World Suicide Prevention Day: इस कारण से बढ़ रहे हैं लोगों में सुसाइड के खयाल, समझें आपको क्या करना है
हर साल 10 सितंबर को World Suicide Prevention Day मनाया जाता है. इस साल World Suicide Prevention Day की थीम 'Changing the Narrative on Suicide' रखी गई है.
आजकल डिप्रेशन की समस्या तेजी से बढ़ रही है. स्कूली बच्चे भी इससे अछूते नहीं रहे हैं. परिवार से झगड़ा हो, परीक्षा में नंबर कम आए हों या कोई पर्सनल रिलेशनशिप की बात हो, व्यक्ति को तनाव हो ही जाता है. कई बार ये डिप्रेशन इतना गंभीर हो जाता है कि मन में सुसाइड के विचार पनपने लगते हैं. ऐसी मानसिक स्थिति से लोगों को बाहर निकालने के मकसद से हर साल 10 सितंबर को World Suicide Prevention Day मनाया जाता है. इस साल World Suicide Prevention Day की थीम 'Changing the Narrative on Suicide' रखी गई है. ताकि लोगों को ये समझाया जा सके कि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है, बल्कि किसी समस्या को सुलझाने के तमाम विकल्प हैं. हमें उन्हें खोजना चाहिए.
इस मामले में साइकोलॉजिस्ट, कॉग्निटिव हाइप्नोथेरेपिस्ट चरणजीत कौर का कहना है कि जीवन में किसी को कभी भी सुसाइड करने का ख्याल आ सकता है. ऐसे में व्यक्ति को लगता है कि उसे कोई नहीं समझ रहा है. वह दर्द में इतना ज्यादा होता है कि उसे लगता है कि अब मैं जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाऊंगा, तो मुझे अपने आप को खत्म कर देना चहिए. वह लाइफ को लेकर इतना परेशान हो जाता है कि उसे हर वक्त नेगेटिव थॉट्स आने लगते हैं.
डॉ. चरणजीत कौर का कहना है कि ये सब अचानक नहीं होता है. उसके दिमाग में नेगेटिव खयाल काफी दिनों से चल रहे होते हैं. उसे लगने लगता है कि वो अब किसी लायक नहीं रहा. जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा. इसकी एक वजह आपसी तुलना भी है. आज के समय में कंपैरिजन बहुत अधिक हो गया है, पैरेंट्स अपने बच्चों को कंपेयर करते हैं, वहीं टीचर्स अपने स्टूडेंट को कंपेयर करते हैं. इसके अलावा वर्क प्लेस में आपका एंपलॉयर आपको कंपेयर करता है. इस तरह की तुलना ने भी बच्चों और लोगों के मन में नेगेटिविटी को बढ़ाया है.
चरणजीत कौर कहती हैं, कंपैरिजन कुछ देर तक तो मोटिवेशन का काम करता है, मगर जब यह हद से ज्यादा होने लगता है तो नेगेटिविटी की तरफ चल जाता है. ऐसे में व्यक्ति के मन में आता है कि वह अब कुछ नहीं कर पाएगा. उसे लगता है मेरी कोई वैल्यू नहीं है. मेरे पास कोई स्ट्रैंथ नहीं है और लाइफ में लोग मेरे से बहुत आगे निकल गए हैं. मैं कुछ नहीं कर पा रहा/रही हूं, जिसके चलते वह यह खतरनाक कदम उठाने के बारे में सोचने लगते हैं.
ये हैं बचाव के तरीके
साइकोलॉजिस्ट ने इससे बचने के तरीके भी बताए. उनका कहना है कि ऐसे में परिवारों को अपने सदस्यों के साथ इतना मजबूत रिश्ता कायम करना चहिए कि जिस व्यक्ति के मन में ऐसे विचार आ रहे हैं वह आपसे खुलकर अपनी समस्या के बारे में बात कर सके. इसके अलावा उनको हेल्प के जरिए एजुकेटेड करने की जरूरत है, ताकि वह लाइफ में आने वाली हर परेशानी का सामना करने के लायक बन सकें. प्रोफेशनल हेल्प लेनी चाहिए और प्रोफेशनल हेल्प लेने में कोई भी बुराई नहीं है और कोई भी शर्म की बात नहीं है क्योंकि जो साइकोलॉजिस्ट है, वह जानता है कि ऐसे लोगों को कैसे डील किया जाता है. ऐसा इंसान उनसे ओपन माइंड से बात कर पाता है.