Bank FD में भी होते हैं कई रिस्क, 100% रकम नहीं है सेफ, निवेश करने से पहले जरूर जान लें ये बातें
मार्केट की तुलना में एफडी काफी सुरक्षित है, लेकिन एफडी में भी पैसा 100 फीसदी सेफ नहीं होता है. एफडी पर भी कुछ रिस्क फैक्टर्स और ड्रॉबैक्स होते हैं, जिनके बारे में लोगों को मालूम नहीं होता है.
Bank FD को निवेश का एक पारंपरिक जरिया माना जाता है. तमाम लोग आज भी जितना भरोसेमंद फिक्स्ड डिपॉजिट की स्कीम को मानते हैं, उतना किसी को नहीं मानते. एफडी मार्केट के जोखिम से मुक्त होती है और इसमें आपको एक निश्चित रिटर्न मिलता है. ये सच है कि मार्केट की तुलना में एफडी काफी सुरक्षित है, लेकिन एफडी में भी पैसा 100 फीसदी सेफ नहीं होता है. एफडी पर भी कुछ रिस्क फैक्टर्स और ड्रॉबैक्स होते हैं जिनके बारे में तमाम लोग नहीं जानते हैं. आइए आपको बताते हैं.
5 लाख तक का डिपॉजिट ही सुरक्षित
अगर आपको लगता है कि एफडी पर आपकी रकम पूरी तरह से सुरक्षित रहती है, तो ऐसा नहीं है. अगर बैंक किसी कंडीशन में डिफॉल्ट कर जाए, तो निवेशकों का सिर्फ 5 लाख तक का डिपॉजिट ही सेफ रहता है. इसका कारण है कि डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) बैंक डिपॉजिट पर सिर्फ 5,00,000 रुपए तक की ही इंश्योरेंस गारंटी देता है. यानी बैंक के दिवालिया होने या बैंक के डूबने की स्थिति में अकाउंट होल्डर को केवल 5 लाख तक की ही रकम मिलेगी, भले ही अकाउंट होल्डर के 10 लाख रुपए बैंक में जमा हों.
लिक्विडिटी की समस्या
बैंक एफडी में लिक्विडिटी का इश्यू होता है. अगर आप एफडी को समय से पहले तुड़वाते हैं तो इस पर प्री-मैच्योर पेनल्टी देनी पड़ती है. एफडी पर क्या पेनल्टी अमाउंट होगा, ये बैंकों में अलग अलग हो सकता है. अगर आपने कोई टैक्स सेविंग एफडी में निवेश किया हुआ है, तो आप इसको 5 साल की अवधि से पहले भी निकाल सकते हैं. लेकिन इस स्थिति में आपको टैक्स में छूट नहीं मिल पाती है.
रीइन्वेस्टमेंट में नुकसान की आशंका
एफडी पर मिलने वाला ब्याज बढ़ता और घटता रहता है, ऐसे में अगर आपने रीइन्वेस्टमेंट का विकल्प चुना है तो आपकी रकम टेन्योर पूरा होने के बाद अपने आप फिर से रीइन्वेस्ट हो जाएगी. लेकिन ऐसे में अगर ब्याज दरें और घट गईं तो आपको भी अमाउंट पर घटा हुआ ब्याज ही मिलेगा यानी आपका रिटर्न पहले से कम होगा.
इस स्थिति में पाबंदी का रिस्क
सभी बैंकों की हर गतिविधि पर आरबीआई अपनी नजर बनाकर रखता है. अगर किसी भी बैंक के फाइनेंशियल्स में गड़बड़ी मिलती है, तो रिजर्व बैंक उस पर पाबंदी लगा सकता है. ऐसे में डिपॉजिटर्स का पैसा भी होल्ड होने का खतरा रहता है. इस स्थिति में निवेशक को रकम वापस मिलने के लिए इंतजार करना पड़ सकता है और नुकसान भी झेलना पड़ सकता है.
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