Basoda 2023: 14 या 15 मार्च- कब पड़ रही है शीतलाष्टमी? यहां जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Basoda 2023: होली के 7 या 8 दिन बाद बासौड़े (शीतलाष्टमी) का त्योहार मनाया जाता है. आइए जानते हैं इस साल यह कब पड़ रहा है और इससे जुड़ी सभी जरूरी बातें.
Basoda 2023: आमतौर पर होली के 7 या 8 दिन बाद या अधिकतर होली के बाद पहला सोमवार या गुरुवार को ही बासौड़े (शीतलाष्टमी) का त्योहार मनाया जाता है. चैत्र कृष्ण पक्ष दिन सोमवार विषाखा नक्षत्र हर्षण योग गर करण के शुभ संयोग में 13 मार्च 2023 को ही सोम शीतला पूजन (बासौडा) मनाया जाएगा. हालांकि अष्टमी तिथि के हिसाब से बासोड़ा पूजन 15 मार्च 2023 दिन बुधवार को ही माना जाएगा. इस दिन लोग बासी भोजन खाते हैं. इसे शुभ ग्रह के बार में करने का ही विशेष महत्व होता है. शीतलाष्टमी के त्योहार में पथवारी माता (योगिनी देवी) की पूजा होती है. इस बार में डीटेल में बता रहे हैं श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रसिद्ध (ज्योतिषाचार्य) गुरूदेव पंडित ह्रदय रंजन शर्मा.
व्रत का प्रभाव
शीतलाष्टमी व्रत के प्रभाव से व्रती का परिवार ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े-फुंसियों, नेत्रों से संबंधित सभी विकार, शीतला माता की फुंसियों के चिह्न आदि रोगों तथा शीतला जनित दोषों से मुक्त हो जाता है. इस व्रत के करने से शीतला देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं. हर गांव, नगर तथा शहर में शीतला जी का मठ होता है. मठ में शीतला का स्वरूप भी अलग-अलग तरह का देखा जाता है. शीतलाष्टकम् में शीतला माता को रासभ (गर्दभ-गधा) के ऊपर सवार दर्शनीय रूप में वर्णित किया गया है. अतः व्रत के दिन शीतलाष्टक का पाठ करें.
बासी भोजन खाने की है परंपरा
बासोड़े से 1 दिन पहले घर की महिलाएं संध्या के समय से ही पकवान बनाकर रख लेती हैं. फिर प्रातः काल तड़के उठकर घर की मुखिया स्त्री या फिर माता एक थाली में सभी बनाए हुए पकवान रबडी, रोटी ,चावल, रोटी, मूंग की छिलके वाली दाल, हल्दी ,धूपबत्ती एक गुलरी की माला जो होली के दिन बचा कर रखते हैं, इसे एक थाली में रखकर यथायोग्य दक्षिण रखकर घर के सभी बच्चों ,पुरुष, स्त्रियों को बैठाकर उनके ऊपर से 5 या 7 वार उतारती है. इस दौरान प्रार्थना की जाती है कि "हे शीतला माता आप की पूर्ण कृपा से पूरे वर्ष भर मेरे घर में सभी प्रकार के रोग दोषोकानाश करना" और"मेरे परिवार में हर प्रकार की खुशहाली ,उन्नति के कार्य हो."
भगवान शंकर से है क्या नाता
ऐसी मान्यता है कि पुराने समय से आज तक वैसी ही चली आ रही है कि उतारा करने के बाद घर के बाहर भैरो बाबा की सवारी कुत्ते को खिलाना अति आवश्यक होता है क्योंकि कुत्ता भैरव बाबा का सूचक है भैरव बाबा भगवान शिव के कोतवाल हैं.
अतः घर परिवार की सुरक्षा के लिए कुत्ते को सामान खिलाती हैं फिर घर के नजदीकी चमड़ा ,पथवारी (योगिनी देवी) के यहां जाकर सम्मान पूर्वक सामान का भोग लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यथायोग्य दक्षिणा चढ़ाएं बचा हुआ बासी सामान घर आकर सभी लोगों को खिलाया जाता है इस दिन की विशेष महत्वता यह भी है कि इस दिन के बाद से भोजन बासी होना प्रारंभ हो जाता है.