आखिर कहां खत्म होती है ये दुनिया, कहां है इसका आखिरी छोर..क्या कभी आपके दिमाग में नहीं आया ये सवाल? यहां जानिए जवाब
कभी आपने सोचा है कि आखिर दुनिया में कोई तो ऐसी जगह होगी जहां इसका भी अंतिम छोर होगा मतलब उसके बाद दुनिया की सीमा खत्म हो जाती हो, ठीक वैसे ही जैसे किसी देश की सीमा खत्म होती है. आइए आपको बताते हैं.
सांकेतिक तस्वीर (Source Freepik)
सांकेतिक तस्वीर (Source Freepik)
ये दुनिया बहुत बड़ी है. इसमें तमाम देश,पर्वत, नदियां और महासागर वगैरह हैं. आपने भी घूमने के दौरान इनका दीदार किया होगा. लेकिन क्या कभी ये सवाल आपके मन में नहीं आया कि आखिर ये दुनिया खत्म कहां होती होगी? कोई तो ऐसी जगह होगी जहां इस दुनिया का भी अंतिम छोर होगा मतलब उसके बाद दुनिया की सीमा खत्म हो जाती हो, ठीक वैसे ही जैसे किसी देश की सीमा खत्म होती है और एक नए देश की सीमा शुरू हो जाती है. आइए आपको बताते हैं कि दुनिया का आखिरी छोर किस जगह को माना जाता है.
नॉर्वे (Norway) में मौजूद है दुनिया का आखिरी छोर
ई-69 हाइवे (E-69 Highway) को दुनिया की आखिरी सड़क के तौर पर जाना जाता है. ये यूरोपियन देश नॉर्वे (Norway) में मौजूद है. कहा जाता है कि E-69 हाइवे उत्तरी ध्रुव के पास है, इसी से पृथ्वी की धुरी घूमती है. इस सड़क के खत्म होने के बाद कोई रास्ता नजर नहीं आएगा. आपको हर तरफ सिर्फ ग्लेशियर और समुद्र के ही दिखेगा. कहा जाता है कि ये हाइवे पृथ्वी के सिरों को नॉर्वे से जोड़ता है.
ग्रुप में घूमने जा सकते हैं लोग
घूमने के शौकीन लोग दुनिया की इस आखिरी सड़क को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं. E-69 हाइवे 14 किलोमीटर लंबा है. लेकिन यहां ऐसे कई रास्ते हैं, जहां गाड़ी ले जाने और पैदल अकेले जाने पर रोक लगी है क्योंकि बर्फ की मोटी चादर बिछे होने के कारण यहां खो जाने का डर बना रहता है. इसलिए यहां लोग ग्रुप में घूमने के लिए जाते हैं और इसके लिए भी उन्हें परमीशन लेनी पड़ती है.
गर्मियों में तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस
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कहा जाता है कि उत्तरी ध्रुव के नजदीक होने के कारण यहां ठंड बहुत ज्यादा होती है. गर्मी में यहां तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस के आस-पास होता है, जबकि सर्दियों के दिनों में यहां का तापमान -45 डिग्री तक नीचे चला जाता है. एक बार अगर आप यहां पहुंच गए तो आपको एक अलग ही अहसास होगा. अगर आप यहां पहुंच गए, तो आपको अलग ही दुनिया का अहसास होगा.
छह महीने दिन और छह महीने रात
कहा जाता है कि उत्तरी ध्रुव के नजदीक होने के कारण यहां सामान्य जगहों की तरह रोजाना रात और रोजाना सुबह नहीं होती है. सर्दियों के दिनों में यहां छह महीने तक सूरज के दर्शन नहीं होते हैं और रात जैसा नजारा बना रहता है. गर्मियों के दिनों में यहां दिन बना रहता है और रात नहीं होती. कहा जाता है कि साल 1930 के बाद इस जगह विकास होना शुरू हो गया था. आज दूर-दूर से लोग यहां घूमने आते हैं.
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01:38 PM IST