चंद्रयान-3 की चांद के साउथ पोल पर सफल लैंडिग होने के बाद भारतीय स्‍पेस अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने पहले सोलर मिशन आदित्‍य-L1 की तैयारियों में जुट गया है. आदित्‍य-L1 को 2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर लॉन्‍च किया जाएगा. 1971 से अब तक ज्‍यादातर रॉकेट्स यहीं से लॉन्च हुए हैं. ऐसे में क्‍या आपके मन में कभी ये सवाल आया कि आखिर श्रीहरिकोटा इसरो के लिए इतना खास क्‍यों है? आइए आपको बताते हैं इसके बारे में.

श्रीहरिकोटा की लोकेशन है मुख्‍य वजह

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दरअसल श्रीहरिकोटा की लोकेशन ही इसका यूएसपी है. इक्वेटर से करीबी यहां की खासियत है. ज्यादातर सैटेलाइट्स पृथ्वी की परिक्रमा इक्वेटर के पास ही करते हैं. दक्षिण भारत में बाकी जगह की तुलना में श्रीहरिकोटा इक्वेटर यानी भूमध्‍य रेखा के ज्यादा पास है. ऐसे में यहां से लॉन्चिंग करने पर मिशन की लागत भी कम आती है और सक्‍सेस रेट भी ज्यादा होता है. इसके अलावा ज्यादातर सैटलाइट पूर्व की तरफ ही लॉन्च किए जाते हैं. इस जगह आबादी नहीं है. यहां या तो इसरो के लोग रहते हैं या फिर स्‍थानीय मछुआरे. इसलिए ये जगह पूर्व दिशा की ओर की जाने वाली लॉन्चिंग के लिए बेहतरीन मानी जाती है. पूर्वी तट पर स्थित होने से इसे अतिरिक्त 0.4 km/s की वेलोसिटी मिलती है. 

ये भी है कारण

यहां से रॉकेट लॉन्‍च करने का एक कारण ये भी है कि ये आंध्र प्रदेश से जुड़ा एक द्वीप है, जिसके दोनों ओर समुद्र है. ऐसे में लॉन्चिंग के बाद किसी रॉकेट के अवशेष सीधे समुद्र में गिरते हैं. इसके अलावा अगर मिशन को किसी तरह का खतरा होता है तो उसे समुद्र की ओर मोड़कर जनहानि से बचा जा सकता है. इसके अलावा यहां का मौसम भी इस जगह की खासियत है. बारिश के मौसम को छोड़ दें तो यहां ज्‍यादातर मौसम एक जैसा ही रहता है. यही कारण है कि इसरो रॉकेट लॉन्चिंग के लिए इस जगह का चुनाव करता है. 

श्रीहरिकोटा से पहले यहां से लॉन्‍च होते थे रॉकेट

ऐसा नहीं है कि इसरो के पास श्रीहरिकोटा का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के अलावा कोई अन्‍य लॉन्चिंग स्‍टेशन नहीं है. केरल के तिरवनंतपुरम में स्थित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेल लॉन्चिंंग स्टेशन भी है. श्रीहरिकोटा से पहले सभी राकेट इसी जगह से लॉन्‍च किए जाते थे. मौजूदा समय में इसरो रिसर्च रॉकेट की लॉन्चिंंग इसी लॉन्चिंंग पैड से करता है.

1969 में किया गया था श्रीहरिकोटा का चुनाव

1969 में इस जगह को सैटलाइट लॉन्चिंग स्टेशन के रूप में चुना गया. फिर 1971 में ही सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना की गई थी और 1971 में ही RH-125 साउंडिंग रॉकेट लॉन्‍च किया गया. पहला ऑर्बिट सैटलाइट रोहिणी 1A था, जो 10 अगस्त 1979 को लॉन्च किया गया लेकिन खामी की वजह से 19 अगस्त को नष्ट हो गया. 1971 के बाद से आज तक ज्‍यादातर रॉकेट यहीं से लॉन्‍च किए जाते हैं. आंध्रप्रदेश के तट पर बसे इस द्वीप को भारत का प्राइमरी स्पेस पोर्ट भी कहा जाता है.

क्‍या है आदित्‍य-एल1 मिशन

आदित्य-एल1 मिशन के जरिए इसरो सूर्य के तापमान, पराबैगनी किरणों के धरती, खासकर ओजोन परत पर पड़ने वाले प्रभावों और अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता का अध्ययन करेगा. L1 का मतलब 'लाग्रेंज बिंदु 1' है. कोई लाग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में वो स्थान हैं, जहां दो बड़े पिंडों (सूर्य-पृथ्वी) का गुरुत्वाकर्षण आपस में बैलेंस हो जाता है. एक प्रकार से लाग्रेंज बिंदु किसी अंतरिक्ष यान के लिए पार्किंग स्थल का काम करते हैं. यहां किसी यान को वर्षों तक रखकर तमाम परीक्षण किए जा सकते हैं और कई जानकारियां जुटाई जा सकती हैं. पूरे समय सूर्य का अध्ययन करने के लिए सबसे उपयुक्त L1 बिंदु है. ये जगह पृथ्‍वी के करीब है. L1 प्‍वाइंट तक पहुंचने के लिए आदित्‍य यान को 15 लाख किलोमीटर की दूरी को तय करना होगा.

 

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