Natural Farming: हिमाचल प्रदेश के आदिवासी लाहौल और स्पीति जिले में 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित स्पीति क्षेत्र को अक्सर एक ही कृषि मौसम के साथ अपनी कठोर जलवायु के लिए ‘ठंडा रेगिस्तान’ (Cold Desert) कहा जाता है. स्पीति घाटी (Spiti Valley) में स्थानीय महिला किसानों द्वारा अपनाई गई प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) पद्धतियों से बेहतर फसल, स्वस्थ उपज और आय के स्तर में सुधार हुआ है. 

प्राकृतिक खेती से बढ़ी कमाई

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स्पीति घाटी के काजा के लिडांग गांव की 43 वर्षीय स्नातक और पूर्णकालिक किसान येशे डोल्मा का कहना है कि प्राकृतिक खेती ने उनके खेत और उनकी आय को बढ़ाया है और वह एकल फसल के मौसम वाले इस ठंडे रेगिस्तान में खेती से सबसे अच्छा लाभ प्राप्त कर रही हैं. डोल्मा ने 20 बीघा जमीन पर मटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, लाल पत्तागोभी, ब्रोकली, सलाद, गाजर, मूली, जौ, गेहूं और आलू उगाने के लिए प्राकृतिक खेती (Natural Farming) तकनीक अपनाई है.

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अब सालाना हो रही 3 लाख रुपये की कमाई

उन्होंने कहा कि अतीत में, कीट अक्सर फूलगोभी और पत्तागोभी जैसी सब्जियों को परिपक्व होने से पहले ही नुकसान पहुंचा देते थे. हालांकि, प्राकृतिक कृषि पद्धतियों से पैदावार में सुधार हुआ है और उपज बेचकर कमाई सालाना 1 लाख रुपये की तुलना में बढ़कर 3 लाख रुपये हो गई है.

पॉलीहाउस में कर रहीं प्राकृतिक खेती

उन्होंने कहा, मैं पॉलीहाउस में प्राकृतिक खेती की तकनीक का उपयोग करके पौधे उगाती हूं और उन्हें बेचकर 20,000 रुपये से अधिक का लाभ कमाती हूं. उन्होंने कहा कि मिट्टी और पौधे के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है. 

खेत में ही तैयार करते कृषि आदान

प्राकृतिक खेती एक गैर-रासायनिक, कम लागत वाली और जलवायु-सहिष्णु कृषि तकनीक है जो देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित है और किसानों की बाजार पर निर्भरता कम करती है. किसान सभी कृषि आदानों को खेत में ही तैयार करते हैं. प्राकृतिक खेती की तकनीक खेती की लागत को कम करती है और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के अलावा पौधों की बीमारियों को रोकने में भी सहायक रही है. प्राकृतिक उपज का सेवन स्वास्थ्यवर्धक है क्योंकि यह रसायनों से मुक्त है.

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2 लाख किसानों को मिली ट्रेनिंग

हिमाचल प्रदेश में अब 1.74 लाख किसान, जिनमें बड़ी संख्या में महिला किसान भी शामिल हैं, आंशिक या पूर्ण रूप से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. राज्य में प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना (पीके3वाई) के तहत 2 लाख से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षित किया गया है. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अबतक 24,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपयोग प्राकृतिक खेती के लिए किया जाता है.

खेती का केवल एक ही मौसम

स्पीति के एकांत गांव लोसर के 45 वर्षीय किसान तेनज़िन डोलमा ने कहा, हम अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिए सर्वोत्तम विकल्पों की तलाश करते हैं, क्योंकि यहां खेती का केवल एक ही मौसम होता है. उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से हम कृषि में रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं, लेकिन प्राकृतिक खेती तकनीक टिकाऊ कृषि के लिए कई अन्य लाभ के साथ-साथ गैर-रासायनिक आदानों के व्यवस्थित प्रबंधन को सुनिश्चित करती है.

डोलमा, जो 15 बीघे में प्राकृतिक खेती करती हैं. एक छोटे से पॉलीहाउस में मटर, आलू, जौ और अलग-अलग सब्जियों की खेती करती हैं. उन्होंने कहा,  मैंने प्राकृतिक खेती तकनीक के अनुसार मटर की लाइन में बुवाई करने की कोशिश की है और देखा है कि इससे मटर की फली लंबी निकलती है. उन्होंने कहा, प्राकृतिक खेती के साथ, दो किलो बीज से दो बैग (प्रत्येक का वजन 50 किलोग्राम) मटर पैदा होता है. अब, हम अपने खुद के बीज का उत्पादन कर रहे हैं और मटर बेचकर 1.5 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं.

छेरिंग लामो अपने पति तानपा के साथ स्पीति में 4,587 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मोटर पहुंच योग्य सड़क से जुड़े दुनिया के सबसे ऊंचे गांव कोमिक में रहती हैं. वह अपनी 12 बीघे भूमि पर मटर और जौ की खेती करती हैं और प्राकृतिक खेती (Natural Farming) अपनाने के बाद उत्पादन में वृद्धि हुई है. इस क्षेत्र में मटर एक प्राथमिक नकदी फसल है.