Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है. वहीं, चुनावी साल में इसके जरिए चंदा बटोरने के पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसल दिया है. उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बांड योजना को अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक माना है. साथ ही आदेश दिया है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बांड का ब्योरा पेश करेगा. इलेक्टोरल  बॉन्ड के जरिए अभी तक सबसे अधिक चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है.

Electoral Bond: 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भाजपा को मिला था 2555 करोड़ रुपए का चंदा 

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इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को 16 हजार करोड़ रुपए का चंदा मिल चुका है. इसमें सबसे ज्यादा बीजेपी का हिस्सा है. चुनाव आयोग और ADR के मुताबिक इसमें 55 फीसदी यानी 6565 करोड़ रुपए चंदा बीजेपी को मिला है. वहीं, साल 2018 से पिछले वित्त वर्ष तक सभी राजनीतिक दलों को 12 हजार करोड़ रुपए मिले हैं.  चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में भारतीय जनता पार्टी को चुनावी बॉन्ड के जरिए 1450 करोड़ रुपए का चंदा मिला था. वहीं, कांग्रेस को 383 करोड़ रुपए और तृणमूल कांग्रेस को 97.28 करोड़ रुपए का चंदा मिला था. वहीं, 2019 में भाजपा को 2555 करोड़ रुपए मिले थे. इसी साल लोकसभा चुनाव हुए थे. वहीं, साल 2020 कोविड के कारण चुनावी बॉन्ड से मिलने वाले चंदे में भी कमी आई थी. साल 2020-21 में भाजपा को 22.38 करोड़ रुपए, कांग्रेस को 10.07 करोड़ रुपए और टीएमसी को सर्वाधिक 42 करोड़ रुपए मिले थे.

Electoral Bond: साल 2021 में भाजपा को मिला 1032 करोड़ रुपए

साल 2021-22 में भाजपा को चुनावी बॉन्ड के जरिए 1032 करोड़ रुपए मिले थे. तृणमूल कांग्रेस को 528 करोड़ रुपए और कांग्रेस को 236 करोड़ रुपए मिले थे. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दो नवंबर 2023 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम ने कोर्ट में चुनावी बॉन्ड के याचिका दाखिल की थी. भारत सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रहा था.

Electoral Bond: 2017 बजट में पेश किए गए थे चुनावी बॉन्ड, 2018 में हुए थे नोटिफाई

वित्त वर्ष 2017 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी. दो जनवरी 2018 में केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया था. साल 2017 में इसे चुनौती दी गई थी. 2019 में इस मामले पर सुनवाई की गई थी. इलेक्टोरल बॉन्ड को बैंक नोट भी कहा जाता है. ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है. इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कुछ चुनिंदा ब्रांच से खरीदकर पार्टी को डोनेट कर सकता है. हालांकि, बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रखी जाती है. चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट मिलती है.