Qala Movie Netflix: नेटफ्लिक्स पर Qala (क़ला) नाम की एक फिल्म रिलीज़ हुई है. इस फिल्म को अन्विता दत्त ने डायरेक्ट किया है और फिल्म में तृप्ति डिमरी, स्वस्तिका मुखर्जी और बाबिल खान जैसे एक्टर्स ने काम किया है. बाबिल खान मशहूर अभिनेता इरफ़ान खान के बेटे हैं और क़ला उनकी पहली फिल्म है. इस फिल्म में उन्होंने जगन नाम के उभरते हुए गायक का किरदार निभाया है. फिल्म में जगन को कम उम्र में काफी फेम मिल जाता है. जिसकी वजह से साथ के गवैयों को उससे ईर्ष्या होती हैं. इसी बीच जगन की आवाज़ में दिक्कत होने लगती है, वो खराब होने लगती है. क्योंकि किसी ने उसे दूध में पारा (Mercury) मिलाकर पिला दिया होता है. फिर कुछ ही दिनों में उसकी मौत हो जाती है.

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बाबिल ने इस फिल्म में 'जगन' का किरदार निभाया था, जो रियल लाइफ स्टोरी से प्रेरित है और वो स्टोरी है मास्टर मदन की. मास्टर मदन छोटी उम्र में ही अपने इलाके के सबसे नामचीन गवैयों में गिने जाने लगे थे. साढ़े तीन साल की उम्र में पहली बार उन्होंने लोगों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन किया था. 10-12 साल लंबे म्यूज़िक करियर में उन्होंने कुल 8 गाने गाए थे. जिनमे से दो गानों की रिकॉर्डिंग आज भी आसानी से इंटरनेट पर मिल जाती हैं. कहा जाता है की मास्टर मदन जब 15 साल के थे, तब किसी ने दूध में पारा घोलकर उन्हें पिला दिया था जिसकी वजह से उनकी जान चली गयी थी. 

कौन थे मास्टर मदन

जालंधर के खानखाना गांव में अमर सिंह अपनी पत्नी पुरण देवी और बच्चों के साथ रहते थे. अमर सिंह अंग्रेज़ो के लिए काम करते थे. उनकी संगीत में बड़ी रूचि थी. उनके घर पर कई वाद्य यंत्र रखे थे. जो कभी वो खुद या फिर उनके बच्चे बजाया करते थे. गर्मी आ जाने की वजह से अंग्रेज़ सरकार शिमला शिफ्ट हो जाती थी. तब अमर सिंह की फैमिली भी शिमला के लोअर बाज़ार में बनी बुटैल बिल्डिंग में रहने लगी.

 

28 दिसंबर, 1927 को अमर सिंह के यहां एक बच्चा पैदा हुआ. नाम रखा गया मदन. मदन की एक बहन भी थी जिसका नाम था शांति. मदन जब बड़े हो रहे थे तब उनके घर का माहौल बड़ा संगीतमय था. बताया जाता है कि दो-ढाई साल की उम्र से ही वे अपनी बहन शांति से म्यूज़िक सिखने लगे थे. जून 1930 में जब मदन साढे 3 साल के थे, तब सोलन के धरमपुर में एक इवेंट में मदन ने 'वंदन है शारदा नमन करूं' नाम का भजन गाया था. ये उनकी करियर की पहली पब्लिक परफॉरमेंस थी. जिसने भी उनको वहां गाने गाते हुए सुना, वो हैरान रह गया क्योंकि किसी को भी नहीं लगा था की तीन साल का बच्चा इतना अच्छा गाना गा सकता है. 

इंडिया के पहले सुपरस्टार मास्टर मदन को सुनने उनके घर आते थे

उन दिनों K.L Saigal शिमला में ही रेमिंगटन नाम की टाइपराइटर कंपनी के लिए काम करते थे. लोगों से मास्टर मदन की तारीफ सुन कर वे अमर सिंह के यहां पहुंच गए. की. मदन के साथ मुलाकात की. उन्हें रियाज़ करते सुना और उनसे बहुत प्रभावित हुए. इसके बाद मदन के यहां उनका आना-जाना तब तक लगा रहा जब तक वो नई थिएटर ज्वाइन करने कलकत्ता नहीं चले गए. 

ये वही कुंदन लाल सहगल साहब थे, जो आगे चलकर देश के लेजेंड्री सिंगर और एक्टर बने. उन्हें इंडिया का पहला सुपरस्टार भी माना जाता है. उंहोने कुल 36 फिल्मों में काम किया था. जैसे कि सुबह का सितारा, तानसेन, देवदास और शाहजहां.

ऑल इंडिया रेडियो पर गाते थे  मास्टर मदन 

मास्टर मदन ने शिमला के सनातन धर्म स्कूल से अपनी पढाई लिखे की थी और मैट्रिक उन्होंने रामजस स्कूल दिल्ली से पूरी की. इस दौरान वो देश के अलग-अलग हिस्सों -घूमकर स्टेज परफॉरमेंस करते रहे. 1931 से लेकर 1942 तक उन्होंने AIR (All India Radio)  में काम किया था. ऑल इंडिया रेडियो के इस लाइनअप में गुलाम अली खान, दिलीप चंदरवेदी, दीना क़व्वाल, मुबारक अली फतेह अली जैसे बड़े दिग्गजों के साथ मास्टर मदन भी थे. जो कि उनकी उम्र के हिसाब से बहुतबड़ी बात थी. कहा जाता है कि उनकी पॉपुलैरिटी से देश के तमाम नए सिंगर नाखुश से रहने लगे थे. उन्हें लगने लगा था की मास्टर मदन की वजह से उन्हें अच्छे मौके नहीं मिल पा रहे.

साथी गवैयों ने दूध में पारा घोलकर ली थी जान

1942 में मास्टर मदन ने कलकत्ता में एक स्टेज परफॉरमेंस दी. यहां उन्होंने 'विनती सुनो मोरी अवधपुर के बसैया' गाया था. उनके गायन से इंप्रेस होकर जनता ने उन्हें खूब इनाम दिए. पैसों से लेकर सोना और क्या नहीं. इसके बाद वो लौटकर दिल्ली आए और AIR के लिए गाना जारी रखा. मगर उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. बुखार आया, जो जा ही नहीं रहा था. बताया जाता है कि उन्हें किसी ने दूध में पारा घोलकर पिला दिया था. इसकी वजह से वो बीमार रहे और कुछ ही दिनों बाद जून 1942 में उनकी डेथ हो गई. तब वो मात्र 15 साल के थे. कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ के मुताबिक उनके ही किसी साथी सिंगर ने ऐसा किया था. क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अगर मास्टर मदन रह गए, तो उन्हें लांघकर कोई आगे नहीं जा पाएगा. 

मास्टर मदन ने अपने करियर में कई गाने, गज़ल और ठुमरियां गाईं. मगर उनमें से सिर्फ 8 की रिकॉर्डिंग हो पाई. इसमें दो गज़ल, दो पंजाबी गीत, दो ठुमरी और गुरबानी के दो टुकड़े शामिल हैं. मगर मास्टर मदन को आज भी 'यूं न रह-रह के हमें तरसाइए' और 'हैरत से तक रहा जहान-ए-वफा मुझे' की वजह से याद किया जाता है. इन दोनों ही गज़लों को सागर निज़ामी ने लिखा था. इन दोनों ग़ज़लों को आप यूट्यूब पर आसानी से सुन सकते हैं.

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