Tea Plantation: देशभर में चाय के पौधों पर कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ने के कारण चाय उत्पादकों की चिंता बढ़ गई है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान और लंबे समय तक बारिश नहीं होने से भी फसल को नुकसान पहुंच रहा है. उद्योग निकाय चाय अनुसंधान संघ (TRA) ने बताया कि चाय उत्पादकों को सालाना लगभग 14.7 करोड़ किलोग्राम फसल का नुकसान हो रहा है.

सालाना 2865 करोड़ रुपये का नुकसान

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टीआरए ने एक बयान में कहा कि चाय के पौधों पर कीटों के हमलों से राजस्व को सालाना 2,865 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है. टीआरए के सचिव जयदीप फुकान ने कहा, कीटों और बीमारियां का प्रकोप पहले भी था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह बढ़ गया है.

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उत्तर भारत में, कीटों के हमले शुरू में पश्चिम बंगाल में डुआर्स के कुछ क्षेत्रों और असम के दक्षिण तट तक सीमित थे. लेकिन, पिछले दो दशकों में यह कछार, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग और तराई के अन्य चाय उत्पादक क्षेत्रों में तेजी से फैला है.

पूर्वोत्तर भारत में दीमक के संक्रमण की घटनाएं बढ़ीं

उत्तर भारतीय चाय बागानों में प्रचलित प्रमुख कीट चाय मच्छर कीड़े और थ्रिप्स के अलावा लूपर कैटरपिलर हैं. टीआरए अधिकारी ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में दीमक के संक्रमण की घटनाएं भी बढ़ रही हैं और फैल रही हैं, जो नए क्षेत्रों में फैल रही है.

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चाय बागानों में पौधों की सुरक्षा की लागत कई गुना बढ़ी

बयान में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से और देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में चाय बागानों में पौधों की सुरक्षा की लागत पिछले दो दशकों में कई गुना बढ़ गई है, जो 25,000 रुपये से 30,000 रुपये प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गई है. चाय में कीटों के संक्रमण के कारण फसल का नुकसान प्रति वर्ष 147 मिलियन किलोग्राम होने का अनुमान है और राजस्व में नुकसान लगभग 2,865 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है.

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