मुनाफे के हिस्‍से को शेयरहोल्‍डर्स के बीच बांटती है तो उसे डिविडेंड कहा जाता है. हालांकि डिविडेंड देना या न देना, किसी भी कंपनी का अपना फैसला होता है. डिविडेंड देने का कोई अनिवार्य नियम नहीं बनाया गया है. लेकिन फिर भी तमाम कंपनियां हैं जो शेयरहोल्‍डर्स को समय-समय पर डिविडेंड देती हैं. डिविडेंड से शेयरहोल्‍डर्स का फायदा तो समझ में आता है, लेकिन कंपनी को डिविडेंड देने से क्‍या फायदा होता है, कभी इस बारे में सोचा है आपने? यहां जानिए इसके बारे में.

निवेशकों का भरोसा रहता है कायम

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डिविडेंड से कंपनी का सीधेतौर पर कोई फायदा नहीं होता. लेकिन तमाम कंपनियां अपने मुनाफे में शेयरहोल्डर्स को भी हिस्सेदारी मानती हैं. ऐसे में वो उन शेयरहोल्‍डर्स का कंपनी पर भरोसा कायम रखने के लिए डिविडेंड बांटती हैं. ऐसे में अगर शेयरहोल्‍डर्स को शेयर्स में कुछ घाटा भी हुआ है तो डिविडेंड से उस घाटे की भरपाई हो जाती है. निवेशक कंपनी से जुड़ा रहता है और उसका भरोसा कंपनी पर बना रहता है.

इन्‍वेस्‍टर्स होते हैं आकर्षित

कई बार कंपनियां शेयरों में गिरावट को रोकने या फिर और अधिक शेयरधारकों को आकर्षित करने के लिए भी डिविडेंड बांटती हैं. इससे आकर्षित होकर ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग उस कंपनी के शेयरों में निवेश करते हैं और इससे कंपनी के शेयर्स के रेट्स में उछाल आता है. ज्‍यादातर निवेशक ऐसी कंपनियों की तलाश में रहते हैं, जो ज्‍यादा से ज्‍यादा डिविडेंड देती हैं. 

डिविडेंड से जुड़ी जरूरी बातें

  • डिविडेंड हर तिमाही के नतीजे के साथ दिया जाता है. ये कंपनियों पर निर्भर करता है कि वो डिविडेंड कब देती हैं, कितना देती हैं और कितनी बार देती हैं. 
  • डिविडेंड आपके अकाउंट में कैश में भी आ सकता है या फिर एडिशनल स्टॉक में रिइन्वेस्टमेंट के तौर पर भी मिल सकता है.
  • प्रति शेयर पर मिलने वाले लाभांश को डिविडेंड यील्ड कहते हैं. डिविडेंड यील्ड का इस्तेमाल ये पता करने में होता है कि कंपनी शेयर के मार्केट प्राइस की तुलना किसी कंपनी ने आपको कितना डिविडेंड‍ दिया है.
  • शेयरों के अलावा, कुछ म्युचुअल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड भी निवेशकों को डिविडेंड देते हैं.
  • डिविडेंड का एक्स डेट और रिकॉर्ड डेट होता है. एक्स डेट उस तारीख को कहते हैं, जब डिविडेंड एलिजिबिलिटी एक्सपायर हो रही हो. यानी कि अगर किसी कंपनी ने 13 सितंबर एक्स डेट फिक्स किया है तो उस दिन पर या उस दिन के बाद स्टॉक खरीदने वालों को डिविडेंड नहीं मिलेगा. 
  • रिकॉर्ड डेट एक तरह से कटऑफ डेट होती है. कंपनी यह तारीख तय करती है और इससे यह तय किया जाता है कि कौन सा शेयरहोल्डर डिविडेंड पाने का पात्र है या नहीं. एक तरीके से यह लॉयल्टी देखी जाती है कि आप कितने वक्त से कंपनी का स्टॉक होल्ड किए हुए हैं.

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