Uttarakhand Foundation Day 2024: हर साल 9 नवंबर को उत्‍तराखंड का स्‍थापना दिवस मनाया जाता है. साल 2000 में 9 नवंबर को उत्‍तराखंड को एक नए राज्‍य के तौर पर स्‍थापित किया गया था. देवभूमि के नाम से फेमस ये राज्‍य प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है. यहां मसूरी, नैनीताल, चकराता, औली, चोपता, रानीखेत, अल्‍मोड़ा वगैरह तमाम हिल स्‍टेशंस हैं, जहां हर दिन लाखों सैलानी घूमने के लिए आते हैं. इन Hill Stations की खूबसूरती को तो आपने भी निहारा होगा, लेकिन यहां के दिलचस्‍प किस्‍सों के बारे में शायद ही आपको पता हो. 24वें उत्‍तराखंड फाउंडेशन दिवस के मौके पर हम आपको बताएंगे देवभूमि के ऐसे 2 हिल स्‍टेशंस के अनकहे किस्‍सों के बारे में.

मसूरी 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है. यहां लाखों सैलानी घूमने के लिए जाते हैं. लेकिन क्‍या आपको पता है कि इस हिल स्‍टेशन को अंग्रेजों ने बसाया था? कहा जाता है कि 1823 में अंग्रेजी हुकूमत के एक प्रशासनिक अफसर एफ.जे. शोर यहां आए. वे पर्वतारोहण करते हुए इस जगह तक पहुंचे थे. उन्‍होंने देखा कि इस स्‍थान से दून घाटी का मनोरन दृश्य दिखाई देता है. यहां के प्राकृतिक नजारे को देखकर वो मोहित हो गए और उन्‍होंने शिकार के लिए एक मचान बनाने का फैसला किया. इसके कुछ समय बाद अंग्रेजों ने यहां पहला भवन बनवाया. 1828 में लंढौर बाजार की बुनियाद रखी गयी. 1829 में मि. लॉरेंस ने लंढौर बाजार में पहली दुकान खोली गई. 1926-31 के बीच मसूरी तक में पक्‍की सड़कें पहुंच चुकी थीं और यहां पर तेजी से बसावट बढ़ने लगी थी.

भारतीयों को नहीं थी यहां घूमने की इजाजत

आज आप भले ही अपनी मर्जी से कभी भी मसूरी घूमने का प्‍लान बना सकते हैं, लेकिन ब्रिटिश काल में यहां भारतीयों को पैर रखने की भी इजाजत नहीं थी. मसूरी के माल रोड पर ब्रिटिशर्स ने दीवार पर बड़े-बड़े लेटर्स में लिखवाया था- 'Indians and Dogs Not Allowed'. यहां बड़े पैमाने पर उगने वाले मंसूर के पौधे के कारण इस जगह को मन्‍सूरी कहा जाता था, बाद में इसे मसूरी कहा जाने लगा. 

चकराता

ऐसा ही एक हिल स्‍टेशन है चकराता. ये जगह भी ब्रिटिशर्स ने बसाई थी. कहा जाता है कि ये जगह फिरंगियों को इतनी पसंद थी कि अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के उच्‍च अधिकारी गर्मियों की छुटियों के दौरान यहां अपना समय बिताने आते थे. लेकिन आज इस जगह पर कोई भी विदेशी पैर नहीं रख सकता. उत्‍तराखंड की इस जगह पर केवल भारतीयों को ही घूमने की इजाजत है. 

दरअसल 1869 में ब्रिटिश सरकार ने इसे कैंट बोर्ड के अधीन कर दिया. यहां से चीन की दूरी बेहद ही कम है. साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यहां तिब्बती यूनिट जमा हो गई थी. ऐसे में सुरक्षा के लिहाज से यहां किसी भी विदेशी सैलानी एंट्री को पूरी तरह से बैन कर दिया गया. अब यहां पर इंडियन आर्मी का कैंप है. ऐसे में सिर्फ भारतीय नागरिक ही यहां घूमने जा सकते हैं. अगर कोई विदेशी जबरन यहां पर आने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ सख्‍त एक्‍शन लिया जाता है.