इन दिनों पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी हो रही है, जिसके कारण देश की राजधानी दिल्‍ली समेत पूरे उत्‍तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. उत्तर भारत के कुछ इलाकों में तापमान शून्य से कम जा रहा है. राजस्थान के ज्यादातर इलाकों में तापमान सामान्य से बहुत नीचे जा रहा है. मौसम विभाग ने 7 जनवरी तक यूपी के 27 जिलों में घने कोहरे और कोल्ड डे के लिए रेड अलर्ट (Red Alert in UP) जारी किया है. कोहरे (Fog) के कारण आम जनजीवन अस्‍त व्‍यस्‍त हो गया है.

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दृश्‍यता कम होने के कारण सड़कों पर गा‍ड़‍ियां रेंगती नजर आ रही हैं, तमाम ट्रेनों को कैंसिल कर दिया गया है और तमाम ट्रेनें बहुत देरी से चल रही हैं. ठिठुरन भरी इस सर्दी और कोहरे के कारण लोगों का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा है. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि सर्दियों में जिस कोहरे से आप तंग आ जाते हैं और आए दिन कोसते रहते हैं, वो कोहरा तमाम लोगों के लिए वरदान की तरह है. ऐसे तमाम देश हैं, जहां सालभर तक इस कोहरे का इंतजार किया जाता है. 

पहले जानिए कोहरा होता क्‍या है? (What is Fog)

कोहरे से जुड़ी किसी भी बात को आगे बढ़ाने से पहले ये जानना जरूरी है कि कोहरा होता क्‍या है? तकनीकी रूप से समझें तो बूंदों के रूप में संघनित जलवाष्प के बादल को कोहरा कहा जाता है. वहीं साधारण शब्‍दों में समझें तो ठंड के मौसम में हवा में मौजूद नमी छोटी-छोटी बूंदों में बदल जाती है. ये बूंदें वायुमंडल में जमीन की सतह के थोड़ा ऊपर फैल जाती हैं और हमें कोहरे के तौर पर नजर आती है. 

किनके लिए फायदेमंद है कोहरा? (For Whom is Fog Beneficial)

जिन देशों में पानी का संकट नहीं है, उनके लिए कोहरा एक समस्‍या हो सकता है, लेकिन जहां लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं, वहां के लिए कोहरा किसी वरदान से कम नहीं हैं. ऐसे तमाम देश हैं, जहां कोहरे का बेसब्री से इंतजार किया जाता है. ऐसी जगहों पर कोहरे को कैप्‍चर करके इसे पानी के रूप में इकट्ठा किया जाता है. इस तकनीक को फॉग हारवेस्टिंग (Fog Harvesting) या फॉग कैचिंग (Fog Catching) कहा जाता है. ये ठीक उसी तरह से है, जिस तरह आपके इलाके में सीमित समय के लिए नल में पानी आने पर आप उसे किसी ड्रम या बर्तन में स्‍टोर कर लेते हैं, जिससे दिन भर पानी की कमी न रहे, ठीक उसी तरह पानी की कमी से जूझने वाले देश कोहरे को पानी के रूप में अपने पास इकट्ठा करके रखते हैं.

कैसे होती है फॉग कैचिंग (How is Fog Catching Done)

फॉग कैचिंग के लिए धातु के बारीक बुने बड़े-बड़े जाल लगाए जाते हैं. इन जाल से टकराकर फॉग बूंदों में बदलता है और पाइप के सहारे इस पानी को टैंक में इकट्ठा कर लिया जाता है. इसके बाद पानी की प्रोसेसिंग होती है ताकि वो शुद्ध हो सके. कोहरे से कितना पानी इकट्ठा किया जा सकता है, ये जाल के साइज, स्थान और कोहरे पर निर्भर करता है. पहाड़ी इलाकों में ये तकनीक काफी कारगर है क्‍योंकि वहां कोहरा बहुत ज्‍यादा होता है.

ऐसे हुई फॉग कैचिंग की शुरुआत (Fog Catching History)

फॉग कैचिंग की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन से मानी जाती है. यहां लोग लंबे समय से पानी की कमी झेल रहे हैं. कहा जाता है कि 70 के शुरुआती दशक में यहां सौ वर्ग मीटर के दो डिवाइस लगाए गए थे जो कोहरे को कैच करके पाइप की मदद से एक कंटेनर में ले जाते थे. शुरुआत में बहुत ज्‍यादा पानी तो इकट्ठा नहीं हो सका, लेकिन ये पता चल गया कि कोहरे से पानी बनाया जा सकता है.

1987 में कनाडा और इटली में इसका सफल प्रयोग हुआ और करीब तीन सौ गांवों में इस तकनीक की मदद से रोजाना 33 लीटर पानी उपलब्‍ध कराया गया. तभी इसे फॉग कैचिंग का नाम दिया गया. आज के समय में दक्षिण अफ्रीका के अलावा नेपाल, पराग्वे की बेला विस्टा, इक्वाडोर, ओमान, मैक्सिको समेत दुनिया के तमाम देशों में फॉग हारवेस्टिंग का प्रयोग किया जा रहा है. इतना ही नहीं, अब तो कई देश बादल से भी पानी बना रहे हैं. इसे क्‍लाउड सीडिंग कहा जाता है.

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