वैशाख मास की शुक्‍ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम (Lord Parshuram) का जन्‍म हुआ था. इसी दिन अक्षय तृतीया का भी पर्व मनाया जाता है. ये दिन बेहद शुभ माना गया है. इस दिन को परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान परशुराम की पूजा की जाती है. भगवान परशुराम को विष्‍णु भगवान (Lord Vishnu) का छठवां अवतार माना जाता है. उन्‍हें 8 चिरंजीवी पुरुषों में एक माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम आज भी इस धरती पर मौजूद हैं. आज भगवान परशुराम की जयंती पर आपको बताते हैं खास बातें.

राम से कैसे बने परशुराम

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परशुराम माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के पुत्र हैं. कहा जाता है कि जब वे पैदा हुए तो उनका नाम राम रखा गया था. लेकिन राम महादेव के भक्‍त थे. महादेव ने उनकी भक्ति से प्रसन्‍न होकर उन्‍हें तमाम अस्‍त्र-शस्‍त्र दिए थे. उन्‍हीं में से एक फरसा भी था, जिसे परशु कहा जाता है. परशु को धारण करने के बाद से उन्‍हें परशुराम कहा जाने लगा.

धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था

भगवान परशुराम जी का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था. बचपन से ही वे काफी क्रोधी स्‍वभाव के थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था.

माता रेणुका का वध

परशुराम अपने पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे. एक बार उनके पिता ने उन्‍हें मां का वध करने की आज्ञा दी तो परशुराम ने अपनी माता की जान ले ली. हालांकि बाद में उन्‍होंने अपने पिता से ही वरदान मांगकर मां को दोबारा जीवित करवाया.

भगवान कृष्‍ण को सौंपा सुदर्शन

द्वापरयुग में जब भगवान श्रीकृष्‍ण के रूप में विष्‍णु भगवान ने जन्‍म लिया, तब श्रीकृष्‍ण शिक्षा ग्रहण करने के बाद परशुराम से मिले. तब परशुराम ने ही श्रीकृष्‍ण भगवान को दुष्‍टों और दानवों का वध करने के लिए सुदर्शन चक्र सौंपा था. 

आठ चिरंजी‍वियों में से एक

कलयुग के 8 चिरंजीवियों में से एक परशुराम भी हैं. ये आठ चिरंजीवी हैं - परशुराम, महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय. कहा जाता है कि सुबह उठकर इनका नाम लेकर इन्‍हें प्रणाम करना चाहिए. इससे निरोगी शरीर और लंबी आयु मिलती है.