Jagannath Rath Yatra Interesting Facts: विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) आज 20 जून से शुरू हो रही है. हर साल ये यात्रा बहुत धूमधाम से निकाली जाती है. रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्‍नाथ (Lord Jagannath) अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग विशाल रथ पर सवार होकर अपने धाम से गुंडिचा मंदिर जाते हैं. इस रथ यात्रा में दूर-दूर से आए भक्‍त शामिल होते हैं. जगन्‍नाथ जी की रथ यात्रा (Rath Yatra) में शामिल होने का पुण्‍य 100 यज्ञों के समान माना गया है. आइए आज इस मौके पर आपको बताते हैं जगन्‍नाथ यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें.

जगन्‍नाथ रथ यात्रा से जुड़ी 5 खास बातें

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1. इस विशाल रथ यात्रा के लिए रथ को तैयार करने का काम हर साल अक्षय तृतीया के दिन से शुरू हो जाता है. रथ बनाने के लिए नीम और हांसी के पेड़ों की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है. रथ का काम शुरू होने से पहले पुजारी उन पेड़ों की विधि विधान से पूजा करते हैं, जिनसे इन रथों को तैयार किया जाता है. उसके बाद सोने की कुल्‍हाड़ी को भगवान जगन्‍नाथ से स्‍पर्श करवाकर  पेड़ों पर कट लगाया जाता है.

2. इस जगन्‍नाथ यात्रा के शुरू होने से पहले 15 दिन भगवान जगन्‍नाथ बीमार पड़ते हैं. बीमारी के दौरान भगवान जगन्नाथ एकांतवास में रहते हैं. पूर्णत: स्वस्थ होने के बाद भगवान भक्तों को दर्शन देते हैं और भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है.

3. इस रथ यात्रा में शामिल बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज ’ कहते हैं. देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ कहा जाता है और भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज ’ कहा जाता है. रथ यात्रा के दौरान सबसे आगे चलने वाला रथ बलरामजी का होता है. बीच में सुभद्रा देवी का रथ होता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ होते हैं. 

4. इन सभी रथों की पहचान रंग के आधार पर की जाती है. तालध्वज का रंग रंग लाल और हरा होता है. दर्पदलन काले और लाल या फिर नीले और लाल रंग का होता है और नंदीघोष का रंग लाल और पीला होता है. सबसे ऊंचा नंदीघोष रथ है. इसकी ऊंचाई 45.6 फीट, इसके बाद बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.

5. हर साल इन रथों पर सवार होकर भगवान जगन्‍नाथ अपने भाई-बहन के साथ मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ये रथ यात्रा शुरू  होती है. मौसी के घर जाकर तीनो भाई-बहन कुछ दिन विश्राम करते हैं. इसके बाद दशमी तिथि को वापस अपने धाम लौट आते हैं.

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