World Down Syndrome Day: 'ट्राइसोमी 21' के नाम से भी जाना जाता है डाउन सिंड्रोम, जानें इस दिन का महत्व और बीमारी के लक्षण
डाउन सिंड्रोम एक आनुवांशिक समस्या है जिसमें बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास देरी से होता है. इस बीमारी के प्रति जागरुक करने के लिए हर साल 21 मार्च को वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे मनाया जाता है.
डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) एक आनुवांशिक विकार है. इसमें बच्चा अपने 21वें गुणसूत्र की एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होता है, इसलिए इस बीमारी को 'ट्राइसोमी 21' के नाम से भी जाना जाता है. इस बीमारी से ग्रसित होने पर बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास देरी से होता है. नेशनल डाउन सिंड्रोम सोसायटी (एनडीएसएस) के अनुसार, अमेरिका में 700 बच्चों में से 1 बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होता है. ये एक ऐसी समस्या है जिसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है. डाउन सिंड्रोम बीमारी के प्रति जागरुक करने के लिए हर साल 21 मार्च को वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे (World Down Syndrome Day- WDSD) मनाया जाता है. जानिए इस बीमारी से जुड़ी जरूरी जानकारी.
समझिए क्या है डाउन सिंड्रोम
सामान्य रूप से एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, लेकिन डाउन सिंड्रोम से पीडित बच्चा 47 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है. इसका कारण है कि प्रजनन के समय माता और पिता दोनों के क्रोमोसोम बच्चे तक पहुंचते हैं. इसमें कुल 46 क्रोमोसोम में से 23 माता के और 23 पिता से बच्चे को मिलते हैं. जब माता-पिता दोनों के क्रोमोसोम आपस में मिलते हैं तो उनमें से 21वें क्रोमोसोम का डिविजन नहीं हो पाता है. इस कारण 21वां क्रोमोसोम अपनी एक्स्ट्रा कॉपी बना लेता है. इस तरह बच्चे के शरीर में 47 क्रोमोसोम हो जाते हैं. ये अतिरिक्त क्रोमोसोम बच्चे में कई तरह के शारीरिक और मानसिक विकार पैदा कर देता है.
ये लक्षण आते सामने
डाउन सिंड्रोम के साथ जन्म लेने वाले बच्चे की शारीरिक बनावट कुछ अलग सी होती है. ऐसे में उनके कुछ लक्षणों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं जैसे- फ्लैट चेहरा, छोटा सिर और कान, बादाम शेप आंखें
उभरी हुई जीभ, हाथों में लकीरें, सिर, कान और उंगलियां छोटी और चौड़ी आदि. इसके अलावा डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे बच्चों का व्यवहार भी आम बच्चों से अलग होता है. इनका दिमाग एक जगह पर जल्दी एकाग्र नहीं हो पाता, इस कारण इनमें सीखने की क्षमता काफी कम होती है.
ये समस्याएं भी आती सामने
डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे बच्चों को कई अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है जैसे- बहरापन, कमजोर आंखें, मोतियाबिंद, कब्ज, नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत, मोटापा, थायरॉयड, अल्जाइमर, हृदय से संबंधित परेशानियां आदि.
बचाव के लिए प्रीनेटल जांच जरूरी
डाउन सिंड्रोम ऐसी समस्या है जिसे जीवन में कभी पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता. इसलिए ये जन्म के समय ही हर महिला को प्रीनेटल जांच जरूर करानी चाहिए. आमतौर पर 35 वर्ष और उससे अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में यह स्थिति होने की आशंका ज्यादा होती है, ऐसे में विशेषज्ञ उन्हें स्क्रीनिंग टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. स्क्रीनिंग के जरिए ये पता चल सकता है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीडित है या नहीं.
बीमारी से ग्रसित बच्चे को कैसे संभालें
अगर आपका बच्चा डाउन सिंड्रोम से जूझ रहा है तो उस बच्चे को रोजमर्रा के काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. उसे थैरेपी वगैरह दिलवाकर आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करनी चाहिए. इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में सीखने की क्षमता धीमी जरूर होती है, लेकिन ये आम बच्चों की तरह स्कूल जा सकते हैं और पढ़ लिख सकते हैं. इन्हें बहुत प्यार और अपनापन देना चाहिए, ताकि इनके अंदर कभी हीन भावना न आए.
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