Tokyo Paralympics 2020: जैवलिन थ्रो में भारत के लिए यह खिलाड़ी अब तक जीत चुका है दो गोल्ड मेडल, इस बार रहेगी हैट्रिक पर नजर
Paralympics 2020 India Devendra Jhajharia: साल 2016 में आयोजित रियो ओलंपिक में भी देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) ने अपने प्रदर्शन को दोहराकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
Paralympics 2020 India Devendra Jhajharia: ओलंपिक (Olympics) के बाद अब टोक्यो में होने वाले पैरालंपिक (Paralympics) में सबकी नजरें देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) पर बनी रहेंगी. झाझरिया 2004 एथेंस पैरालंपिक के एफ-46 वर्ग में अपना पहला गोल्ड मेडल जीतने में कामयाबी हासिल की थी. इसके बाद साल 2016 में आयोजित रियो ओलंपिक में भी देवेंद्र झांझरिया (Devendra Jhajharia) ने अपने प्रदर्शन को दोहराकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
पैरालंपिक (Paralympics) में देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) के पास इस बात तीसरी बार गोल्ड मेडल जीतने की होगी. हालांकि, भारत की ओर से जैवलिन थ्रो में दो गोल्ड मेडल जीतने वाले वह अकेले खिलाड़ी हैं. जैवलिन थ्रो को 2008 और 2012 के खेलों में जगह नहीं मिलने के बाद उन्होंने इस खेल को छोड़ने का मन बना लिया था. लेकिन साल 2016 में जब उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका मिला तो उन्होंने इस मौके को दोनों हाथों से लपकने का काम किया.
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इस वजह से जैवलिन थ्रो छोड़ देना चाहते थे झाझरिया
40 साल के पैरा एथलीट देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) ने कुछ दिन पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी से ऑनलाइन बातचीत की थी. इस दौरान उन्होंने कई बातों का जिक्र किया था. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबित झांझरिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ऑनलाइन बातचीत में कहा था कि जब मेरी स्पर्धा को 2008 पैरालंपिक में शामिल नहीं किया गया था, तो मैंने कहा कि ठीक है, यह 2012 में होगा. लेकिन जब 2012 में यह फिर से नहीं हुआ, तो मैंने सोचा कि मैं खेल छोड़ दूं. वह साल 2013 था.’’
संकट की घड़ी में पत्नी ने दिया था साथ
देवेंद्र झाझरिया (Devendra Jhajharia) ने अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहा कि मेरी पत्नी ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए और मैं 2016 तक खेल सकता हूं. इसलिए, मैंने अपनी योजना बदल दी और 2013 में मुझे पता चला कि मेरी स्पर्धा को रियो पैरालंपिक में शामिल किया गया है. फिर मैंने गांधीनगर के साइ (भारतीय खेल प्राधिकरण) केन्द्र में अभ्यास शुरू किया और 2016 रियो में अपना दूसरा स्वर्ण पदक जीता.’’इस महीने 24 तारीख से शुरू होने वाले तोक्यो पैरालंपिक में स्वर्ण की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे झाझरिया ने कहा कि जब उन्होंने अपना खेल शुरू किया तो उन्हें लोगों के ताने सुनने पड़े थे.
बिजली के झटके के कारण बचपन में ही खोना पड़ा था हाथ
उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं नौ साल का था, मेरा हाथ (बिजली के झटके के कारण) गंभीर तरीके से प्रभावित हो गया था. मेरे लिए घर से बाहर निकलना भी चुनौती थी. जब मैंने अपने स्कूल में भाला फेंकना शुरू किया तो मुझे लोगों के ताने झेलने पड़े.’’उन्होंने कहा, ‘‘लोगों ने पूछा कि मैं भाला कैसे फेंकूंगा, वे मुझे कहते थे कि खेलों में मेरे लिए कोई जगह नहीं है, बेहतर है कि पढ़ाई करूं और अच्छी नौकरी हासिल करने की कोशिश करूं. फिर मैंने फैसला किया कि मैं कमजोर नहीं बनूंगा. जीवन में मैंने सीखा है कि जब हमारे सामने कोई चुनौती होती है तो आप सफलता प्राप्त करने के करीब होते हैं. इसलिए, मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया.’’