हर साल 8 मई को विश्‍व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) मनाया जाता है. ये एक आनुवांशिक ब्‍लड डिसऑर्डर है जो माता या पिता से बच्‍चे में पहुंचता है. अगर किसी बच्‍चे को थैलेसीमिया की समस्‍या है तो जन्‍म के कुछ समय बाद ही बच्‍चे में बीमारी के लक्षण दिखने लगते हैं. इसमें शरीर में लाल रक्त कणों (Red Blood Cells) की कमी बहुत तेजी से होती है. ऐसे मरीजों को 20 से 25 दिनों में पर मरीज को ब्‍लड की जरूरत पड़ती है. अगर समय रहते ब्‍लड डोनर न मिल पाए तो जीवन खतरे में पड़ सकता है. यहां जानिए कैसे हुई  विश्‍व थैलेसीमिया दिवस मनाने की शुरुआत, क्‍या हैं इस बीमारी के लक्षण, प्रकार और इलाज.

कैसे हुई विश्‍व थैलेसीमिया दिवस को मनाने की शुरुआत

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भारत में थैलेसीमिया का पहला मरीज 1938 में सामने आया था. लेकिन विश्व थैलेसीमिया दिवस पहली बार साल 1994 में मनाया गया था. जॉर्ज एंगलजोस, जो कि थैलेसीमिया अंतरराष्ट्रीय फेडरेशन के अध्यक्ष और संस्थापक थे, उन्होंने इस दिन की शुरुआत की थी. इस दिन की शुरुआत करने का मकसद लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरुक करना और बीमारी से पीड़ित सभी रोगियों और उनके माता-पिता को सम्‍मान देना है जिन्होंने अपनी बीमारी के बोझ के बावजूद जीवन की आशा कभी नहीं खोई. 

दो तरह का होता है थैलेसीमिया

डॉ. रमाकान्‍त शर्मा की मानें तो थैलेसीमिया दो तरह का होता है मेजर और माइनर. अगर किसी बच्‍चे के माता या पिता में से किसी एक को ये बीमारी है तो बच्‍चे को माइनर थैलेसीमिया हो सकता है. वहीं अगर माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया है तो बच्‍चे को मेजर थैलेसीमिया होने का खतरा काफी ज्‍यादा बढ़ जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की मानें तो भारत में हर साल 7 से 10 हजार बच्‍चों का जन्‍म थैलेसीमिया के साथ होता है.

थैलेसीमिया के लक्षण

  • एनीमिया
  • हर समय कमजोरी महसूस करना 
  • थकावट महसूस करना
  • भूख न लगना
  • पेट में सूजन 
  • डार्क यूरिन 
  • त्वचा का रंग पीला पड़ना 
  • नाखून, आंख और जीभ पर पीलापन 
  • बच्चे की ग्रोथ थम जाना

थैलेसीमिया का उपचार

बोन मैरो ट्रांसप्लांट को ही थैलेसीमिया का स्‍थायी उपचार माना जाता है. लेकिन इसके लिए एचएलए यानी कि जीन का मिलना जरूरी है. भाई-बहन और माता-पिता इसके लिए आदर्श डोनर माने जाते हैं. लेकिन हर मरीज को परिवार से एचएलए डोनर मिल पाए, ये जरूरी नहीं होता. केवल 20 से 30 फीसदी मरीजों को ही डोनर मिल पाता है. इस कारण थैलेसीमिया के करीब 70 फीसदी मरीजों को डोनर न मिलने के कारण ट्रांसप्लांट संभव नहीं होता है. जिन मरीजों को डोनर नहीं मिलता, उन्‍हें ताउम्र समय समय पर ब्लड चढ़ाने और उचित देखभाल की जरूरत होती है.

बचाव का तरीका

बच्चे को थैलेसीमिया जैसी खतरनाक बीमारी से बचाने का एकमात्र तरीका है सतर्कता. अगर शादी से पहले कुंडली मिलान के साथ कपल एक दूसरे की थैलेसीमिया जांच करा लें तो इस बीमारी को अपने बच्‍चे तक पहुंचने से बचा सकते हैं. वहीं गर्भावस्था की पहली तिमाही में थैलेसीमिया की जांच करा ली जाए, तो भी इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं.