कड़कड़ाती ठंड में आलू की फसल में लग सकते हैं ये रोग, जान लें बचाव का तरीका नहीं होगा नुकसान
Potato Cultivation: इस समय मौसम में बदलाव, कोहरा, तापमान में उतार-चढ़ाव के चलते किसानों को खेत में लगे आलू की फसल में झुलसा रोग के साथ लाही जैसे रोग लगने लगते हैं. रोग लगने से आलू की फसल खराब होने पर किसानों को बड़ा नुकसान हो सकता है. आइए जानते हैं इन रोगों से आलू फसल की सुरक्षा कैसे कर सकते हैं.
Potato Cultivation: आलू एक नगदी फसल है. देश में आलू का सेवन पूरे साल किया जाता है. इसकी खपत बहुत अधिक है, इसलिए आलू की खेती (Potato Farming) बड़े पैमाने पर की जाती है. बाजार में आलू की नई फसल आने लगी है. लेकिन देश में पड़ रही कड़ाके की ठंड और शीतलहर से आलू की फसल को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में किसान भाइयों को आलू की फसल में लगने वाले रोग और इससे बचने का तरीका जरूर जान लेना चाहिए.
इस समय मौसम में बदलाव, कोहरा, तापमान में उतार-चढ़ाव के चलते किसानों को खेत में लगे आलू की फसल में झुलसा रोग के साथ लाही जैसे रोग लगने लगते हैं. रोग लगने से आलू की फसल खराब होने पर किसानों को बड़ा नुकसान हो सकता है. आइए जानते हैं इन रोगों से आलू फसल की सुरक्षा कैसे कर सकते हैं.
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अगात झुलसा (Alteraria Solani)
तापमान में ज्यादा गिरावट और वातावरण में नमी ज्यादा होने के कारण रोग का फैलाव तेजी से होता है. इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग का रिंगनुमा कन्सेंट्रिक गोल धब्बा बनता है और धब्बों के बढ़ने से पत्तियां झुलस जाती है. बिहार में यह रोग जनवरी के दूसरे-तीसरे हफ्ते में दिखाई देता है.
बचाव
अगात झुलसा रोग से बचने के लिए किसान स्वस्थ और स्वच्छ बीच का इस्तेमाल करें. फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही जिनेव 75% में 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या कैप्टान 75% में 1.66 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
पिछात झुलसा (Phytophthora Infestans)
तापमान 10 डिग्री से 19 डिग्री सेल्सियस रहने पर आलू में पिछात झुलसा रोग लगने का खतरा होता है. इस तापमान को किसान 'आफत' भी कहते हैं. फसल में संक्रमण रहने पर और वर्षा हो जाने पर बहुत कम समय में यह रोग फसल को बर्बाद कर देता है. इस रोग से आलू की पत्तियां किनारे से सूखती है. सूखे भाग को दे उंगलियों के बीच रखकर रगड़ने से खर-खर की आवाज आती है.
बचाव
पिछात झुलसा रोग से आलू की खेती को बचाने के लिए किसान स्वस्थ और स्वच्छ और प्रमाणित बीच का ही प्रयोग करें. फसल की सुरक्षा के लिए किसान 10-15 दिन के अंतराल पर मैंकोजेब 75% में 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर या जिनेब 75% 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. इसके अलावा, संक्रमित फसल में मेटालैक्सिल 8% + मैकोजेब 64% डब्ल्यू.पी संयुक्त उत्पादन का 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर या कार्बेन्डाजिम 12% और मैंकोजेब 63% संयुक्त उत्पादन का 1.75 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
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लाही (Aphid)
आलू में लाही का आक्रमण देखा जा रहा है. यह लाही गुलाबी या हरे रंग का होता है. यह पौधे की पत्तियों से रस चुसकर पौधो को कमजोर कर देता है जिस कारण पत्तियों और तने छोटे व विकृत हो जाते हैं. यह आलू में 'Potato Leaf Roll Virus' के वाहक का भी काम करता है. यह आलू फसल के अलावा सरसों और अन्य फसलों के भी प्रमुख कीट हैं.
बचाव
मित्र कीट से संरक्षण किया जाए. आलू फसल पर ऑक्सीडिमेटान-मिथाइल 25% ई.ईसी का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या Thiamethoxam 25% WG 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर दर से पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करें.
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