अंग्रेजों के जमाने में काला पानी की सजा दी जाती थी. ये सजा मौत से भी बदतर मानी जाती थी क्‍योंकि इसमें व्‍यक्ति को जिंदा रहते हुए वो कष्‍ट सहने पड़ते थे, जो मौत से भी ज्‍यादा दर्दनाक होते थे और तड़पते हुए मौत होती थी. अंग्रेजों ने काला पानी की सजा के लिए खासतौर पर एक जेल बनवाई थी. ये जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में आज भी मौजूद है और अंग्रेजों के अत्‍याचारों की गवाह है. इस जेल को सेल्‍युलर जेल कहा जाता है. आज ये जगह एक स्‍मारक के तौर पर मशहूर है, जिसे देखने के लिए देशभर के सैलानी पोर्ट ब्‍लेयर आते हैं. 

चारों ओर समुद्र से घिरी है ये जेल

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सेल्‍युलर जेल की नींव 1896 रखी गई थी और ये 1906 में यह बनकर तैयार हुई थी. भारत की धरती से हजारों किलोमीटर दूर इस जेल में कुल 698 कोठरियां बनी थीं और प्रत्येक कोठरी का साइज 15×8 फीट था. इस जेल के चारों ओर समुद्र था. जिन स्‍वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा सुनाई जाती थी, उन्‍हें इस जेल में रखा जाता था. स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े होने के कारण  वीर सावरकर को भी अंग्रेजों ने दोहरे आजीवन कारावास की सजा सुनाकर अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में रखा गया था और उन पर काफी अत्‍याचार किए थे.

भारतीय इतिहास का काला अध्‍याय

वास्‍तव में सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है. जो गुलामी की बेडियों में जकड़े भारत और स्‍वतंत्रता सेनानियों पर हुए अत्‍याचारों की दास्‍तां को बयां करता है. यहां कैदियों को अलग-अलग बैरकों में रखा जाता था. तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान बनाए गए थे ताकि कोई भी कैदी दूसरे कैदी से बात न कर सके. यहां का अकेलापन कैदी के लिए बहुत भयानक होता था. हर कैदी के लिए अलग सेल होने के कारण ही इस जेल का नाम सेल्‍युलर जेल रखा गया.

साइकिल के पहिए की तरह दिखती है

ऊपर से अगर आप इस जेल को देखेंगे तो ये एकदम साइकिल के पहिए की तरह नजर आती है.  इस भवन की 7 शाखाएं हैं और बीचोंबीच एक टावर है. हर शाखा तीन मंजिल की है. जेल की चाहरदीवारी को इतना छोटा बनाया गया है, कि कोई भी इसे आसानी से पार करके निकल जाए. लेकिन फिर भी इस जगह से आजाद होना नामुमकिन था क्‍योंकि ये जगह चारों ओर से पानी से घिरी हुई है. ऐसे में अगर कोई कैदी कहीं भागना भी चाहे तो उसे कोई रास्‍ता नजर नहीं आएगा. एक बार यहां 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया.

सैनानियों को सुनाई जाती है दास्‍तां

साल 1942 में जापानी शासकों ने अंडमान पर कब्जा किया और अंग्रेजों को वहां से मार भगाया. उस समय उन्‍होंने इसकी 7 में से 2 शाखाओं को नष्‍ट कर दिया था. जब भारत हुआ तो इस जेल की दो और शाखाओं को ध्वस्त कर दिया गया. शेष बची तीन शाखाएं और मुख्य टावर को 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया. तमाम सैलानी जब अंडमान और निकोबार घूमने के लिए जाते हैं, तो उन्‍हें सेल्‍युलर जेल भी देखने जाते हैं. सेल्‍युलर जेल में एक साउंड और लाइट शो चलता है, जिसमें स्‍वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए अत्‍याचारों की दास्‍तां को बयां किया जाता है. 

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