Teacher’s Day 2023: देश की पहली महिला शिक्षिका जिनकी वजह से लड़कियों के लिए खुल पाए शिक्षा के दरवाजे
हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है. आज इस मौके पर हम आपको बताएंगे उन महिला के बारे में जिन्हें देश की पहली महिला शिक्षिका माना जाता है.
Teacher’s Day 2023: आज 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस (Teacher’s Day in India) मनाया जाता है. ये दिन देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) के साथ उन सभी शिक्षकों को समर्पित है, जो इस देश में शिक्षा के जरिए देश के बेहतर भविष्य की नींव रखते आ रहे हैं. 5 सितंबर को डॉ. एस राधाकृष्णन का जन्मदिन होता है. भारत के शिक्षा क्षेत्र में राधाकृष्णन का बहुत बड़ा योगदान रहा है. वे स्वयं भी एक शिक्षक थे, इसलिए शिक्षा की ताकत और महत्व दोनों को अच्छी तरह से समझते थे. लेकिन आज टीचर्स डे पर हम आपको बताएंगे देश के उन महिला शिक्षिका के बारे में जिन्होंने महिला अधिकारों और उनकी शिक्षा के लिए काफी संघर्ष किया और शिक्षा के दरवाजे खोले.
सावित्रीबाई फुले, देश की पहली महिला शिक्षिका
हम बात कर रहे हैं सावित्रीबाई फुले की, वे एक भारतीय समाज सुधारक, शिक्षक और कवियत्री थी. जिन्हें देश की पहली महिला शिक्षिका दर्जा दिया जाता है. सावित्रीबाई फुले लक्ष्मी और खांडोजी नेवासे पाटिल की सबसे छोटी बेटी थीं, दोनों ही माली समुदाय से थे. उनके तीन भाई-बहन थे. 9 साल की उम्र में उनकी शादी ज्योतिराव फुले से हो गई थी. अपने पति के साथ महाराष्ट्र में उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें भारत के नारीवादी आंदोलन का लीडर माना जाता है.
पति ने दी थी शिक्षा की इजाजत
सावित्रीबाई फुले के लिए कहा जाता है कि वे बचपन से ही पढ़ना चाहती थीं, लेकिन उस समय दलितों और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं दिया जाता था. सावित्री बाई एक दिन अंग्रेजी की किताब लेकर पढ़ने की कोशिश कर रही थीं. इस दौरान उनके पिता ने देखा और किताब फेंककर उन्हें डांटा. लेकिन सावित्रीबाई ने ये प्रण लिया कि वे शिक्षा लेकर ही रहेंगी. जब उनका विवाह हुआ तब वे अशिक्षित थीं और उनके पति ज्योतिराव फुले तीसरी कक्षा में पढ़ते थे. सावित्रीबाई ने जब उनसे शिक्षा की इच्छा जाहिर की तो ज्योतिराव ने उन्हें इसकी इजाजत दे दी.
18 स्कूलों का निर्माण कराया
इसके बाद उन्होंने पढ़ना शुरू किया. लेकिन जब वो पढ़ने गईं तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे, कूड़ा और कीचड़ फेंकते थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. हर चुनौती का डटकर सामना किया. उन्होंने न केवल खुद पढ़ाई की, बल्कि पने जैसी तमाम लड़कियों को शिक्षा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और मार्ग भी खोले. शिक्षा के लिए बालिकाओं को संघर्ष न करना पड़े, ये सोचकर सावित्रीबाई फुले ने साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल स्थापित किया. इसके बाद उन्होंने एक-एक करके 18 स्कूलों का निर्माण कराया. वे देश के पहले बालिका स्कूल की प्रधानाचार्या भी रहीं. यही कारण है कि उन्हें देश की पहली महिला शिक्षिका का दर्जा दिया जाता है.
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