न लोहा, न सीमेंट...इस तकनीक से बना है अयोध्या का Ram Mandir- तस्वीरें देख चौंक जाएंगे आप
आपको जानकर यकीन नहीं होगा...राम मंदिर में लोहा और सीमेंट की बजाय सिर्फ पत्थरों का यूज किया गया है. जिन पत्थरों का इस्तेमाल मंदिर बनाने में किया गया है, उन्हें किस टेक्नोलॉजी की मदद से फिट किया गया है. जानिए सबकुछ.
राम आएंगे तो अंगना सजाउंगी...आखिरकार श्री राम आ ही गए. अयोध्या में बने राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) में उनके स्वागत के लिए जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं. राम मंदिर लगभग पूरी तरह तैयार हो चुका है. इन दिनों देशभर में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर काफी चर्चा हो रही है, जो कि 22 जनवरी को होनी है. अब राम मंदिर में गर्भगृह में लगने वाली भगवान रामलला की मूर्ति भी फाइनल कर ली गई है. बता दें, मैसूरु के मुर्तिकार अरुण योगीराज की ओर से तैयार की गई भगवान राम की प्रतिमा को अयोध्या के भव्य श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए चुना गया है.
लोहे-सीमेंट की बजाय पत्थरों को किया गया इस्तेमाल
आपको जानकर यकीन नहीं होगा...राम मंदिर में लोहा और सीमेंट की बजाय सिर्फ पत्थरों का यूज किया गया है. जिन पत्थरों का इस्तेमाल मंदिर बनाने में किया गया है, उनकी लैब टेस्टिंग की गई है. पत्थर जोड़ने के लिए भी तांबे का इस्तेमाल किया गया है. इसका मकसद यही है कि मंदिर मजबूत हो और हर चुनौती से निपटने में सक्षम हो. यानी बाढ़-आंधी तूफान आने के बाद भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
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इस तकनीक का हुआ है इस्तेमाल
बता दें, इस मंदिर को बनाने में परंपरागत प्राचीन शैली और संस्कृति का समावेश तो है ही, साथ ही नई तकनीक का भी इस्तेमाल हो रहा है. हर साल रामनवमी में श्रीराम की मूर्ति पर सूर्य की किरणों को पहुंचाने का जतन हो, मंदिर में लगे पत्थरों को जोड़ने की पद्धति हो या फिर भूकंप में भी अटल रहने वाली नींव हो, मंदिर के रास्ते में आ रही सभी बाधाओं को विज्ञान की मदद से दूर किया गया है. वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और कई एजेंसियों की टीम मिलकर ये तय कर रही है कि श्रीराम मंदिर दीर्घायु हो.
6 आईआईटी ने मिलकर तैयार किया प्लान
मंदिर की नींव को पूरी तरह से सुरक्षित बनाया जाए तो ये सबसे बड़ी चुनौती है. इसके लिए अलग-अलग एक्सपर्ट से राय ली गई. लंबे वक्त तक परीक्षण किया गया. अलग-अलग स्तर पर टेस्टिंग हुई. यहां तक कि रडार सर्वे का भी सहारा लिया गया. करीब 50 फुट गहरी खुदाई के बाद तय किया गया कि कृत्रिम चट्टान तैयार की जाए.
इस काम में IIT चेन्नई, IIT दिल्ली, IIT गुवाहाटी, IIT मुंबई, IIT मद्रास, NIT सूरत और IIT खड़गपुर के अलावा CSIR यानी Council of Scientific & Industrial Research और CBRI यानी सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्ट्टीट्यूट ने मदद की. जबकि लार्सन टुब्रो और टाटा के एक्पर्ट इंजीनियर्स ने भी रामकाज में अहम भूमिका निभाई.
03:52 PM IST