, जिससे गेहूं की पैदावार में बढ़ोतरी होती है.
  • इस तकनीक के इस्तेमाल से बोये गए गेहूं के बीज की गहराई 3-5 सेमी होती है और बीज के ऊपर हल्की मिट्टी की परत पड़ती जाती है. इससे बीज का जमाव अच्छा होता है.
  • इस तकनीक को अपनाने से मिट्टी में फसल अवशेष के योगदान से कार्बनिक पदार्थ के साथ-साथ पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्वों की बढ़ोतरी होती है.
  • खरपतवारों का प्रकोप काफी कम किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- रबी सीजन में करें कठिया गेहूं की खेती, 3 सिंचाई में 60 क्विंटल तक उत्पादन